Operation Smiling Buddha: 18 मई की तारीख को भारत में राष्ट्रीय स्तर पर ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा की सफलता के लिए जाना जाता है। बुद्धा यानि गौतम बुद्ध। लेकिन आपको पता है कि ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा आखिर है क्या है? इस लेख में आपको यही बताने वाले हैं कि आखिर क्यों हर साल 18 मई के दिन ऑपरेशन बुद्धा चर्चा में आ जाता है। यह कहानी है 18 मई 1974 की। यह वही साल है जिस साल भारत ने अपने पहले परमाणु परीक्षण को सफल बनाया था। भारत ने इसका परीक्षण पोखरण रेंज में किया था। इस दिन बुद्ध पूर्णिमा थी। यही कारण है कि इस ऑपरेशन का नाम स्माइलिंग बुद्धा रखा गया। लेकिन इस परमाणु परीक्षण को करना इतना आसान नहीं था। साथ ही परमाणु परीक्षण होने के बाद भारत को किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा आपको यह भी जानना जरूरी है।
बेहद खूफिया रहा ये मिशन
इसका परीक्षण भारतीय एटॉमिक रिसर्च सेंटर के निदेश राजा रमन्ना के पर्यवक्षण में शुरू हुआ। पूरा ऑपरेशन 7 सितंबर 1972 को ही बीआरसी के द्वारा ही शुरू किया गया और उसी ने इसे पूरी तरह से अंजाम दिया था। लेकिन भारत द्वारा किए गए इतने बड़े परमाणु परीक्षण की भनक दुनिया के किसी देश को न लग सकी। इसके लिए बकायता पूरा तैयारी और प्लानिंग की गई थी। दुनियाभर के गुप्तचरों की आंखों में धूल झोंककर भारत ने परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक किया। इसी के साथ ही परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक करने वाला भारत छठा देश बन गया था। हालांकि दुनियाभर के कई देशों ने भारत के साथ कई व्यापारिक व अन्य चीजों पर प्रतिबंध लगा दिया था। इस प्रतिबंध को थोपने के पीछे उनका कहना था कि इससे परमाणु प्रसार को बढ़ावा मिलेगा।
परमाणु कार्यक्रम धीरे-धीरे हुआ युवा
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद में दिए एक भाषण में कहा था कि भारत सक्षम होने के बाद भी परमाणु हथियार नहीं बनाएगा। लेकिन लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के विचार इसके इतर थे। भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में परमाणु कार्यक्रम के शांतिपूर्ण उपयोग पर जोर दिया गया। वहीं इंदिरा गांधी के सत्ता में आने के बाद परमाणु कार्यक्रम को तेजी मिली और 75 वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की टीम ने इस परीक्षण को सफल बना दिया। इस टीम में राजा रमन्ना थे जो इस प्रोग्राम की अगुवाई कर रहे थे। वहीं पीके अयंगार, राजगोपाल, चिदंबरम और अन्य वैज्ञानिक भी इस टीम में शामल थे। बता दें कि इन्होंने 1967 से 1974 तक काम किया था। इसी का नतीजा था कि परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक किया जा सका और बिना दुनिया के किसी देश को पता लगे।