अगर आप प्रतिदिन अखबार पढ़ते हैं या फिर अगर आप सामान्य ज्ञान व आसपास घट रही घटनाओं की जरा सी भी जानकारी रखते हैं तो कभी न कभी आपने केशवानंद भारती केस के बारे में तो सुना ही होगा। आज केशवानंद भारती केस की 50वीं वर्षगाठ हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इस ऐतिहासिक फैसले के मद्देनजर विशेष वेब पेज बनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इस बाबत जानकारी देते हुए कहा कि इस वेबपेज को केशवानंद भारती मामले की 50वीं वर्षगाठ के तहत समर्पित किया जाएगा। इसमें 'मूल ढांचा सिंद्धांत' पर केस से जुड़ी जारी सामग्री को अपलोड कर दी गई है।
क्या है केशवानंद भारती केस?
साल 1973 में केंद्र सरकार ने भूमि सुधार के लिए दो कानून बनाए। इस कानून के जरिए केंद्र सरकार मठों की संपत्ति को जब्त करना चाहती थी। इस मामले में केशवानंद भारती जो एक मंदिर में पंडित का काम करते थे। वे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। केशवानंद भारती ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 26 हमें धर्म के प्रचार के लिए संस्था बनाने का अधिकार देती है। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा संस्थाओं की संपत्ति को जब्त करने के लिए बनाए गए कानून संविधान के खिलाफ हैं। इस मामले की 13 जजों ने सुनवाई की और 68 दिन तक इस मामले पर बहस चला। इसके बाद 24 अप्रैल 1973 को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यह कह दिया कि केंद्र सरकारें संविधान के ऊपर नहीं हैं। कोर्ट संविधान पीठ ने 7 : 6 बहुमत से फैसला सुनाया था। इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि संसद द्वारा संविधान के मूल ढांचे को संशोधित नहीं किया जा सकता है।
सरकार नहीं बदल सकती संविधान की मूल भावना?
केशवानंद भारती केस में 7 जजों ने केशवानंद भारती का समर्थन किया। वहीं 6 जजों ने सरकार के पक्ष में समर्थन दिया। अपने इस फैसले नें कोर्ट ने यह कहा कि सरकारें संविधान से ऊपर नहीं हैं। सरकार संविधान की मूल भावना या मूल ढांचे में कोी बदलाव नहीं कर सकीत है। सरकार अगर किसी भी कानून में बदलाव करती है तो कोर्ट उस कानून की न्यायिक समीक्षा कर सकती है। संविधान की मूल भावना या मूल ढाचा क्या है यह स्पष्ट नहीं है लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट तय करता है।