Highlights
- नोटिफिकेशन बंद रखें ताकि फोन बार-बार आवाज न करे
- शाम में फ़ोन को फ़्लाइट मोड रखें
- आप परिवार के साथ हैं तो फोन को दूर रखें
Digital Detox: स्मार्टफोन और सोशल मीडिया इस नए यूग में हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है। दुनिया में ऐसे कमी लोग होंगे जो फोन का शिकार नहीं हुए होंगे। आज के जमाने में हर घर में मोबाइल फोन हो गया है। हम घर से कहीं जाते हैं तो सबसे पहले ये चेक करते हैं क्या हमने फोन लिया या नहीं यानी हम इतने आदी हो गए कि इसके बिना जीवन जीना संभंव नहीं लग रहा है। एक कहावत है कि जब आप किसी वस्तु के बिना नहीं रह सकते हैं तो समझ लीजिए कि आपको एक बुरी लत लग गई है आप इसे अब पीछा नहीं छूड़ा सकते हैं। खैर घबराने वाली बात नहीं है हम आज जिसके बारें में बताने जा रहे हैं वो एक सिस्टम है अगर आपने उसके नियमों का पालन कर लिया तो आप खुद ही फोन, इटरनेट से दुरी बनाने लगेंगे।
न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, सोशल मीडिया हमारे समय का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है। इसका अधिक इस्तेमाल हमारे दिमाग को बीमार कर सकता है। अमेरिका के सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर ज्यां ट्वेंग के अनुसार, फोन की नीली रोशनी रात में भी हमारे दिमाग को दिन का अहसास कराती है। न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के स्टर्न स्कूल ऑफ बिजनेस में एक लेखक और मार्केटिंग के प्रोफेसर एडम ऑल्टर का मानना है कि आधुनिक तकनीक इतनी 'कुशल और नशे की लत' कभी नहीं रही। वह बताते हैं कि टेक कंपनियां फोन का ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए उन्हें मजबूर करने के लिए बिहेवियरल साइकोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है। यही कारण है कि विशेषज्ञों ने इस तरह की लत से पीछा छुड़ाने के लिए डिजिटल डिटॉक्स की खोज कर दी।
डिजिटल डिटॉक्स क्या है?
कुछ देर तक फोन न मिलने पर अगर आप बेचैनी और तनाव महसूस करने लगते हैं, हर कुछ मिनट बाद फोन चेक करने को मजबूर होते हैं, सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के बाद बेचैनी, निराशा और अवसाद महसूस करने लगे हैं, या पीछे छूट जाने का डर है। फोन चेक न करने के लिए तो समझ लीजिए कि आपको डिजिटल डिटॉक्स की जरूरत है। अब आपके मन ये सवाल आ रहा होगा कि ये क्या है इस कैसे प्रयोग करें ताकि हम फोन, इंटरनेट से दुरी बना ले। ये डिजिटल डिटॉक्स एक तरह थैरेपी है। यानी सरल भाषा में समझे कि आप अपने आपको डिजीटल दुनिया से दूरी बना ले। आप भूल जाए कि आपके पास फोन भी है। आप एक टारगेट सेट कर लें कि हमें पूर दिन में मात्र इतने टाइम तक फोन यूज करना है।
इस थैरेपी को कैसे करें
कुछ लोग सुबह उठते ही फोन में लग जाते हैं। उन्हें अपने मैसेज, ईमेल या सोशल मीडिया प्रोफाइल चेक करने की आदत होती है। डिजिटल डिटॉक्स का सुझाव है कि आप सुबह फोन न उठाएं। इसके बजाय अखबार पढ़ें। व्यायाम करें या टहलें, फोकस सेट करें। नोटिफिकेशन बंद रखें ताकि फोन बार-बार आवाज न करे। भोजन करते समय आप अपने भोजन पर फोकस करें ताकि आपको एक संतुलित आहार मिल सकें। अगर आप परिवार के साथ हैं तो फोन को दूर रखें। अगर आप ऑफिस में लंच कर रहे हैं तो किसी सहकर्मी के साथ लंच करें। शाम में फ़ोन का फ़्लाइट मोड रखें, शाम के समय सैर पर जरूर जाएं। बच्चों के साथ खेलो। बच्चों के साथ रहना सबसे कीमती समय है। इस समय मोबाइल का प्रयोग न करें। हां, अगर आप फोटो लेने के लिए फोन को अपने पास रखना चाहते हैं, तो इसे फ्लाइट मोड पर रख दें। सोने से एक घंटे पहले स्क्रीन का इस्तेमाल बंद कर दें। मतलब आपको फोन की स्क्रीन के सामने नहीं होना चाहिए। फिर भी अगर आपको अपने साथ फोन रखने की आदत है तो ऑडिबल ऐप्स का इस्तेमाल करें। गाने सुनें, कहानियां सुनें। इससे आपका मनोरंजन तो होगा ही साथ ही आप फोन की ब्लू लाइट से भी दूर रह पाएंगे। सोने से पहले फोन से दूरी सोते समय सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने से नींद न आने की समस्या बढ़ जाती है। इंटरनेट और मोबाइल के अधिक उपयोग से काम का तनाव बढ़ता है और अधिक काम करने की भावना से नौकरी से संतुष्टि में कमी आती है। सोने से पहले फोन को दूसरे कमरे में रखें।