Highlights
- ट्रेन 150 फीट नीचे टाई नदी में जा गिरीं
- एक घटना अमेरिका में 1910 में देखने को मिला था
- धरती का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है
What is Avalanche: नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (एनआईएम) ने बताया कि उत्तरकाशी में हुए हिमस्खलन में मरने वालों की संख्या बढ़कर 16 हो गई है। बचावकर्मियों ने मौके से और 12 पर्वतारोहियों के शव बरामद किए हैं। माना जा रहा है कि 15 पर्वतारोही अब भी लापता हैं। पर्वतारोही चढ़ाई के बाद लौटते समय 17 हजार फुट की ऊंचाई पर द्रौपदी का डांडा-द्वितीय चोटी पर मंगलवार को हिमस्खलन की चपेट में आ गये थे।
हाई ऑल्टिट्यूड वायफेयर स्कूल की टीम मौके पर मौजुद
एनआईए द्वारा जारी बुलेटिन के अनुसार, अभी तक 16 शव बरामद हुए हैं जिनमें से 12 प्रशिक्षुओं के हैं जबकि दो शव प्रशिक्षकों के हैं। हिमस्खलन वाले दिन महज चार शव बरामद हो सके थे। संस्थान ने बताया कि मौके पर अभी तक राहत एवं बचाव कार्य जारी है। उसने कहा, हालांकि, खराब मौसम के कारण हेलीकॉप्टर को राहत कार्य से वापस बुला लिया गया है। उसने बताया कि मौसम अगर सही रहा तो शुक्रवार सुबह फिर से हेलीकॉप्टर की मदद ली जाएगी। राज्य आपात अभियान केन्द्र (एसईसीओसी) ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के गुलमर्ग में स्थित हाई ऑल्टिट्यूड वायफेयर स्कूल की 14 सदस्यीय टीम भी आज से बचाव कार्य में जुट गयी है।
अभी तक इतने लोग फंसे हुए हैं
टीम का नेतृत्व कर रहे नायब सूबेदार अनिल कुमार ने पीटीआई/भाषा को बताया, ‘‘टीम में प्रशिक्षु सहित कुल 34 पर्वतारोही थे।’’ कुमार उन घायल 14 पर्वारोहियों में से एक हैं जिन्हें एनआईए के बेस कैंप से लाकर बुधवार को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्होंने बताया कि हिमस्खलन के दौरान 33 पर्वतारोहियों ने दरारों में छुपकर शरण ली थी। उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि मैं अन्य से आगे चल रहा है, मैं दरार के बायीं ओर लटक गया। जब बर्फस्थिर होने लगी तो मैंने रस्सियां खोलीं और अपनी टीम के लोगों को बचाना शुरू किया। अन्य प्रशिक्षक भी मेरे साथ शामिल हुए।’’ उचित उपकरण नहीं होने के कारण उन्हें बर्फ हटाने में दो घंटे लगे। प्रशिक्षक ने बताया कि जो भी दिखा उसे बाहर खींच लिया गया, लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद टीम के 29 सदस्य दरारों में फंसे रह गए
आखिर ये हिमस्खलन क्या है?
बर्फीली पहाडिंया यानी वैसा पहाड़ जो बर्फ से ढ़की हो। जब इस तरह की पहाड़ियों पर बर्फ की चादरे कहीं पर कमजोर हो जाती है तो खिसक जाती है। उसी घटना को हिमस्खलन कहा जाता है। अगर छोटी बर्फ की चट्टान या चादर नीचे की ओर आती है तो खतरा कम होता है लेकिन यही बर्फ की चट्टाने बड़ी हो तो एक भीषड़ तबाही ला सकती है। जब ये चट्टाने नीचे की ओर आती है तो इसके साथ कई बड़े-बड़े चट्टान भी साथ में आते हैं इसके आलावा पत्थर, पेड़-पौधे और सारा मलबा भी आता है। इसके जद में जो भी आता है वो खत्म हो जाता है।
कितने प्रकार के होते हैं हिमस्खलन
मुख्यतौर पर दो तरह के हिमस्खलन होते हैं।
हिमस्खलन: इसमें बर्फ पाउडर या बड़े-बड़े बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े, ये आमतौर पर ग्लेशियर या जहां पर बर्फ वाली नदिया होती है। वही देखने को मिलता है।
चट्टानी हिमस्खलन: इस हिमस्खलन में बड़े-बड़े बर्फ के चट्टान के टुकड़े होते हैं। ये काफी खतरनाक होते हैं।
क्यों खिसक जाती है बर्फ की चट्टाने
आपको बता दें कि हिमस्खलन की ज्यादातर सर्दियों के महीनों में देखने को मिलता है। जब पहाड़ियों पर बर्फबारी होती है तो पुराने बर्फ जो नीचे दब जाते हैं। नए बर्फ के दबाव में पुराने बर्फ खिसक जाते हैं। अब आपके मन में सवाल आया होगा कि अभी तो गर्मी का महीन खत्म भी नहीं हुआ तो और इसी महीने में इतनी दर्दनाक हदसा देखने को मिल गई। इसके पीछे का रिजन कोई और नहीं ग्लोबल वार्मिंग है। धरती का तापमान धीरे-धीरे गर्म हो रहा है यानी धरती अंदर गर्म हो रही है। जिसके कारण वातावरण का तापमान में बढ़ोतरी हुई। हम लगातार जंगलों को खत्म करते जा रहे हैं। पहाड़ो पर भी तेजी से पेड़ो को काट जा रहा है। भीषण गर्मी के कारण बर्फ पिघल रही है। और जब बर्फ पिघलेंगी तो जाहिर सी बात है कि वो नीचे की ओर चलेंगी। अब इस तरह के अत्यधिक मामले सामने आ रहे हैं।
सबसे बड़ी तबाही कहां पर हुई
पहले विश्व युद्ध के दौरान हिमस्खलन करीब 60 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इसमें इटली और ऑस्ट्रियन सैनिक की जान चली गई थी। इतिहासकारों के मुताबिक, ऐसा बताया जाता कि घटना के पहले ही दिन लगभग 10 हजारों सैनिक मारे गए थे। ये घटना 13 दिसंबर 1916 को इटली के माउंट मार्मोंलादा पहाड़ पर आए हिमस्खलन से हुई थी। इस घटना को इतिहास में 'व्हाइट फ्राइडे' के नाम से याद की जाती है। वहीं कुछ दावों में ये भी बताया जाता है कि कमजोर बर्फ के चट्टानों पर गोले दागे गए थे जिसके कारण ये घटना हुआ था।
इसके बाद एक घटना अमेरिका में 1910 में देखने को मिला था। अमेरिका के वॉशिंगटन के वेलिंगटन शहर में 9 दिनों तक लगातार बर्फबारी होती रही, जिसके कारण दो ट्रेने फंस गई थी। इसी दौरान 14फीट ऊंची बर्फ की दीवार शहर की ओर गिरी जिसमें खड़ी दोनों ट्रेनों से जा टकराई गई। इससे ट्रेन 150 फीट नीचे टाई नदी में जा गिरीं। जिसमें लगभग 96 लोगों की मौत हो गई थी।