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17 दिनों तक टनल में फंसे मजदूरों ने क्या किया? कैसे काटा इतना टाइम, पढ़िए उन्हीं की कहानी-उनकी ही जुबानी

चार धाम मार्ग पर निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा ढह जाने के बाद फंसे श्रमिकों को निकालने के लिए 12 नवंबर को बचाव अभियान शुरू किया गया था और 17 दिनों बाद सभी 41 मजदूरों को बाहर निकाला गया था।

Edited By: Sudhanshu Gaur @SudhanshuGaur24
Published on: December 02, 2023 20:26 IST
17 दिनों तक टनल में फंसे मजदूरों ने क्या किया?- India TV Hindi
Image Source : FILE 17 दिनों तक टनल में फंसे मजदूरों ने क्या किया?

उत्तरकाशी के सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन तक फंसे रहने के बाद सकुशल बाहर निकाले जाने पर झारखंड में अपने गांव पहुंचे श्रमिक सुखराम ने आपबीती सुनाई और कहा कि ‘चोर-सिपाही’ जैसे खेलों ने उन्हें सुरंग में लंबे समय तक जीवित रखा। रांची के बाहरी इलाके में स्थित खीराबेड़ा गांव के रहने वाले सुखराम ने घटना को याद करते हुए कहा कि अचानक उन्हें गड़गड़ाहट होने की तेज आवाज सुनाई दी, लेकिन जब तक वह इसे समझ पाते तब तक दहशत फैल गई। सुखराम शुक्रवार देर रात एक बजे अपने घर पहुंचे, जहां उनका जोरदार स्वागत किया गया। 

राजा-रानी और चोर-सिपाही जैसे खेल खेले 

समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ से बात करते हुए सुखराम ने बताया, ‘‘राजा-रानी और चोर-सिपाही जैसे बचपन के खेलों ने हमें जिंदा रखा और शुरुआती दिनों की हताशा व निराशा को पछाड़ने में मदद की।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम सुरंग के अंदर कंक्रीट का काम कर रहे थे तभी हमने अचानक गड़गड़ाहट की आवाज सुनी और हम बहुत डर गये। हम हैरान और सहमे हुए खड़े थे। इसने हमें स्तब्ध कर दिया और हममें से कई लोगों ने सोचा कि यह अंत है।’’ सुखराम ने बताया कि उन्होंने बाहर गंदा पानी निकाल रही पाइप को ‘गैस कटर’ से काटकर अंदर फंसे होने का संकेत भेजा। 

पाइप के जरिए मिलने लगा खाने का सामान 

उन्होंने कहा, ‘‘जैसे ही बाहर से संपर्क स्थापित हुआ उम्मीद जग गई और जल्द ही हमें एक पाइप के माध्यम से ‘मुरी’ (चावल का लावा), काजू और किशमिश जैसी खाद्य सामग्री मिलनी शुरू हो गई।’’ सुखराम ने कहा कि शुरुआती दिनों के दौरान सुरंग के अंदर भेजे जाने वाली 'मुरी' या ‘मुरमुरे’ और सूखे मेवे गंदे हो जाते थे, लेकिन वे लोग उन्हें साफ करने के लिए रेत से बजरी अलग करने के लिए बनी ‘चलनी’ का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी भेजा गया, उसे अंदर फंसे 41 लोगों के बीच बांट दिया जाता। शुरुआत में

शुरुआत में चट्टानों से टपकने वाले पानी का करते थे इस्तेमाल 

उन्होंने बताया कि पानी के लिए वे लोग शुरू में चट्टानों से टपकने वाले जल पर निर्भर थे और कभी-कभी खेल भी खेलते थे। उन्होंने कहा कि सुरंग में फंसे श्रमिक कभी-कभी अपने परिवारों के बारे में बात करते थे, तो कभी अपने भविष्य के बारे में सोचते थे। सुखराम ने कहा, ‘‘बचपन में खेले गए सभी खेल हमें बचाने में काम आए।’’ सुखराम ने कहा कि पहले 10 दिनों की भीषण चिंता के बाद केले, सेब और संतरे के अलावा, खिचड़ी, बिरयानी और रोटी-सब्जी जैसी चीजें एक बड़ी पाइप के जरिये मिलने लगी थीं। 

'हम देश की जनता को तहे दिल से धन्यवाद देते हैं'

उन्होंने कहा, ‘‘शौच करने के लिए हमारे पास सुरंग के अंदर कोई अन्य विकल्प नहीं था। यह सबसे दूर के छोर पर किया जाता था और फिर उसे मिट्टी से ढंक दिया जाता था।’’ भावुक सुखराम ने कहा, ‘‘हमारे लिए प्रार्थना करना एक दिनचर्या बन गया था और आख़िरकार भगवान ने हमारी सुन ली। हम जीवित बाहर आने पर अपनी खुशी का वर्णन नहीं कर सकते हैं और जो बात बहुत संतुष्टि देती है यह है कि बाहर के लोग हमसे ज्यादा खुश थे। हम देश की जनता को तहे दिल से धन्यवाद देते हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विशेष धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने हमें यहां रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने का भरोसा दिलाया है।’’ 

इनपुट - भाषा 

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