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भारत में जीवंत और मुखर प्रेस, फर्जी खबरों और अफवाहों का तेज प्रसार बड़ी चुनौती; राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर बोले अश्विनी वैष्णव

अश्विनी वैष्णव ने कहा, “हमें इन संघर्षों को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि इतिहास खुद को दोहराता है और जो लोग इतिहास को भूल जाते हैं, उन्हें फिर से उन्हीं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

Edited By: Niraj Kumar @nirajkavikumar1
Published : Nov 17, 2024 19:14 IST, Updated : Nov 17, 2024 19:14 IST
अश्विनी वैष्णव
Image Source : INDIA TV अश्विनी वैष्णव

नई दिल्ली: केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने राष्ट्रीय प्रेस दिवस समारोह को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए भारत के जीवंत और विविध मीडिया इकोसिस्टम पर प्रकाश डाला। उन्होंने आजादी की लड़ाई और फिर आपातकाल के दौरान प्रेस के संघर्ष और उनके योगदान की चर्चा की साथ ही डिजिटल मीडिया की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। अश्विनी वैष्णव ने अपने संबोधन में कहा, “आइए हम पिछली शताब्दी में दमनकारी ताकतों से आजादी के लिए दो बार किए गए संघर्ष में प्रेस के योगदान को याद करें। पहला, ब्रिटिश हुकूमत से आजादी पाने के लिए लंबे समय तक चली लड़ाई। दूसरा, कांग्रेस सरकार की ओर से लगाए गए आपातकाल के दिनों में लोकतंत्र को बचाए रखने की जद्दोजहद।” 

अश्विनी वैष्णव ने कहा, “हमें इन संघर्षों को नहीं भूलना चाहिए, क्योंकि इतिहास खुद को दोहराता है और जो लोग इतिहास को भूल जाते हैं, उन्हें फिर से उन्हीं चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया।” अश्विनी वैष्णव ने कहा कि भारत में एक जीवंत प्रेस है। यह मुखर है। इसमें हर तरफ की राय होती है। कुछ बहुत मजबूत हैं। कुछ मध्यमार्गी हैं। उन्होंने कहा कि देश में 35,000 से अधिक रजिस्टर्ड दैनिक समाचार पत्र हैं। हजारों समाचार चैनल हैं। और तेजी से फैल रहा डिजिटल इकोसिस्टम मोबाइल और इंटरनेट के जरिए करोड़ों नागरिकों तक पहुंच रहा है।

मीडिया और समाज के सामने प्रमुख चुनौतियां

मीडिया और समाज के सामने मौजूद प्रमुख चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए वैष्णव ने कहा कि पारंपरिक मीडिया आर्थिक पक्ष पर नुकसान झेल रहा है, क्योंकि खबरें तेजी से पारंपरिक माध्यमों से डिजिटल माध्यमों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं। उन्होंने कहा, “पारंपरिक मीडिया में पत्रकारों की टीम बनाने, उन्हें प्रशिक्षित करने, खबरों की सत्यता जांचने के लिए संपादकीय प्रक्रियाएं एवं तरीके तैयार करने और विषय-वस्तु की जिम्मेदारी लेने के पीछे जो निवेश होता है, वह समय और धन दोनों के संदर्भ में बहुत बड़ा है, लेकिन ये मंच अप्रासंगिक होते जा रहे हैं, क्योंकि प्रसार क्षमता के लिहाज से मध्यवर्ती मीडिया माध्यमों को इन पर बहुत अधिक बढ़त हासिल है।” केंद्रीय मंत्री ने कहा, “इस मुद्दे के हल की जरूरत है। सामग्री तैयार करने में पारंपरिक मीडिया मंच जो मेहनत करते हैं, उसकी भरपाई उचित भुगतान के जरिये की जानी चाहिए।” 

फर्जी खबरों और अफवाहों का तेज प्रसार 

वैष्णव ने कहा कि फर्जी खबरों और अफवाहों का तेज प्रसार भी मीडिया और समाज के समक्ष बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा, “यह न केवल मीडिया के लिए एक बड़ा खतरा है, क्योंकि यह उसकी विश्वसनीयता को कम करता है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी घातक है। चूंकि, मध्यवर्ती मंच यह सत्यापित नहीं करते हैं कि क्या पोस्ट किया गया है, इसलिए व्यावहारिक रूप से सभी मंचों पर बड़ी मात्रा में झूठी और भ्रामक जानकारी पाई जा सकती है। यहां तक ​​कि जागरूक नागरिक माने जाने वाले लोग भी ऐसी गलत सूचनाओं के जाल में फंस जाते हैं।” 

 

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