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Veer Savarkar Death Anniversary: सावरकर को किसने कहा 'वीर', जानिए बीजेपी क्यों मानती है उन्हें आइकॉन?

महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में जन्मे सावरकर बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थे और हिंदुत्व के पक्के पैरोकार थे। आज उनकी पुण्यतिथि है।

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Published on: February 26, 2022 8:22 IST
Veer Savarkar- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO Veer Savarkar

आज विनायक दामोदर सावरकर की पुण्यतिथि है। उनका निधन 26 फरवरी1966 को हुआ था। वीर सावकर का पूरा नाम था विनायक दामोदर सावरकर। वे स्वतंत्रता सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। 28 मई 1883 को जन्मे सावरकर ने पूरा जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। जानिए उनके स्वतंत्रता आंदोलन में उनका क्या योगदान है, उन्हें वीर सावरकर क्यों कहा जाता है, गांधीजी के साथ उनके संबंध कैसे थे?

महाराष्ट्र के नासिक जिले के भागुर गांव में जन्मे सावरकर बचपन से ही क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत थे और हिंदुत्व के पक्के पैरोकार थे। बीए की पढ़ाई के दौरान उन्होंने बाल गंगाधर तिलक  के अपील पर अंग्रेजी वस्तुओं का बहिष्कार किया था। सावरकर 1909 में मॉर्ले मिंटो सुधार के खिलाफ सशस्त्र विरोध की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार हुए थे। उन्होंने पानी में कूद कर भागने का प्रयास किया लेकिन फिर गिरफ्तार हो गए। 1911 में उन्हें दो बार कालापानी यानी आजीवन कारावास (50 साल) की सजा सुनाई। 1924 में उन्हें इस शर्त के साथ रिहा किया गया था कि वे राजनीति में 5 साल तक सक्रिय नहीं होंगे। लेकिन उन्होंने रत्नागिरी में अस्पृश्यता को खत्म करने लिए काम किया और सभी जातियों के हिंदुओं के साथ खाना खाने की परंपरा भी शुरू की थी।

जानिए गांधीजी से कैसे थे सावरकर के संबंध

महात्मा गांधी ने कई मौकों पर सावरकर को 'भाई' कहकर संबोधित किया है। वहीं, सावरकर के लिए गांधी 'महात्‍माजी' थे। उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की किताब के अनुसार, दोनों नेताओं के बीच दो ही मुलाकातें हुईं, वह भी गर्मजोशी भरे माहौल में। दोनों के बीच वैचारिक मतभेदों के बावजूद उनमें मनभेद नहीं था। क्योंकि दोनों का उद्देश्य एक ही था स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए ​ब्रिटिश राज को उखाड़ फेंकना।

लेखक भी थे सावरकर, अंग्रेजों ने लगाई थीं उनकी किताबों पर पाबंदियां

सावरकर खुद एक लेखक भी थे। उनके बहुत सी लिखी किताबों पर अंग्रेजों ने पाबंदियां लगा दी थी। इसमें द इंडिपेंडेंस वार ऑफ दे इंडिपेंडेंस ऑफ 1857 भी शामिल थी, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी अंग्रेज इसे नीदरलैंड्स से (1909 में) प्रकाशित होने से नहीं रोक सके थे। उन्होंने कुल 38 किताबें लिखीं जो प्रमुख रूप से मराठी और अंग्रेजी में थीं। उनकी एक पुस्तिका हिंदुत्व: हू इज हिंदू बहुत चर्चित रही थी।

भगतसिंह ने सावरकर को कहा था 'वीर' 

जाने माने स्वतंत्रता सेनानी भगतसिंह ने भी सावरकर को वीर कहा था। 1924 में उन्होंने विश्व प्रेम के लेख में लिखा था, “वे दुनिया से प्रेम करने वाले थे जो खुद को ज्वलंत उग्रवादी और कट्टरवादी कहलाने में कभी शर्मिंदा महसूस नहीं करते. ऐसे हैं वीर सावरकर” सावरकर पर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप भी लगा. लेकिन यह साबित नहीं किया जा सका।

अंतिम दिनों में लिया था समाधि का ऐलान

अपने जीवन के अंतिम समय में सावरकर ने समाधि लेने का ऐलान कर 1 फरवरी 1966 में खानपान छोड़ दिया और उसके बाद 26 फरवरी को उनका निधन हो गया। उनका कहना था कि उनके जीवन का उद्देश्य पूरा हो गया है। 1970 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत का अद्भुत सपूत बताया और उनकी सरकार ने सावरकर के नाम का स्टैम्प भी जारी किया।

हिंदू उत्थान के लिए रखते थे अपनी बात

सावरकर ने हिंदुओं के उत्थान के लिए लोगों से अपने धर्म की सात बेड़ियों को तोड़ने की अपील की थी। इसमें वेदोत्कबंदी (वेदों से आंख मूंद कर चिपके रहना), व्यवसायबंदी (जन्म के आधार पर व्यवसाय अपनाना), स्पर्शबंदी (छुआछूत की धारणा मानना) समुद्रबंदी (समुद्र पारीय यात्रा कर विदेश जाने की पाबंदी) शुद्धिबंधी (हिंदू धर्म में वापस ना आने पर पाबंदी), रोटी बंदी (अंतरजातीय लोगों के साथ भोजन करने पर पाबंदी) और बेटी बंदी (अंतरजातीय विवाह पर पाबंदी) शामिल थे।

​सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा को बीजेपी देती है खास तवज्जो

सावरकर के योगदान को कम करके आंका गया, लेकिन बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद उनके विचारों और कार्यों से आम लोगों को अवगत कराया। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने तो विनायक दामोदर सावरकर पर लिखी एक नई किताब के विमोचन के मौके पर उन्हें एक ऐसी हस्ती बताया था, जिन्हें हमेशा बदनाम करने की कोशिश की गई। वहीं बीजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने वीर सावरकर को महान नेता और स्वतंत्रता सेनानी बताया। उन्होंने यह भी दावा किया कि गांधीजी के कहने पर ही सावरकर ने अंग्रेजों के सामने 'दया की गुहार' लगाई थी। दरअसल, सावरकर कभी भी आरएसएस या जनसंघ (अब बीजेपी) के सदस्य नहीं रहे लेकिन हिंदुत्व की विचारधारा की वजह से संघ और बीजेपी में उनका नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है। हाल के वर्षों में खासकर 2014 के बाद बीजेपी सावरकर को लेकर बहुत आक्रामक हुई है और वामपंथी इतिहासकारों पर जानबूझकर सावरकर के 'चरित्र हनन' का आरोप लगाती रही है।

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