Veer Savarkar Biography: भारतीय इतिहास में वीर सावरकर का नाम हमेशा गर्व से लिया जाता है। लेकिन वर्तमान में उनके नाम पर काफी विवाद छिड़ा हुआ है। कोई सावरकर को हीरो मानता है तो कोई विलेन। इतिहास को पढ़ने के दौरान समझ में आता है कि जिस लिए सावरकर को माफीवीर कहा जाता है असल में वो खत उन्होंने अपने साथी कैदियों की रिहाई के लिए दिया था। उन्होंने अंग्रेजों के आगे सिर कभी नहीं झुकाया और ना ही कभी खुद के लिए माफी मांगी। उन्होंने अंग्रेजों को लिखे खत में एक सिफारिश करते हुए कहा था कि मेरे बजाय मेरे साथी कैदियों की रिहाई को मंजूर किया जाए। हालांकि आज हम जब वीर सावरकर की जयंती है तो हम आपको उनके जीवन के बारे में कुछ बताने वाले हैं।
सावरकर का जन्म
वीर सावरकर का जन्म 28 मई के ही दिन साल 1883 में हुई थी। उनका जन्म भागपुर के नासिक गांव में हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर है। स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, वकील, समाज सुधारक और हिंदुत्व दर्शन के सूत्रधार सावरकर के पिता का नाम दामोदर पंत सावरकर और माता का नाम यशोदा सावरकर है। सावरकर ने अपने माता-पिता को छोटी उम्र में ही खो दिया था। उनका जन्म एक हिंदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके भाई का नाम गणेश, नारायण और बहन का नाम मैनाबाई था। सावरकर अपने बहादुरी के कारण ही लोगों के बीच वीर सावरकर के नाम से जाने जाते थे। सावरकर के बड़े भाई गणेश से विनायक काफी प्रभावित थे।
विनायक सावरकर की शिक्षा
वीर सावरकर ने पुणे की फर्ग्यूसन कॉलेस से बीए की पढ़ाई की। लंदन से उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई की। इंग्लैड से ही उन्होंने लॉ की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिली और उन्होंने इंग्लैंड की ग्रेज इन लॉ कॉलेज में एडमिशन लिया। यहां उन्होंने 'इंडिया हाउस' में शरण ली। बता दें कि यह उत्तरी लंदन का छात्र निवास था। लंदन में ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए एक संगठन फ्री इंडिया सोसाइटी का गठन किया था।
विनायक सावरकर की गिरफ्तारी
विनायक सावरकर ने पढ़ाई के दिनों से ही अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ने का मन बना लिया था। इसके बाद वो स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। अंग्रेजों के नाक में उन्होंने इतना दम कर दिया था कि ब्रिटिश सरकार ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के कारण वीर सावरकर की ग्रेजुएशन की डिग्री वापस ले ली थी। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में सावरकर हथियारों के इंस्तेमाल से भी पीछे नहीं हटे। 13 मार्च 1910 को उन्होंने लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया और मुकदमा चलाने के लिए भारत भेज दिया गया। लेकिन सावरकर जहाज से निकल भागे। हालांकि फ्रांस में उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
इसके बाद उन्हें 24 दिसंबर 1910 को अंडमान जेल भेजने की सजा सुनाई गई। उन्होंने जेल में बंद अनपढ़ कैदियों को शिक्षा देने की भी कोशिश की। मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या मामले में भारत सरकार द्वारा उनपर आरोप लगाया गया था। इसके बाद कोर्ट में चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। 26 फरवरी 1966 को उनका 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया और पंचतत्व में उनका शरीर विलीन हो गया।