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क्या होती है रैट माइनिंग जिसके सहारे हैं 41 मजदूर, कैसे की जा रही? VIDEO के जरिए जानिए सबकुछ

भारी भरकम मशीनों के फेल हो जाने के बाद अब सिलक्यारा सुरंग के अंदर फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट माइनर्स को लगाया गया है। अब सबकी उम्मीद इन्हीं रैट माइनर्स पर टिक गई हैं।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Nov 28, 2023 11:06 IST, Updated : Nov 28, 2023 16:47 IST
uttarkashi tunnel
Image Source : PTI अब जल्द ही सिलक्यारा टनल में रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा हो सकता है।

उत्तरकाशी की सिलक्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी एजेंसियां युद्ध स्तर पर काम कर रहीं हैं। रेस्क्यू के आज 17वें दिन का अपडेट ये है कि अमेरिकी ऑगर मशीन के मलबे को टनल के अंदर से पूरी तरह बाहर निकाल लिया गया है और अब 45 फीट से आगे की खुदाई हाथों के जरिए रैट माइनर्स कर रहे हैं। भारी भरकम मशीनों के फेल हो जाने के बाद अब सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए रैट माइनर्स को लगाया गया है जो चूहे की तरह कम जगह में तेज खुदाई करने वाले विशेषज्ञों की एक टीम है। अब इन्हीं के भरोसे सुरंग के 41 मजदूरों की जिंदगी है। ये लोग आगे की खुदाई हाथ से कर रहे हैं जिसके लिए इनके पास हथौड़ा, साबल और खुदाई करने वाले कई टूल्स हैं।

रैट माइनिंग के सहारे 41 जिंदगियां

रैट माइनर्स तकनीक के जरिए अब टनल में मैन्युअल ड्रिलिंग की जा रही है। इस काम में 12 एक्सपर्ट्स की टीम लगी है जो रोटेशन के आधार पर 24 घंटे खुदाई कर रही है। इस तरकीब से अब तक 1.9 मीटर की ड्रिलिंग की जा चुकी है। अब सबकी उम्मीद इन्हीं रैट माइनर्स पर टिक गई हैं हालांकि दूसरे प्लान्स पर भी काम चल रहा है। पहाड़ के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग का काम भी तेजी से चल रहा है। इस तकनीक के जरिए अबतक 36 मीटर की वर्टिकल ड्रिलिंग की जा चुकी है।

रैट माइनिंग क्या है?

यह माइन‍िंग का एक तरीका है जिसका इस्‍तेमाल करके संकरे क्षेत्रों से कोयला निकाला जाता है। 'रैट-होल' टर्म जमीन में खोदे गए संकरे गड्ढों को दर्शाता है। यह गड्ढा आमतौर पर सिर्फ एक व्यक्ति के उतरने और कोयला निकालने के लिए होता है। एक बार गड्ढे खुदने के बाद माइनर या खनिक कोयले की परतों तक पहुंचने के लिए रस्सियों या बांस की सीढ़ियों का उपयोग करते हैं। फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे आदिम उपकरणों का इस्‍तेमाल करके मैन्युअली निकाला जाता है।

दरअसल, मेघालय में जयंतिया पहाड़ियों के इलाके में बहुत सी गैरकानूनी कोयला खदाने हैं लेकिन पहाड़ियों पर होने के चलते और यहां मशीने ले जाने से बचने के चलते सीधे मजदूरों से काम लेना ज्यादा आसान पड़ता है। मजदूर लेटकर इन खदानों में घुसते हैं। चूंकि, मजदूर चूहों की तरह इन खदानों में घुसते हैं इसलिए इसे ‘रैट माइनिंग’ कहा जाता है। 2018 में जब मेघालय में खदान में 15 मजदूर फंस गए थे, तब भी इसी रैट माइनिंग का सहारा लिया गया था।

कैसे की जा रही रैट माइनिंग?

  1. एक एक्सपर्ट ड्रिलिंग करेगा
  2. दूसरा हाथों से मलबा निकालेगा
  3. एक आगे का रास्ता बनाएगा
  4. दूसरा मलबे को ट्रॉली में भरेगा
  5. बाहर खड़े एक्सपर्ट्स ट्रॉली खींचेंगे
  6. एक बार में 6-7 किलो मलबा बाहर लाएंगे
  7. 48 मीटर से आगे खुदाई हाथ से हो रही
  8. रैट माइनर्स के पास हथौड़ा, साबल हैं
  9. खुदाई के दूसरे पारंपरिक टूल्स भी

देखें वीडियो-

रेस्क्यू में कौन-कौन एजेसिंया शामिल?

आर्मी की इंजिनियरिंग कोर, एयर फोर्स, NDRF, BRO, इंडियन रेलवे, SJVNL, RVNL BSNL और SDRF

वैसे आज उत्तरकाशी में चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन में मौसम कुछ खलल डाल सकता है क्योंकि मौसम विभाग ने आज यहां बारिश का येलो अलर्ट जारी किया है। इधर उत्तरकाशी में चल रहे सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर है। पीएम ने लोगों से सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए प्रार्थना करने की अपील की है। प्रधानमंत्री मोदी कल तेलंगाना में थे जहां उन्होंने उत्तरकाशी के टनल में फंसे मजदूरों के रेस्क्यू पर भी बात की। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि टनल में फंसे श्रमिकों के जीवन में जल्द से जल्द रोशनी आए, इसके लिए हम सभी प्रार्थना करें।

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