उत्तराखंड का जोशीमठ पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है। यहां के घरों, इमारतों और सड़कों में दरार आने का सिलसिला लगातार जारी है, जिससे लोग दहशत में हैं। प्रशासन और सरकार हाई अलर्ट पर है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी स्थिति पर अपडेट ले रहे हैं। प्रशासन खतरनाक इमारतों को गिराने की तैयारी में हैं। पवित्र दर्शन स्थल बद्रीनाथ धाम के रास्ते में पड़ने इस शहर के 131 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। जोशीमठ में 723 इमारतों में दरारें आ गई हैं। इसमें रेड मार्किंग वाले 600 घरों को तोड़ा जा सकता है।
इस बीच, कई एक्सपर्ट्स ने जोशीमठ पर पुरानी रिपोर्ट्स पर प्रकाश डाला है, जो अब सही साबित होती दिख रही हैं। स्थानीय लोग घरों और होटलों के बढ़ते बोझ और तपोवन विष्णुगढ़ NTPC पनबिजली परियोजना सहित मानव निर्मित कारकों को दोषी ठहरा रहे हैं। हालांकि, इन सब में ये भी ध्यान रहे कि जोशीमठ अकेला नहीं है, जो इस आपदा को झेल रहा है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में इस तरह की और भी आपदाएं आ रही हैं। पौड़ी, बागेश्वर, उत्तरकाशी, टिहरी और रुद्रप्रयाग का भी यही हश्र हो सकता है। इन जिलों के स्थानीय लोगों को जोशीमठ जैसे संकट का खौफ है।
टिहरी
टिहरी जिले के नरेंद्रनगर विधानसभा क्षेत्र के अटाली गांव से होकर गुजरने वाली ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन ने स्थानीय लोगों की दिक्कतें बढ़ा दी हैं। अटाली के एक छोर पर भारी भूस्खलन की वजह से दर्जनों घरों में दरारें आ गई हैं। गांव के दूसरे छोर पर सुरंग में चल रहे ब्लास्टिंग के काम से भी मकानों में भारी दरारें आ गई हैं। वहां के निवासियों का कहना है कि टनल में जब ब्लास्टिंग होती है, तो उनका घर हिलने लगता है। गांव वालों का आरोप है कि प्रशासन हर छह महीने में मीटिंग करता है, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। गांव के लोग अटाली गांव से अपने पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। अटाली के साथ गूलर, व्यासी, कौडियाला और मलेथा गांव भी ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन परियोजना से प्रभावित हैं।
पौड़ी
उत्तराखंड के पौड़ी में भी टिहरी जैसे हालात हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि रेलवे प्रोजेक्ट के कारण उनके घरों में दरारें आ गई हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन के सुरंग निर्माण कार्य से श्रीनगर के हेदल मोहल्ला, आशीष विहार और नर्सरी रोड सहित अन्य घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं। हेदल मोहल्ला के लोगों का कहना है कि यहां पर लोग खौफ के साये में रह रहे हैं। वहीं, आशीष विहार निवासी का कहना है कि रेलवे दिन-रात ब्लास्टिंग करता है। कंपन के कारण घरों में दरारें दिखाई देने लगी हैं। लोगों की मांग है कि सरकार को जल्द फैसला लेना होगा और मैनुअली काम करना होगा, ताकि उनके घरों को नुकसान न पहुंचे।
बागेश्वर
बागेश्वर के कपकोट के खरबगड़ गांव पर संकट के बादल छाए हैं। इस गांव के ठीक ऊपर जलविद्युत परियोजना की सुरंग के ऊपर पहाड़ी में गड्ढे बना दिए गए हैं और जगह-जगह से पानी का रिसाव हो रहा है। इससे गांव वालों में दहशत का माहौल है। कपकोट में भी भूस्खलन की खबरें आई हैं। इस गांव में करीब 60 परिवार रहते हैं। खरबगड़ निवासी का कहना है कि टनल से पानी टपकने की समस्या लंबे समय से है, लेकिन सुरंग जैसा गड्ढा कुछ समय पहले से बनना शुरू हो गया है। खरबाद गांव के ऊपर एक सुरंग है और नीचे रेवती नदी बहती है।
उत्तरकाशी
उत्तरकाशी के मस्तदी और भटवाड़ी गांव खतरे के निशान पर हैं। जोशीमठ संकट को लेकर मस्तदी के ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। 1991 में आए भूकंप ने इमारतों में दरारें छोड़ दीं थीं। पूरा उत्तरकाशी जिला प्राकृतिक आपदा की चपेट में है। जिला मुख्यालय से महज 10 किमी दूर यहां के निवासियों का कहना है कि गांव धीरे-धीरे धंस रहा है। घरों में दरारें अभी से नजर आने लगी हैं। 1991 में आए भूकंप के बाद मस्तदी भूस्खलन की चपेट में आ गया। 1995 और 1996 में घरों के अंदर से पानी निकलने लगा, जो अब भी जारी है। उस समय प्रशासन ने गांव का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण भी किया था।
वहीं, उत्तरकाशी के भटवाड़ी गांव की भौगोलिक स्थिति जोशीमठ के समान है। इस गांव के नीचे भागीरथी नदी बहती है और गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग ठीक ऊपर है। 2010 में भागीरथी में कटाव आने से 49 घर प्रभावित हुए थे। जो इमारतें सुरक्षित थीं, वे अब असुरक्षित हो गई हैं, क्योंकि हर साल दरारें बढ़ती जा रही हैं। साल 2010 में गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का एक हिस्सा नदी में डूब गया था और प्रभावित 49 परिवारों को प्रशासन की ओर से अस्थायी रूप से अन्य जगह भेज दिया था। प्रत्येक को 2 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया था। भूवैज्ञानिकों के शुरुआती और विस्तृत सर्वे के बाद प्रशासन ने सरकार को एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें 49 परिवारों के स्थायी पुनर्वास की सिफारिश की गई थी, लेकिन अब तक कुछ नहीं हो पाया है।
रुद्रप्रयाग
रुद्रप्रयाग का मरोदा गांव ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण का खामियाजा झेल रहा है। गांव में सुरंग निर्माण के कारण कुछ घर धराशायी हो गए हैं और कई घर नष्ट होने की कगार पर हैं। जिन प्रभावित परिवारों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला है, वे आज भी जर्जर मकानों में रह रहे हैं। अगर जल्द ही ग्रामीणों को यहां से नहीं हटाया गया तो बड़ा हादसा हो सकता है। रेलवे का निर्माण कार्य जोरों पर है। पहाड़ों में भूस्खलन की संभावनाओं को देखते हुए ज्यादातर ट्रैक सुरंगों के जरिए होंगे। सुरंगों के निर्माण के चलते ही गांव के घरों में दरारें पड़ गई हैं। मरोदा गांव में कभी 35 से 40 परिवार रहते थे, लेकिन अब 15 से 20 परिवार ही हैं।