Highlights
- मां की कोख से 'मां' बनेंगी बेटियां
- यूटरस ट्रांसप्लांट के लिए सक्षम बना IKDRC
- भारत की लगभग 15 प्रतिशत महिलाओं में बांझपन की समस्या
इंस्टीट्यूट ऑफ किडनी डिजीज एंड रिसर्च सेंटर (IKDRC) देश का पहला सरकारी यूटरस ट्रांसप्लांट सेंटर बन गया है। सबसे बड़ी बात की IKDRC दुनिया का पहला हॉस्पिटल भी बन गया है जहां एक दिन में दो यूटरस ट्रांसप्लांट हुए हैं। डॉटर्स डे के दिन यहां दो अलग-अलग AUFI रोगियों का यूटरस ट्रांसप्लांटग किया गया। सबसे बड़ी बात कि इन बेटियों के शरीर में उनकी माताओं का ही यूटरस ट्रांसप्लांट किया गया। रविवार की देर रात यह ऑपरेशन सफलता पूर्वक किया गया। यह ऑपरेशन तीन चरणों में पूरा हुआ। पहले चरण में यूटरस को डोनर के शरीर से निकाला गया। दूसरे चरण में अंगों की बेंच सर्जरी की गई और तीसरे चरण में यूटरस को ट्रांसप्लांट किया गया। यह सब कुछ डॉ विनीत मिश्रा की अध्यक्षता में की गई।
पहली मरीज 28 वर्षीय रीना
पहला ऑपरेशन 28 वर्षीय रीना वानप्रिया का था, जो एक गृहिणी हैं जिनकी तीन साल पहले शादी हुई थी। जो अनियमित मासिक धर्म और डिडेलफिस गर्भाशय से पीड़ित थीं। डिडेलफीस एक दुर्लभ जन्मजात बीमारी होती है जहां एक महिला दो गर्भाशय के साथ पैदा होती है। इसे आमतौर पर दोहरा गर्भाशय कहा जाता है। यह गर्भावस्था की जटिलताओं और दर्दनाक माहवारी का कारण बन सकती है। हालांकि, रीना की 50 वर्षीय मां ने बेटी को मातृत्व के आनंद का अनुभव करने में मदद करने के लिए अपना गर्भाशय दान कर दिया।
दूसरी मरीज 22 वर्षीय तबस्सुम बानो
दूसरी मरीज 22 वर्षीय तबस्सुम बानो थीं। तबस्सुम बानो, जिनकी शादी को डेढ़ साल हो चुके हैं और जिन्हें मेयर-रोकितांस्की-कुस्टर-हौसर (MRKH) सिंड्रोम है, जो एक महिला प्रजनन प्रणाली रोग है। इस बीमारी में महिला या तो बिना योनि के पैदा होती है या फिर उसकी योनि अवविकसित होती है। इसलिए वह गर्भधारण करने में सक्षम नहीं होती। लेकिन बेटी की इस समस्या का समाधान तबस्सुम की 48 वर्षीय मां ने अपना गर्भाशय दान देकर कर दिया। डॉटर्स डे के दिन एक मां ने अपनी बेटी को अपना यूटरस देकर उसके जीवन को मातृत्व के सुख से भर दिया।
अगले 4-5 महीनों में गर्भधारण के लिए हो जाएंगी तैयार
डॉक्टरों ने बयान में कहा कि ट्रांसप्लांट के अगले डेढ़ महीनों में नियमित मासिक धर्म शुरू होने की उम्मीद है और संभवत: अगले 4-5 महीनों में गर्भधारण हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार भारत की लगभग 15 प्रतिशत महिला आबादी में बांझपन से संबंधित समस्याएं हैं और 5000 में से 1 महिला में गर्भाशय नहीं है।