Highlights
- टीबी के इलाज के दौरान बीच-बीच में जांच जरूरी
- मरीज को पैष्टिक और अधिक खाना खाना चाहिए
- मरीज को एक दिन भी दवा नहीं छोड़नी चाहिए
Tuberculosis TB Disease: टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस बीमारी आजकल बेहद आम हो गई है। इसका इलाज सही समय पर कराकर इससे निजात पाई जा सकती है। लेकिन लोगों के मन में बीमारी को लेकर डर बना रहता है और वह इससे जुड़े तमाम सवालों के जवाब तलाशते हैं। इसी समस्या का समाधान करने के लिए हम इस टीबी सीरीज में आपके हर सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं। ये टीबी पर लिखे गए लेख का PART-2 है। इससे पिछला पार्ट पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।
आपके सवालों का जवाब देने के लिए हमने जाने माने डॉक्टर अजय कोच्चर से बात की है। वह ट्यूबरकुलोसिस और चेस्ट डिजीज स्पेशलिस्ट हैं। वह दिल्ली के संजीवन हॉस्पिटल के अलावा अपने टीबी सेंटर में भी मरीजों का इलाज करते हैं। डॉक्टर कोच्चर के पास करीब 34 साल का अनुभव है। वह 1988 से टीबी के मरीजों का इलाज कर रहे हैं। हमने डॉक्टर कोच्चर से टीबी पर विस्तार से बात की है, जिसमें पूरी कोशिश की गई है कि कोई भी सवाल न छूटे और आपको पूरी जानकारी मिले। ये आर्टिकल का PART-2 है।
11. टीबी के मरीज के आसपास वाले लोगों को अगर उसकी बीमारी का पता न चले, तो क्या ये नुकसानदेह है?
जवाब- शुरू में दिक्कत हो सकती है। इलाज के तीन हफ्ते बाद टीबी नॉन इनफेक्शियस हो जाता है, यानी इसके बाद मरीज से किसी दूसरे को टीबी नहीं हो सकता। तो ऐसे में इसके बाद अगर वो किसी को अपनी बीमारी के बारे में न भी बताए, तो भी उससे कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन शुरू में वो दूसरों को टीबी दे सकता है, वो इनफेक्शियस होता है।
12. बहुत बार होता है, लोग इसके बारे में किसी को बताने में शर्म महसूस करते हैं, और अकेले ही सब झेलते हैं, इसका उनपर किस तरह प्रभाव पड़ता है?
जवाब- जो लोग बात नहीं करते वो तनाव में चले जाते हैं। लॉन्ग टर्म वाली बीमारी में मनोचिकित्सक की मदद जरूरी होती है। अगर वो अवसाद में रहते हैं, तो ये जरूरी है। हम अगर 10 लोगों को मनोचिकित्सक के पास जाने के लिए कहते हैं तो उनमें से 1 जाता है। लोग कहते हैं कि डॉक्टर साहब हमें जरूरत ही नहीं है। जबकि जरूरत होती है। जाना चाहिए। ये लंबे समय तक रहने वाली बीमारी है। अगर चले जाएंगे, तो वो एक आद गोली देते हैं, जिससे मस्तिष्क शांत रहता है।
13. क्या परिवार को इस बारे में नहीं बताना सही कदम है?
जवाब- अपने करीबी लोगों को बता सकते हैं, लेकिन बाहर सबको बताने की जरूरत नहीं है। जैसे ही पता चले कि टीबी है और इलाज शुरू हो गया है, तो खुद को एक महीने के लिए क्वारंटाइन कर लें। कोविड में भी करते हैं न। क्वारंटाइन अवधि इसलिए होती है, ताकि बीमारी दूसरों को न दे दें। भारत में ये सबसे बड़ी समस्या है। इसलिए भारत दुनिया में सबसे बड़ा टीबी का हब है। आज से नहीं बल्कि बीते 30 साल से भारत पहले स्थान पर है। हम इस मुश्किल का अभी समाधान नहीं निकाल पाए हैं। भारत में हर साल 4.5 लाख से ज्यादा लोग टीबी से अपनी जान गंवाते हैं। जबकि सारी दुनिया में 14-15 लाख मौत होती हैं। हमारा एक तिहाई है। इतने लोग तो कोविड में 2.5 साल में मरे हैं। तो टीबी से तो बहुत ज्यादा लोग जान गंवा रहे हैं। टीबी का इलाज तुरंत शुरू कराना चाहिए और खुद को क्वारंटाइन करना चाहिए। इसके बाद बाहर भी जा सकते हैं और दूसरों को भी बीमारी नहीं देंगे। वैसे क्वारंटाइन के लिए तीन हफ्ते काफी होते हैं लेकिन हम एक महीने तक रहने की सलाह देते हैं।
क्वारंटीन होना इस बात पर भी निर्भर करता है कि टीबी कहां है। जैसे अगर गांठों वाला टीबी है, या आंतों वाला है। लेकिन संक्रामक केवल फेफड़ों वाला टीबी होता है, जो फैल सकता है। या जिन्हें सांस से जुड़ा होता है। ऐसे में फेफड़ों को छोड़कर अगर कहीं और टीबी है, तो कोई दिक्कत नहीं है।
14. इलाज के दौरान मरीज को कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए?
जवाब- सबसे जरूरी चीज हैं-
नंबर 1- अच्छा खाना खाना चाहिए। पैष्टिक और उच्च प्रोटीन वाला खाना।
नंबर 2- अपनी एक भी समय की दवा नहीं छोड़नी है। अगर ऐसा करेंगे, तो हम पीछे चले जाएंगे। कोर्स और लंबा हो जाएगा।
15. अगर किसी ने कोर्स पूरा कर लिया है, तो उसके बाद उसे कौन सी सावधानी बरतनी चाहिए/ बीमारी से एक बार ठीक होने के बाद दोबारा ये ना हो, इसके लिए जीवन भर किन बातों का ध्यान रखें?
जवाब- टीबी के इलाज के बाद प्रमुख समस्या इसके दोबारा आने की होती है। इसके पीछे का कारण इम्युनिटी कम होना होता है। यानी प्रतिरक्षा प्रणाली के कमजोर होने पर मरीज के एक बार ठीक होने के बाद भी उसे दोबारा टीबी हो सकता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि मरीज खाना ठीक से नहीं खा रहा होता। लोग पौष्टिक खाना नहीं खाते, वो स्वादिष्ट खाना खाते हैं। इसलिए घर का पैष्टि खाना सबसे सही है। ठीक होने के बाद जरूरी है कि ज्यादा खाना खाएं।
बीमारी के दोबारा होने का खतरा बना रहता है। अगर एक बार टीबी आ जाए, तो दूसरी बार होना आसान हो जाता है। उदाहरण के लिए, अगर एक शख्स है, जिसे कभी टीबी नहीं हुआ। जबकि दूसरा शख्स है, जिसे टीबी हो चुका है। हम अगर दोनों के ऊपर टीबी के बैक्टीरिया डालें, तो जिसे पहले टीबी हो चुका है, वो बैक्टीरिया को जल्दी कैच (पकड़) कर लेगा। टीबी के मरीज के संपर्क में आने पर टीबी होता है। और भारत के तो हर कोने में हमें टीबी बैक्टीरिया के संपर्क में आने का खतरा रहता है। यहां टीबी के बहुत मरीज हैं।
अगर टीबी का मरीज कहीं से होकर गया है, वो बैक्टीरिया छोड़कर गया है, तो उसके संपर्क में आने वाले को बीमारी हो सकती है। खासतौर पर उन लोगों को जिनका शरीर कमजोर है। इसलिए हम सलाह देते हैं कि इलाज के दौरान वजन बढ़ाना है और खाना ज्यादा खाना है। और जो हम बता रहे हैं, वो खाओ। उच्च प्रोटीन वाला खाना खाओ। अगर इलाज के दौरान अच्छे खाने और एक्सरसाइज का ध्यान रखा जाए, तो मरीज को इलाज के आखिर में या इलाज पूरा होने के बाद कभी ये महसूस भी नहीं होगा कि उसे टीबी हुआ था। इसलिए ज्यादा एक्सरसाइज और ज्यादा खाना बेहतर रहता है।
16. क्या टीबी के दौरान दौड़ लगाना (रनिंग) सही रहता है?
जवाब- अगर मरीज थोड़ा ठीक हो जाए, उसका वजन थोड़ा बढ़ जाए, तो उसके बाद हम एक्सरसाइज शुरू कराते हैं। क्योंकि अगर वो पहले से कमजोर है और हम एक्सरसाइज भी शुरू करा दें, तो वो और कमजोर हो जाएगा। इसलिए पहले वजन बढ़ाने और शरीर को मजबूत करने की सलाह दी जाती है। और इसके बाद ही हम एक्सरसाइज शुरू कराते हैं। शुरुआत हम जॉगिंग से करते है और उसके बाद धीरे-धीरे सबकुछ कराते हैं।
उदाहरण के लिए अगर मरीज की लंबाई 5 फुट 10 इंच है, तो वजन 72 किलोग्राम तो होना ही चाहिए। अगर लंबाई 5 फुट 11 इंच है, तो भी वजन 72 किलोग्राम के करीब ही होना चाहिए। इतना ही वजन रखना चाहिए। जबकि मरीजों का वजन काफी कम होता है। टीबी आने का एक बड़ा कारण शरीर में आई कमजोरी होता है। जिसके कारण शरीर टीबी के बैक्टीरिया को जल्दी पकड़ लेता है।
17. जैसे किसी का 9 महीने का कोर्स है, उसे हर तीन महीने में दवा लेने बुलाया जाता है, तो क्या हर समय अंतराल के बाद जांच की जाती है? कि संक्रमण कितना कम हुआ है। या फिर बिना चेक अप के लगातार 9 या 12 महीने तक दवा दी जाती है?
जवाब- अकसर डॉक्टर मरीज को दवा देकर कह देते हैं कि 2 महीने बाद आना या 6 महीने बाद आना। लेकिन ऐसा हम नहीं करते। मरीज को 15 से 20 दिन बाद बुलाकर उसकी जांच करनी चाहिए। अगर डॉक्टर को लगता है कि मरीज में सुधार हुआ है, तो जांच कराकर देखना होता है। ये निर्भर करता है कि बीमारी कहां पर है। ये बात हमें शुरू में ही पता चल जाती है कि बीमारी शरीर के किस हिस्से में है। जैसे अगर ब्रेन में है, तो हम एमआरआई कराते हैं। हड्डियों में है, तो एमआरआई कराकर देखते हैं। फेफड़ों में है, तो छाती का एक्स-रे कराकर देखते हैं। पेट में है, तो अल्ट्रासाउंड कराकर देखते हैं।
हम बीच-बीच में भी जांच करते हैं। ये नहीं कि कोर्स पूरा होने के बाद ही जांच होगी। क्योंकि बीच-बीच में कुछ मरीजों में सुधार अच्छा नहीं हो रहा होता, जैसे 2 महीने के पीरियड में। तो ऐसे में हम शुरू वाले चरण में दवा बढ़ा देते हैं। ये मरीज पर निर्भर करता है। किसी का अच्छा रिजल्ट आ रहा होता है, लेकिन वो हमें पता चलेगा तभी हम जान पाएंगे। क्योंकि कई बार ये होता है कि मरीजों में कोर्स के दौरान भी सुधार नहीं हो रहा होता और इस बीच जांच भी नहीं होती, तो मरीजों की हालत इस वजह से भी खराब हो जाती है। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। बीच-बीच में जांच होना बहुत जरूरी है।
18. कुछ लोगों का 9 महीने का कोर्स होता है, तो वहीं कुछ का 12 महीने क्यों चलता है?
जवाब- बहुत सी जगह 9 महीने भी इलाज नहीं होता, बल्कि 6 महीने का ही कोर्स रखते हैं। जबकि 6 महीने में आधे लोग ठीक नहीं हो पाते। तो उन्हें जब दोबारा टीबी होता है, तो दोबारा इलाज की जरूरत पड़ती है। ऐसे में किसी-किसी को ही 9 महीने के कोर्स के लिए कहा जाता है। लेकिन अगर 9 महीने के कोर्स में भी आराम न मिले, तो कोर्स 12 महीने का हो जाता है। जब तक मरीज पूरी तरह ठीक न हो जाए, तब तक इलाज जारी रखना चाहिए।
19. कैसे पता चलेगा कि मरीज ठीक हो रहा है?
जवाब- ये जांच कराने से ही पता चलेगा। इसलिए बीच-बीच में जांच कराना काफी जरूरी होता है।
20. पीड़ित व्यक्ति से उसके आसपास वालों को क्या ये बीमारी संक्रमित कर सकती है, अगर हां तो किस तरह?
जवाब- टीबी संक्रामक रोग है, जैसे कोविड एक शख्स से दूसरे में जाता है, ठीक वैसे ही टीबी भी हवा के जरिए एक से दूसरे शख्स को संक्रमित करता है। बीमारी हवा के जरिए शुरुआत में फैलती है। इलाज के तीन हफ्ते बाद वह नॉन इन्फेक्शियस हो जाता है, यानी इसके बाद मरीज से किसी दूसरे को टीबी नहीं होता। ये बीमारी केवल हवा के जरिए फैलती है, वो भी शुरुआत में। और बर्तन में खाने या किसी और चीज से नहीं फैलती।