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IMF Report: क्या आप फिजूलखर्च करते हैं? अगर हां तो हो जाएं सावधान… बुरा दौर आने वाला है

IMF रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले वित्त वर्ष में वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर 2.7 फीसदी रहने का अनुमान है। अमेरिका से लेकर विश्व के सभी देशों की विकास दर कम रहने की संभावना है।

Reported By : Vivek Kumar Mishra Edited By : Sushmit Sinha Published : Oct 12, 2022 23:25 IST, Updated : Oct 12, 2022 23:25 IST
IMF Report
Image Source : AP IMF Report

Highlights

  • क्या आप फिजूलखर्च करते हैं?
  • अगर हां तो हो जाएं सावधान
  • आर्थिक मंदी आने वाली है

क्या आप फिजूलखर्च करते हैं? क्या आप अपने भविष्य के लिए पैसे की बचत नहीं करते? अगर इसका जवाब हां है तो आपको अभी से सचेत हो जाने की जरूरत है। क्योंकि आने वाले दिनों में पूरे विश्व में आर्थिक मंदी के संकेत मिल रहे हैं। ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट कह रही है। IMF रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले वित्त वर्ष में वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर 2.7 फीसदी रहने का अनुमान है। अमेरिका से लेकर विश्व के सभी देशों की विकास दर कम रहने की संभावना है।

वहीं भारत की विकास दर 6.8% रहने की संभावना IMF ने जताई है। IMF की इस रिपोर्ट के बाद पूरी दुनिया के लोग आशंकित है। सबको अपने भविष्य की चिंता सता रही है। रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से चल रहे युद्ध और कोरोना महामारी ने पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है। आपको बता दें आज के समय में पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था एक दूसरे पर निर्भर है। विश्व के किसी भी कोने में हो रही हलचल से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। 

क्या होती है आर्थिक मंदी? 

जब किसी देश की जीडीपी लगातार दो तिमाही से अधिक समय तक गिरती रहे, तब उस स्थिति को अर्थशास्त्र में मंदी कहा जाता है। आसान शब्दों में कहें तो जब बाजार में उत्पादन बहुत ज्यादा हो, लेकिन मांग बहुत कम तब वह स्थिति मंदी का रूप ले लेती है और अगर कमोबेश वैसी ही स्थिति पूरी दुनिया में आ जाए तब उसे वैश्विक मंदी कहा जाता है। 

मंदी का आम लोगों पर असर 

आर्थिक मंदी सीधे-सीधे लोगों को प्रभावित करती है। उस दौरान लोगों के अंदर नौकरी जाने का डर बना रहता है। कंपनियों और फैक्ट्रियों के मंदी की चपेट में आ जाने के बाद रोजगार के नये अवसर खत्म हो जाते हैं। मंहगाई में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है और हाथ में पैसे न होने के कारण लोगों की क्रय शक्ति कम हो जाती है। 

1929 का ग्रेट डिप्रेशन

दुनिया में आर्थिक मंदी तो कई बार आई, लेकिन 1929 की आर्थिक मंदी जिसे हम ग्रेट डिप्रेशन के नाम से जानते हैं उस तरह की मंदी कभी नहीं आई। 1929 के उस मंदी को अबतक की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी माना जाता है। आपको बता दें, उस समय पूरे वैश्विक अर्थव्यवस्था में भयावह स्थिति थी। उस समय फैक्ट्रियों में उत्पादन ज्यादा हो रहा था, लेकिन मांग न के बराबर थी। अमेरिका का शेयर बाजार धाराशायी हो गया था। अमेरिका ने आयात शुल्क बढ़ा दिए जिसके बाद पूरा विश्व व्यपार बुरी तरह प्रभावित हुआ था। यूरोपीय देश पूरी तरह से अमेरिकी कर्ज के बोझ तले दबे हुए थे। मात्र 3 साल के अंदर एक लाख से अधिक कंपनियां बंद हो गई और 1933 आते-आते 4 हजार से अधिक बैंकों पर ताला लग गया था। ये कहना गलत नहीं होगा कि उस महामंदी ने कई देशों में अराजकता की स्थिति में धकेल दिया था और उसी का नतीजा था कि यूरोप समेत कई देशों में भयंकर पलायन शुरू हो गया था।

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