Highlights
- वाराणसी में काशीविश्वनाथ कोरिडोर के बाद अब उज्जैन में महाकाल लोक कोरिडोर की सौगात
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कराया मंदिर का जीर्णोद्धार
- देवता भी गाते हैं महाकाल दरबार की अद्भुत महिमा
Mahakal Corridor:उज्जैन के जिस महाकालेश्वर मंदिर को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकाल लोक कोरिडोर की सौगात दी है, उसका इतिहास अति गौरवशाली, भव्य, अनुपम, अनूठा और अद्वितीय है। हिंदू के अन्य धार्मिक स्थलों की तरह ही यह महास्थल भी मुस्लिम शासकों के अत्याचार का शिकार हुआ था, लेकिन इसके बावजूद श्रीमहाकालेश्वर का बाल बांका तक नहीं हुआ। यही वजह है कि उज्जैन के बाबा महाकाल सबकी रक्षा करते हुए आज भी अक्षुण खड़े हैं। महाकालेश्वर मंदिर भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आस्था का सबसे बड़ा केंद्र है। श्रीमहाकाल को कालों का भी काल कहा जाता है।
महाकाल कोरिडोर से पहले पीएम मोदी वाराणसी में बाबा विश्वनाथ कोरिडोर भी भक्तों को समर्पित कर चुके हैं, जिसे भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार काशी दुनिया का सबसे प्राचीनतम नगर है। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार साक्षात भगवान शिव इस नगरी में कभी निवास करते थे। ठीक ऐसी ही महिमा उज्जैन के महाकाल बाबा की है। वैदिक ग्रंथों और पुराणों के अनुसार भगवान महाकाल स्वयं उज्जैन नगरी में विराजमान हुए थे। श्रीमहाकाल त्रिकालदर्शी और कालजयी हैं। ऐसी मान्यता है कि तन, मन से उनकी भक्ति करने वाला और उनके दरबार में जाकर शीष झुकाने वाला कभी "अकाल मृत्यु" को प्राप्त नहीं होता तभी उनके बारे में कहावत है कि "अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चंडाल का, काल उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का"....। भगवान महाकाल 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं, जिनकी महिमा अपरंपार है।
25 लाख वर्ष पहले महाकाल मंदिर की हुई स्थापना
महाकाल मंदिर की स्थापना का इतिहास आप को गर्व की अनुभूति से आनंदित कर देगा। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार मध्यप्रदेश की अध्यात्मिक नगरी उज्जैन के महाकाल मंदिर की स्थापना आज के करीब 25 लाख वर्ष पहले हुई थी। यानि धरती पर तब प्री-हिस्टोरिक पीरियड(पूर्व-ऐतिहासिक काल) चल रहा था। प्री-हिस्टोरिक पीरियड आज से 2.5 से 3.0 मिलियन वर्ष पहले अस्तित्व में था। इसी दौरान प्रजापिता ब्रह्माजी ने स्वयं धरती पर आकर श्रीमहाकलेश्वर धाम की स्थापना की थी। इससे महाकालेश्वर मंदिर की महिमा और महात्म्य का अंदाजा लगाया जा सकता है। श्रीमहाकालेश्वर मंदिर की वेबसाइट पर भी प्री-हिस्टोरिक पीरियड में श्री ब्रह्माजी द्वारा महाकाल मंदिर की स्थापना किए जाने का जिक्र है। इसके लिए पौराणिक साक्ष्यों का हवाला भी दिया गया है।
गुप्तकाल से पहले लकड़ी के खंभों पर टिका था महाकाल दरबार
छठी शताब्दी ई. में इस बात का उल्लेख है कि महाकाल मंदिर की कानून व्यवस्था और उसकी देखभाल के लिए राजा चंदा प्रद्योत ने प्रिंसा कुमारसेन की नियुक्ति की थी। महाकाल मंदिर में तीसरी-चौथी ई.पूर्व के कुछ सिक्के भी मिले थे, जिन पर भगवान शिव (महाकाल) की आकृति बनी थी। कई प्राचीन भारतीय महाकाव्य ग्रंथों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार मंदिर बहुत ही शानदार और भव्य था। इसकी नींव और चबूतरे को पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था। गुप्त काल से पहले यहां कि मंदिरों पर कोई शिखर नहीं थे। मंदिरों की छतें ज्यादातर सपाट थीं। संभवतः इसी कारण से रघुवंशम में कालिदास ने इस मंदिर को 'निकेतन' कहा है। मंदिर के पास ही तत्कालीन राजा का महल था।
कालिदास की कालजयी रचना मेघदूतम में श्रीमहाकाल का है जिक्र
भारत के महाकवि कालिदास की सुप्रसिद्ध रचना मेघदूतम (पूर्व मेघ) के प्रारंभिक भाग में भी श्रीमहाकाल मंदिर का एक आकर्षक विवरण है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यहां का चंडीश्वर मंदिर भी तत्कालीन कला और वास्तुकला का अनूठा उदाहरण रहा होगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उस शहर के मुख्य देवता (महाकाल) का मंदिर कितना शानदार रहा होगा, जो सोने से मढ़ा हुआ बहुमंजिला महल था और इसकी इमारतों में शानदार कलात्मकता व भव्यता थी। मंदिर का प्रवेश द्वार एक ऊंची प्राचीर से घिरा हुआ था। सांझ के समय जगमगाते दीपों की जीवंत पंक्तियां मंदिर-परिसर को रोशन किया करती थीं। विभिन्न वाद्य यंत्रों की ध्वनि से पूरा वातावरण गूंज उठता था।
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद कई राजवंशों का रहा उज्जैन में राज
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उज्जैन में मैत्रक, चालुक्य, कलचुरी, पुष्यभूति, गुर्जर प्रतिहार, राष्ट्रकूट आदि सहित कई राजाओं का एक के बाद एक उज्जैन में शासन रहा। हालांकि उस सभी ने महाकाल के सामने नतमस्तक होकर योग्यों को दान और भिक्षा का वितरण किया। इस अवधि के दौरान अवंतिका में विभिन्न देवी-देवताओं, तीर्थों, कुंडों, वापियों और उद्यानों के कई मंदिरों ने आकार लिया। इतना ही नहीं उज्जैन में 84 महादेवों सहित कई शैव मंदिर यहां मौजूद थे। यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि जब उज्जैन के हर नुक्कड़ और कोनों में श्रीमहाकाल से संबंधित देवताओं की छवियों वाले धार्मिक स्मारकों यानि मंदिरों का प्रभुत्व था तो भी श्रीमहाकाल मंदिर और उसके धार्मिक सांस्कृतिक परिवेश के विकास और प्रगति की बिल्कुल भी उपेक्षा नहीं की गई थी। श्री महाकाल की उपेक्षा न करने का प्रमाण यह भी है कि इस अवधि के दौरान रचित कई काव्य ग्रंथों में बाणभट्ट के हर्षचरित और कादंबरी, श्री हर्स के नैषधचरित और पद्मगुप्त के नवसाहसमक चरित में मंदिर के महत्व और उसके आकर्षणों का अद्भुद उल्लेख है।
11वीं व 12वीं सदी में मंदिर पर हुआ आक्रमण
परमार काल के दौरान उज्जैन और महाकाल मंदिर पर संकट की एक श्रृंखला व्याप्त थी। छठीं से 11वीं ई. पूर्व में एक गजनवी सेनापति ने मालवा (उज्जैन) पर आक्रमण किया। उसने बेरहमी से लूटा और कई मंदिरों व मूर्तियों को नष्ट कर दिया। हालांकि बाद में बहुत जल्द परमारों ने महाकाल मंदिर में सब कुछ नया कर दिया। महाकाल में मौजूद समकालीन शिलालेख भी इस तथ्य की गवाही देता है। वहीं 12वीं सदी में 1235 ई. में मुस्लिम शासक इल्तुतमिश ने मंदिर को विध्वंस करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने मंदिर पर आक्रमण कर सारे पौराणिक साक्ष्यों को मिटाने का भी प्रयास किया।
हिंदू राजाओं ने किया मंदिर का पुनर्निर्माण
12वीं सदी के आरंभ काल में राजा उदयादित्य और नरवर्मन के शासनकाल के दौरान महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। यह वास्तुकला की भूमिजा शैली में बनाया गया था, जो परमारों को बहुत पसंद था। मंदिर-परिसर और आसपास के स्थानों में उपलब्ध अवशेष इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं। इस शैली के मंदिर योजना में या तो त्रिरथ या पंचरथ थे। ऐसे मंदिरों की पहचान की मुख्य विशेषता इसकी तारे के आकार की योजना और शिखर थे। मंदिर के हर हिस्से को सजावटी रूपांकनों या छवियों से सजाया गया था। क्षैतिज रूप से मंदिर को आगे से पीछे की ओर क्रमशः प्रवेश द्वार, अर्धमंडप, गर्भगृह, अंतराल (वेस्टिब्यूल) गर्भगृह और प्रदक्षिणा पथ में विभाजित किया गया था। मंदिर के ऊपरी हिस्से मजबूत और अच्छी तरह से डिजाइन किए गए स्तम्भों पर टिके हुए हैं।
महान मूर्तिकलाएं
मंदिर की मूर्तिकला कला बहुत शास्त्रीय और विविध थी। नटराज, कल्याणसुंदर, रावणानुग्रह, गजंतक, सदाशिव, अंधकासुर-वध, लकुलिसा आदि की शैव छवियों के अलावा, मंदिरों को गणेश, पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य (सूर्य-देवता), सप्त मातृकाओं (सात) की छवियों से सजाया गया था। जिसमें माता-देवी आदि हैं। ये चित्र बहुत ही आनुपातिक, अच्छी तरह से सजाए गए, मूर्तिकला की दृष्टि से परिपूर्ण और शास्त्रीय और पौराणिक ग्रंथों के अनुसार उकेरे गए थे। इस प्रकार यहां पूजा-पाठ और कर्मकांडों का संचालन किसी न किसी रूप में जारी रहा। इन तथ्यों को प्रकट करने के लिए प्रबंध चिंतामणि, विविध तीर्थ कल्पतरु, प्रबंध कोष सभी की रचना 13वीं-14वीं शताब्दी के दौरान हुई। इसी प्रकार का उल्लेख 15वीं सदी में रचित विक्रमचरित और भोजचरित में मिलता है। हम्मीरा महाकाव्य के अनुसार, रणथंभौर के शासक हम्मीरा ने भी उज्जैन में रहने के दौरान भगवान महाकाल की पूजा की थी।
मराठा शासकों ने मंदिर को किया और भव्य
अठारहवीं सदी के चौथे दशक में उज्जैन में मराठा शासन स्थापित किया गया था। उज्जैन का प्रशासन पेशवा बाजीराव-प्रथम द्वारा अपने वफादार सेनापति रानोजी शिंदे को सौंपा गया था। रानोजी के दीवान सुखानाकर रामचंद्र बाबा शेनवी थे जो बहुत अमीर थे, लेकिन दुर्भाग्य से निर्दयी थे। इसलिए कई विद्वान पंडितों और शुभचिंतकों के सुझावों पर, उन्होंने अपनी संपत्ति को धार्मिक उद्देश्यों के लिए निवेश करने का फैसला किया। इस सिलसिले में उन्होंने अठारहवीं सदी के चौथे-पांचवें दशक के दौरान उज्जैन में प्रसिद्ध महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण किया। इसके बाद राजा भोज ने इस मंदिर को और भव्यता दी। इससे पहले मराठों के शासन काल में महाकाल मंदिर का पुनर्निर्माण से लेकर ज्योतिर्गलिंग की पुनः स्थापना और सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना की गई।
महाकाल दरबार में हैं 118 शिखर
श्रीमहाकाल मंदिर में 118 शिखर हैं। मंदिर के सामने कोटितीर्थ भी है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इल्तुतमिश ने ज्योतिर्लिंग को तोड़वा कर इसी कोटितीर्थ में फेंकवा दिया था। इसके बाद मराठा शासकों ने इसकी पुनर्स्थापना करवाई। इस मंदिर के 118 शिखर हैं, जो पूरी तरह स्वर्ण से आच्छादित हैं। इन पर 16 किलो सोने की परत चढ़ाई गई है। महाकाल दरबार की महिमा की स्तुति देवतागण भी करते हैं।