Highlights
- कई किसानों का कहना है कि वे तम्बुओं को उनके कठिन संघर्ष के प्रतीक के रूप में अपने-अपने गांवों में फिर से लगाएंगे।
- जरनैल और अन्य लोगों की योजना इसे प्रतीक के रूप में बूटा सिंह वाला गांव में स्थापित करने की है।
- किसान 11 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाएंगे, जिसके बाद वे अपने घर लौटेंगे।
नयी दिल्ली: विवादास्पद 3 कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे गुरिंदर सिंह, बूटा सिंह शादीपुर और उनके गांव के अन्य लोगों के लिए सिंघू बॉर्डर पर 2,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में लगाया गया तम्बू एक साल से अधिक समय से उनका घर था। गुरिंदर और बूटा ने शुक्रवार को इस तम्बू को उखाड़ दिया, लेकिन उनका इरादा इसे पंजाब के बठिंडा जिले में स्थित अपने गांव में फिर से लगाना है, ताकि किसान आंदोलन की यादों को जीवित रखा जा सके।
अपने-अपने गांवों में फिर से लगाएंगे तंबू
केंद्र सरकार द्वारा 3 कृषि कानून वापस लिए जाने और किसानों की अन्य मांगें स्वीकार करने के बाद किसान शनिवार को दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन स्थलों से जाने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में कई किसानों का कहना है कि वे प्रदर्शन स्थलों पर लगाए गए तम्बुओं को उनके लंबे एवं कठिन संघर्ष के प्रतीक के रूप में अपने-अपने गांवों में फिर से लगाएंगे। गुरिंदर, बूटा और 500 अन्य किसान जब अपने राम निवास गांव से 26 नवंबर को सिंघू बॉर्डर आए थे, तब उन्हें जमीन पर खुले आकाश के नीचे गद्दे बिछाकर सोना पड़ा था।
तंबू में टीवी से लेकर फ्रिज तक की थी व्यवस्था
इसके कुछ महीनों बाद दोनों दोस्तों गुरिंदर और बूटा ने 2,400 वर्ग फुट के क्षेत्र में एक अस्थायी ढांचा बनाया, जिसमें तीन कमरे, एक शौचालय और सभा करने के लिए एक क्षेत्र था। उन्होंने इसे बनाने के लिए बांस और छत के लिए टीन का इस्तेमाल किया। सभा क्षेत्र और 3 कमरों में हर रात करीब 70 से 80 लोग सोया करते थे। इसके बाद उन्होंने टेलीविजन, कूलर, गैस स्टोव, एक छोटे फ्रिज आदि की भी व्यवस्था की, ताकि वे अपना मकसद पूरा होने तक यहां आराम से ठहर सकें।
‘ढांचे को बनाने में खर्च हुए 4.50 लाख रुपये’
गुरिंदर ने कहा, ‘इस ढांचे को बनाने में करीब चार लाख 50 हजार रुपए खर्च हुए। हमारे पास जरूरत की हर वस्तु थी। अब हमारी इसे हमारे गांव ले जाकर वहां स्थापित करने की योजना है।’ बूटा ने कहा, ‘हम इसमें अपनी कुछ तस्वीरें भी लगाएंगे, ताकि हमें यहां बिताया समय याद रहे।’ प्रदर्शन स्थल पर 10-बिस्तर वाले 'किसान मजदूर एकता अस्पताल' का प्रबंधन करने वाले बख्शीश सिंह को मकसद पूरा होने की खुशी के साथ ही अपने साथियों से जुदा होने का दु:ख भी है।
‘अस्थाई ओपीडी में आए एक लाख लोग’
पटियाला निवासी बख्शीश ने कहा कि ‘लाइव केयर फाउंडेशन’ द्वारा संचालित यह अस्थायी अस्पताल पहले मधुमेह एवं रक्तचाप नियंत्रित करने की दवाओं के साथ शुरू हुआ था, लेकिन किसानों की बड़ी संख्या के मद्देनजर इसकी क्षमता बढ़ाई गई। चिकित्सकों ने बताया कि इस अस्पताल में पिछले एक साल में एक लाख लोग ओपीडी में आए और इनमें स्थानीय निवासियों की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी। इस अस्पताल में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया, मियादी बुखार आदि की नि:शुल्क जांच की जाती थी।
अस्पताल को जालंधर के पास शिफ्ट करने का प्लान
‘लाइफ केयर फाउंडेशन’ अब इस अस्पताल को जालंधर के पास किसी स्थान पर स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है ताकि वहां जरूरतमंदों को मुफ्त चिकित्सा प्रदान की जा सके। मोहाली के जरनैल सिंह ने कहा कि उन्होंने 12 गांवों के करीब 500 लोगों के लिए बांस और तिरपाल से 2 अस्थायी ढांचे बनाए थे, जिन्हें बनाने में 4 लाख रुपए लगे थे। जरनैल और अन्य लोगों की योजना अब इसे प्रतीक के रूप में बूटा सिंह वाला गांव में स्थापित करने की है।
‘ईंटो का इस्तेमाल मारे गए लोगों का स्मारक बनाने में होगा’
भारतीय किसान यूनियन (दोआबा) के सरदार गुरमुख सिंह ने मार्च में ईंटों और सीमेंट से 3 कमरों का एक ढांचा बनाया था। कम से कम 5 लोग शुक्रवार सुबह से ही इसे तोड़ने का काम लगातार कर रहे हैं। सरदार गुरमुख सिंह ने कहा, ‘मैंने इस पर लगभग 4 लाख रुपये खर्च किए। हम लगभग 20,000 ईंटों को बचा सकते हैं, जिनका इस्तेमाल यहां मारे गए लोगों का स्मारक बनाने के लिए किया जाएगा।’
11 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाएंगे किसान
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ पुलिस में दर्ज मामले वापस लिये जाने और ‘SKM’ सहित किसानों की मुख्य लंबित मांगों को स्वीकार करने का एक ‘औपचारिक पत्र’ केंद्र सरकार से प्राप्त होने के बाद एक साल से चला आ रहा अपना आंदोलन स्थगित करने की गुरुवार को घोषणा की। आंदोलन स्थगित करते हुए 40 किसान यूनियन का नेतृत्व कर रहे SKM ने कहा कि किसान 11 दिसंबर को ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाएंगे, जिसके बाद वे अपने घर लौटेंगे। (भाषा)