नरेंद्र नाथ दत्त, इस नाम से भारत का बच्चा-बच्चा वाकिफ है। स्वामी विवेकानंद को बचपन में नरेंद्र के नाम से जाना जाता था। 4 जुलाई 1902 को उनकी मौत हावड़ा के बेलुर मठ में हो गई थी। आज स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि है। ऐसे में हम आपको विवेकानंद से जुड़े एक रोचक किस्से को बताने वाले हैं जो शायद ही आपने कभी पढ़ा या सुना होगा। विवेकानंद विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। तभी तो शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में उनके भाषण के पहले जहां सब उन्हें आम आदमी समझ रहे थे, वहीं उनके भाषण के बाद तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा हॉल गूंज उठा था।
स्वामी विवेकानंद का व्रत और गुरुदेव की याद
एक समय स्वामी विवेकानंद एक रेलवे स्टेशन पर बैठे हुए थे। उस समय उन्होंने अयाचक व्रत किया हुआ था। यह व्रत ऐसा होता है, जिसमें किसी से मांगकर भोजन नहीं किया जा सकता है। ऐसे में वो व्रत खत्म होने के बाद भी किसी से कुछ मांगकर नहीं खा सकते थे। इस दौरान स्टेशन पर उनके पास बैठा एक शख्स उन्हें चिढ़ाने की कोशिश करता है और उनके सामने खाना शुरू कर देता है। वह पकवान खाते हुए बार-बार खाने की तारीफ करता है। उस समय स्वामी विवेकानंद ध्यान की मुद्र में बैठे थे और अपने गुरुदेव यानि रामकृष्ण परमहंस को याद कर रहे थे। इस दौरान वे अपने मन में गुरू को याद करते हुए कहते है, "आपने जो सीख दी, उसके कारण मेरे मन में अब भी कोई दुख नहीं है।"
भगवान राम के दर्शन और विवेकानंद को मिला भोजन
इस समय दोपहर का वक्त हो चुका था। इस दौरान नगर के ही एक शख्स को भगवान राम ने दर्शन दिया और कहा कि रेलवे स्टेशन पर मेरा एक भक्त आया है। उसे भोजन कराना है तुम्हें। उसका अयाचक व्रत है। वह किसी से कुछ मांग नहीं पाएगा। आप जाओ और उसे भोजन कराओ। पहले तो सेठ को यह भ्रम लगता है और वह फिर सो जाता है। तभी भगवान दोबारा उसे दर्शन देते हैं और भोजन कराने की बात करते हैं। इसके बाद सेठ सीधा रेलवे स्टेशन पहुंच जाता है और संत के वेश में बैठे हुए स्वामी विवेकानंद को प्रणाम करता है। इसके बाद वह कहते हैं कि आपके कारण खुद भगवान ने मुझे मेरे सपने में दर्शन दिए। सेठ के हाथों में भोजन देख स्वामी विवेकानंद के आंखों में आंसू आ गए और उन्होंने सोचा कि मैंने तो गुरुदेव को याद किया था। इसके बाद वह सेठ स्वामी विवेकानंद को भोजन कराता है और इसी के साथ स्वामी विवेकानंद का व्रत पूरा होता है।