Thursday, November 21, 2024
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स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी बने ये 2 संत, पार्थिव शरीर के सामने निजी सचिव ने की घोषणा

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद आज उनके उत्तराधिकारी का ऐलान कर दिया गया है। हालांकि, उत्तराधिकारी एक को नहीं बल्कि दो संतों को बनाया गया है। एक को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ की जिम्मेदारी सौंपी गई है और दूसरे संत को द्वारका शारदा पीठ की जिम्मेदारी दी गई है।

Edited By: Sushmit Sinha @sushmitsinha_
Published on: September 12, 2022 17:25 IST
Swami Swaroopanand Saraswati- India TV Hindi
Image Source : PTI Swami Swaroopanand Saraswati

Highlights

  • स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी बने ये 2 संत
  • पार्थिव शरीर के सामने निजी सचिव ने की घोषणा
  • मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में हुआ था स्वरूपानंद सरस्वती का निधन

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निधन के बाद आज उनके उत्तराधिकारी का ऐलान कर दिया गया है। हालांकि, उत्तराधिकारी एक को नहीं बल्कि दो संतों को बनाया गया है। एक को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ की जिम्मेदारी सौंपी गई है और दूसरे संत को द्वारका शारदा पीठ की जिम्मेदारी दी गई है। इन दो संतों का नाम है स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद और स्वामी सदानंद। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ की जिम्मेदारी सौंपी गई है और द्वारका शारदा पीठ की जिम्मेदारी स्वामी सदानंद को सौंपी गई है। इसकी घोषणा जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के निजी सचिव सुबोद्धानंद महाराज ने की है।

99 वर्ष की आयु में हुआ निधन

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ब्रह्मलीन हो गए। उन्होंने लगभग 99 वर्ष की आयु में अपना देह त्याग दिया। झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद का निधन हुआ है। कल झोतेश्वर परमहंसी आश्रम में अंतिम संस्कार हो सकता है। स्वामी स्वरुपानंद द्वारकापीठ और शारदापीठ के शंकराचार्य थे।  

क्रांतिकारी साधु के रुप में हुए थे प्रसिद्ध

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो उत्तर प्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे। क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी।

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