सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार को राज्यों और अन्य संबंधित पक्षों के साथ विचार-विमर्श के बाद महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म की छुट्टियों पर एक मॉडल नीति तैयार करने का निर्देश दिया है।कोर्ट ने बताया कि कोर्ट को इस मामले में दखल देना, मासिक धर्म की छुट्टियां देने के मामले का प्रतिकूल असर हो सकता है और महिलाओं पर इसका "हानिकारक" प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि फिर कंपनियां महिलाओं को रोजगार देने का विकल्प नहीं चुन सकती हैं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह नीति से जुड़ा मामला है और यह कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिस पर अदालतों को गौर करने की जरूरत है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर विचार करने को कहा
पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा, "छुट्टियां देना महिलाओं को अधिक कार्यबल का हिस्सा बनने के लिए कैसे प्रोत्साहित करेंगी, अदालत ने याचिकाकर्ता से पूछा और कहा कि इस तरह की छुट्टी अनिवार्य करने से महिलाएं 'कार्यबल से दूर हो जाएंगी'...हम ऐसा नहीं चाहते।" पीठ ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव से इस मामले पर विचार करने और विभिन्न हितधारकों के साथ चर्चा करने के बाद जवाब देने का अनुरोध किया ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या एक मॉडल नीति बनाई जा सकती है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य इस संबंध में कदम उठाने के लिए स्वतंत्र हैं और वे केंद्र की परामर्श प्रक्रिया से प्रभावित नहीं होंगे।
कोर्ट ने पहले भी कहा था-यह नीतिगत मामला है
इससे पहले फरवरी में, सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया था, जिसका उद्देश्य सभी राज्यों के लिए महिला छात्रों और कामकाजी महिलाओं के लिए मासिक धर्म की छुट्टियां देना अनिवार्य बनाना था। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने इसी तरह का कारण बताते हुए इस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि यह सरकार के नीति क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, वरिष्ठ वकील ने कहा कि केंद्र ने इस मामले पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है। रिपोर्ट के अनुसार, पीठ ने याचिकाकर्ता और वकील शैलेन्द्र त्रिपाठी की ओर से पेश वकील राकेश खन्ना को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के पास जाने की भी अनुमति दे दी।