Monday, December 02, 2024
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"प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट" मामले से जुड़ी बड़ी खबर, 6 याचिकाओं पर 4 दिसंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़े 6 मामलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इसके लिए बुधवार 4 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा।

Reported By : Atul Bhatia Edited By : Amar Deep Published : Dec 02, 2024 23:24 IST, Updated : Dec 02, 2024 23:24 IST
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़ी याचिकाओं पर होगी सुनवाई।- India TV Hindi
Image Source : PTI प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़ी याचिकाओं पर होगी सुनवाई।

नई दिल्ली: हाल ही में संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर उठे विवाद के बाद प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 काफी चर्चा में रहा। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की जा चुकी हैं। वहीं अब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार 4 दिसंबर को सुनवाई की जाएगी। चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच इस मामले की सुनवाई करेगी।

6 याचिकाओं पर होगी सुनवाई

बता दें कि इस मामले अब तक कुल 6 याचिकाऐं दाखिल हुई हैं। इनमें से विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ, डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी, अश्विनी उपाध्याय समेत जमीयत उलेमा ए हिंद की याचिका भी शामिल है। इसमें एक पक्ष ने जहां इस एक्ट को रद्द करने की मांग की है, वही जमीयत उलेमा ए हिंद ने इसके समर्थन में याचिका दाखिल की है। 

संभल विवाद के बाद लिखा पत्र

बता दें कि हाल ही में संभल की शाही जामा मस्जिद में निचली अदालत के फैसले के बाद जमीयत उलेमा ए हिंद ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखकर जल्द सुनवाई की मांग की थी। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को हिंदू पक्ष ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी है, जबकि इसके समर्थन में जमीयत उलेमा ए हिंद ने 2022 में सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की है। इन सभी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट एक साथ 4 दिसंबर को सुनवाई करेगा।

क्या होता है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 

दरअसल, उपासना या पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 के मुताबिक 15 अगस्त, 1947 के समय जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में होगा, उसके बाद वह वैसा ही रहेगा और उसकी प्रकृति या स्वभाव नहीं बदली जाएगी। वर्ष 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के शासनकाल में यह कानून पारित हुआ था। हालांकि, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद प्रकरण को इससे अलग रखा गया था। 

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