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पति की प्रॉपर्टी पर हिंदू महिलाओं का कितना हक? सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच करेगी फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत संपत्ति के अधिकारों के व्याख्याओं की उलझन को सुलझाने का फैसला किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्पष्टता की जरूरत पर बल दिया और कहा कि इस विषय पर कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना अत्यंत जरूरी है।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Published : Dec 11, 2024 6:44 IST, Updated : Dec 11, 2024 7:07 IST
supreme court- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO सुप्रीम कोर्ट

महिलाओं का पति की संपत्ति और पैतृक संपत्ति में अधिकार हमेशा से ही एक विवादास्पद और संवेदनशील मुद्दा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले ने इस विषय पर बड़ी स्पष्टता दी है। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू महिला को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत संपत्ति के अधिकारों के व्याख्याओं की उलझन को सुलझाने का फैसला किया है, जो कि छह दशकों से लंबित एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है।

सवाल यह है कि क्या एक हिंदू पत्नी अपने पति द्वारा दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व अधिकार रखती है, भले ही वसीयत में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हों? तो आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएम नरसिम्हा और संदीप मेहता की बेंच ने सोमवार को इस मामले को एक बड़े बेंच के पास भेजने का फैसला लिया, ताकि इस मुद्दे का समाधान हमेशा के लिए किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा हर हिंदू महिला, उसके परिवार और देशभर की कई कोर्ट में लंबित मामलों के अधिकारों से जुड़ा है। यह सवाल केवल कानूनी बारीकियों का नहीं है, बल्कि लाखों हिंदू महिलाओं पर इस फैसले का गहरा प्रभाव पड़ेगा। यह फैसला तय करेगा कि क्या महिलाएं अपनी संपत्ति का उपयोग, हस्तांतरण या बिक्री बिना किसी हस्तक्षेप के कर सकती हैं।

क्या था पूरा मामला?

इस मामले की जड़े लगभग छह दशक पुरानी है। मामला 1965 में कंवर भान नामक व्यक्ति की वसीयत से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी को एक जमीन के टुड़के पर जीवनभर अधिकार दिया था, लेकिन इस शर्त के साथ कि पत्नी की मृत्यु के बाद संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों को वापस कर दी जाएगी। कुछ सालों बाद पत्नी ने उस जमीन को बेच दिया। उसने खुद को उस संपत्ति का पूरा मालिक बताया। इसके बाद बेटे और पोते ने इस बिक्री को चुनौती दी और मामला अदालतों में चला गया, जिसमें हर स्तर पर विरोधाभासी फैसले आए।

निचली अदालत और अपीलीय अदालत ने 1977 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले तुलसम्मा बनाम शेष रेड्डी का हवाला देते हुए पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया। इस फैसले में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 14(1) का व्यापक रूप से अर्थ लगाया गया था, जिससे हिंदू महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व के अधिकार मिले थे। हालांकि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इससे असहमत होते हुए 1972 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले कर्मी बनाम अमरु का हवाला दिया, जिसमें वसीत में रखी गई शर्तों को संपत्ति के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने वाला बताया गया था।

SC ने इस मुद्दे पर स्पष्टता की जरूरत पर दिया जोर

यह विवाद अब सप्रीम कोर्ट में पहुंच गया जहां जस्टिस पीएन भागवती के तुलसम्मा फैसले में उठाए गए सवालों की याद दिलाई गई। जस्टिस भागवती ने धारा 14 के कानूनी मसौदे को वकीलों के लिए स्वर्ग और वादियों के लिए अंतहीन उलझन बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्पष्टता की जरूरत पर बल दिया और कहा कि इस विषय पर कानूनी स्थिति को स्पष्ट करना अत्यंत जरूरी है। अब एक बड़ी बेंच को यह फैसला लेना होगा कि क्या वसीयत में दी गई शर्तें हिंदू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को धारा 14(1) के तहत सीमित कर सकती हैं या नहीं।

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