Wednesday, January 08, 2025
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इबादतगाह सुरक्षा कानून पर 4 दिसंबर को सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट, मदनी बोले- यही आखिरी उम्मीद

सुप्रीम कोर्ट इबादतगाह सुरक्षा कानून की संवैधानिक स्थिति पर 4 दिसंबर को सुनवाई करेगा। जमीअत उलमा-ए-हिंद की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन और वृन्दा ग्रोवर इस कानून के समर्थन में अपनी दलीलें प्रस्तुत करेंगे।

Reported By : Shoaib Raza Edited By : Shakti Singh Published : Dec 01, 2024 15:51 IST, Updated : Dec 01, 2024 15:51 IST
Sambhal masjid
Image Source : PTI संभल की जामा मस्जिद

सुप्रीम कोर्ट चार दिसंबर को इबादतगाह सुरक्षा कानून की संवैधानिक स्थिति पर सुनवाई करेगा। जमीअत उलमा-ए- हिंद ने संभल मस्जिद विवाद और अजमेर दरगाह पर हिंदुओं के दावे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसी पर बुधवार के दिन सुनवाई होनी है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना के नेतृत्व वाली दो सदस्यीय पीठ इस मुकदमे की सुनवाई करेगी। संभल घटना के बाद जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इस मुकदमे पर तुरंत सुनवाई किए जाने का अनुरोध किया था, जिसे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने स्वीकार करते हुए 4 दिसंबर को मुकदमे की सुनवाई का आदेश जारी किया। 

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर यह याचिका दाखिल की गई है। याचिका में इबादतगाह सुरक्षा कानून की स्थिरता और इसे प्रभावी रूप से लागू करने को लेकर मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट में इस विषय पर वरिष्ठ एडवोकेट राजू रामचंद्रन और वृन्दा ग्रोवर बहस करेंगे। जमीअत के वकील इबादतगाह सुरक्षा कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी अदालत में अपनी दलीलें प्रस्तुत करेंगे। 

मौलाना मदनी का बयान

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह कितनी दुखद बात है कि हमारी इबादतगाहों और धार्मिक स्थलों को लेकर आए दिन सांप्रदायिक लोग नए नए विवाद खड़े कर रहे हैं। निराशाजनक पहलू तो यह है कि इस प्रकार के मामलों में निचली अदालतें ऐसे फैसले दे रही हैं, जिससे देश में बिखराव और भय का माहौल पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के फैसलों की आड़ में सांप्रदायिक तत्व ही नहीं कानून के रक्षक भी मुसलमानों के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रहे हैं। यहां तक कि उन्हें अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर भी नहीं दिया जा रहा है। 

संभल की घटना मामूली नहीं

संभल की घटना कोई मामूली घटना नहीं है, बल्कि यह ऐसा अत्याचार है, जो देश के संविधान, न्याय और धर्मनिरपेक्षता को आग लगाते हुए कानून की धज्जियां उड़ा रहा है। मौलाना मदनी ने कहा कि निचली अदालतों के फैसलों से सांप्रदायिक तत्वों के हौसले इतने बढ़ गए हैं कि अब उन्होंने अजमेर में स्थित सैकड़ों वर्ष पुरानी ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर भी एक हिंदू मंदिर होने का दावा कर दिया है। आश्चर्यजनक बात तो यह है कि स्थानीय अदालत ने इस याचिका को सुनवाई के योग्य करार दे दिया है। इससे उन सांप्रदायिक तत्वों के घातक इरादों को समझा जा सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट आखिरी सहारा

मौलाना मदनी ने कहा कि ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट ही न्याय और धर्मनिरपेक्ष संविधान के अस्तित्व का अंतिम सहारा है। उन्होंने कहा कि हम यह बात इस आधार पर कह रहे हैं कि कई ऐसे अहम मामलों में जब हम हर ओर से निराश हो चुके थे, सुप्रीम कोर्ट से ही हमें न्याय मिला है। इसलिए हमें पूरी आशा है कि 1991 के कानून के संबंध में भी हमारे साथ न्याय होगा।

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