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Supreme Court: तलाक-ए-हसन पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस, ये है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक-ए-हसन और विवाहों के एकतरफा गैर-न्यायिक विघटन के अन्य सभी रूपों को घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

Edited By: Sushmit Sinha @sushmitsinha_
Published : Sep 19, 2022 23:33 IST, Updated : Sep 19, 2022 23:33 IST
Supreme Court strict on talaq e hasan
Image Source : FILE IMAGE Supreme Court strict on talaq e hasan

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत तलाक-ए-हसन और विवाहों के एकतरफा गैर-न्यायिक विघटन के अन्य सभी रूपों को घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। याचिका में अदालत से यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अधिनियम के अनुच्छेद 14,15,21 और 25 का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक है। जस्टिस एस.के. कौल और ए.एस. ओका ने याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई। इसके साथ ही केंद्र और अन्य को नोटिस जारी किया, जिसमें राष्ट्रीय महिला आयोग भी शामिल है।

पुणे की एक महिला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि उसके पति ने तलाक-ए-हसन के तहत स्पीड पोस्ट के माध्यम से एक पत्र भेजकर तलाक दिया था। क्योंकि पति ने कार खरीदने के लिए पैसे मांगे और पत्नी ने पैसे देने से मना कर दिया। वहीं याचिका में कहा गया है कि रीति-रिवाजों और प्रक्रिया के अनुसार, तलाक-ए-हसन के लिए एक बार तलाक के उच्चारण की आवश्यकता होती है, जिसके बाद तीन महीनों के लिए वैवाहिक संबंध से परहेज किया जाता है और उसके बाद, यदि पति पत्नी फिर भी साथ नहीं रहना चाहते हैं तो रिश्ता खत्म हो जाता है यानी तलाक।

पुलिस ने 'तलाक-ए-हसन' का हवाला देकर मामला दर्ज नहीं किया

याचिका में केंद्र और अन्य को लिंग, धर्म और तलाक की प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। अधिवक्ता निर्मल कुमार अंबस्थ के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि, याचिकाकर्ता ने अपने पति और ससुराल वालों द्वारा किए गए अत्याचारों और उत्पीड़न के खिलाफ स्थानीय पुलिस से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय पुलिस ने 'तलाक-ए-हसन' का हवाला देकर मामला दर्ज नहीं किया।

'तलाक-ए-हसन' और विवाह को एकतरफा खत्म करने की अनुमति देता है

दलील में कहा गया है कि तलाक-ए-हसन और अन्य जैसे विवाहों को भंग करने की सभी प्रक्रिया केवल मुस्लिम पुरुषों के लिए विवाह को खत्म करना एक अतिरिक्त न्यायिक एकतरफा प्रक्रिया के रूप में है, जो न तो लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के अनुरूप है और न ही धर्म के। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता के पति ने उसे स्पीड पोस्ट के जरिए 16 जुलाई को तलाक का एक पत्र भेजा, जिसमें उसके खिलाफ विभिन्न आधारहीन और झूठे आरोप लगाए गए थे।

मुस्लिम पर्सनल लॉ पुरुषों को 'तलाक-ए-हसन' और विवाह को एकतरफा खत्म करने की अनुमति देता है, लेकिन महिलाओं को ऐसा करने की अनुमति नहीं देता है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का यह उल्लंघन करने वाला है। चूंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 (1) का सहारा लेकर सहीं ठहराने की जंग लड़ रहा है। उसका मानना है कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 (1) और यह उसके भाग 3 के तहत किसी भी अधिकार का उल्लंघन करने के लिए शून्य होना चाहिए।

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