Wednesday, January 15, 2025
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'निचली अदालतों और हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर अपने आप रद्द नहीं होते', सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक अदालतों को मामलों का फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालतों को ही पता होते हैं और ऐसे आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं।

Edited By: Mangal Yadav @MangalyYadav
Published : Feb 29, 2024 12:43 IST, Updated : Feb 29, 2024 12:52 IST
सुप्रीम कोर्ट
Image Source : PTI सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को व्यवस्था दी कि दीवानी और आपराधिक मामलों में निचली अदालत या हाई कोर्ट द्वारा दिये गये स्थगन आदेश छह माह के बाद आपने आप रद्द नहीं हो सकते। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ 2018 के अपने उस फैसले से सहमत नहीं हुई, जिसमें कहा गया था कि निचली अदालतों के स्थगन आदेश अपने आप रद्द हो जाने चाहिए, जब तक कि उसे विशेष रूप से बढ़ाया न जाए।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का नियम है कि दीवानी और आपराधिक मामलों में दिया गया स्थगन आदेश 6 महीने के बाद स्वतः समाप्त नहीं होता है जब तक कि आदेशों को विशेष रूप से बढ़ाया न जाए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसके अनुसार सिविल और आपराधिक मामलों में उच्च न्यायालयों और अन्य अदालतों द्वारा दिए गए अंतरिम आदेश छह महीने की अवधि के बाद स्वचालित रूप से समाप्त हो जाएंगे, जब तक कि आदेशों को विशेष रूप से बढ़ाया न जाए।

सुप्रीम कोर्ट जारी किए दिशा-निर्देश

फैसले में (इस विषय पर) दिशानिर्देश जारी करते हुए यह भी कहा गया है कि संवैधानिक अदालतों, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को मामलों के निपटारे के लिए समयसीमा तय करने से बचना चाहिए और ऐसा केवल असाधारण परिस्थितियों में ही किया जा सकता है। पीठ ने दो अलग-अलग, लेकिन सहमति वाले फैसले सुनाये। न्यायमूर्ति ए.एस.ओका ने कहा, ‘‘संवैधानिक अदालतों को मामलों का फैसला करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं करनी चाहिए, क्योंकि जमीनी स्तर के मुद्दे केवल संबंधित अदालतों को ही पता होते हैं और ऐसे आदेश केवल असाधारण परिस्थितियों में ही पारित किए जा सकते हैं।

जज ने कही ये बातें

न्यायामूर्ति ओका ने खुद की ओर से और न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी.पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के लिए फैसला लिखा। उन्होंने कहा, ‘‘स्थगन आदेश अपने आप रद्द नहीं हो सकते। न्यायमूर्ति पंकज मित्तल ने मामले में एक अलग, लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा। शीर्ष अदालत ने 13 दिसंबर 2023 को वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलील सुनने के बाद मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

इनपुट-भाषा  

 

 

 

 

 

 

 

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