Saturday, November 02, 2024
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कैदी सुधर गया तो उसे जेल में रखने से क्या मिलेगा? एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में टिप्पणी की कि जिस कैदी में सुधार हो चुका है उसे जेल में रखने से क्या हासिल होने वाला है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सजा में छूट देकर समय से पहले कैदियों को रिहा नहीं करना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Updated on: September 22, 2023 9:30 IST
प्रतीकात्मक फोटो- India TV Hindi
Image Source : REPRESENTATIVE IMAGE प्रतीकात्मक फोटो

दोषियों की समय से पहले रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि जिस कैदी में सुधार हो चुका है उसे जेल में रखने से क्या मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जेल में बंद कैदियों को सजा में छूट देकर समय से पहले रिहा करने से इनकार करना कैदियों के मौलिक अधिकारों का हनन है। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इससे कैदियों में निराशा की भावना भी पैदा होता है।

26 साल से जेल में बंद कैदी को लेकर आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने करीब 26 साल से जेल में बंद कैदी को रिहा करने के लिए केरल सरकार को आदेश देते हुए यह टिप्पणी की। यह फैसला 1998 में डकैटी और एक महिला की हत्या के जुर्म में केरल के जेल में बंद 65 साल के जोसेफ की याचिका का निपटारा करते हुए दिया गया। जस्टिस एस. रविंद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि सजा में छूट देकर समय से पहले रिहा किए जाने से इनकार करना 'संविधान के समानता का अधिकार' और 'जीवन का अधिकार' के तहत संरक्षित मौलिक अधिकारों का हनन है।

'रिहाई से वंचित करना उनकी आत्मा को कुचलना है"

इसके साथ ही पीठ ने उन कैदियों के पुनर्वास और सुधार पर विचार करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है, जो सालों से सलाखों के पीछे रहने के दौरान काफी हद तक बदल गए हों। पीठ ने कहा कि लंबे समय से जेलों में बंद कैदियों को समय से पहले रिहाई की राहत से वंचित करना न सिर्फ उनकी आत्मा को कुचलना है, बल्कि यह समाज के कठोर और क्षमा न करने के संकल्प को भी दर्शाता है। 

"कैदी को परस्कृत करने का विचार नकार दिया गया है"

पीठ ने कहा है कि ऐसा लगता है कि अच्छे आचरण के लिए कैदी को परस्कृत करने का विचार पूरी तरह से नकार दिया गया है। जस्टिस भट्ट ने कहा कि यह मामला दया याचिका और लंबे समय से जेल में बंद कैदियों के इलाज के पुनर्मूल्यांकन से संबंधित है। सजा की नैतिकता के बावजूद, कोई इसकी तर्कसंगतता पर सवाल उठा सकता है।

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