Thursday, November 21, 2024
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चुनावों में 'फ्री' देने के वादों को रिश्वत घोषित करने की मांग वाली याचिका पर SC ने केंद्र और EC से मांगा जवाब

याचिका में राजनीतिक दलों को चुनाव पूर्व अवधि के दौरान मुफ्त सुविधाओं के वादे करने से रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की भी मांग की गई है।

Written By: Mangal Yadav @MangalyYadav
Updated on: October 15, 2024 13:53 IST
सुप्रीम कोर्ट- India TV Hindi
Image Source : PTI सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्लीः चुनावों में मुफ्त के वादों को रिश्वत घोषित करने मांग वाली याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों की तरफ से मुफ्त देने के वादे को रिश्वत घोषित करने की मांग वाली याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है कि चुनाव आयोग ऐसे वादों पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल कदम उठाए।

चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग

कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि चुनाव कुछ समय पूर्व राजनीतिक दल मुफ्त में कई सुविधाओं को देने का वादा करते हैं। ऐसे वादों को रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की भी मांग की गई है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और लंबित मामलों के साथ याचिका को भी टैग किया।

मुफ्त के वादे से बढ़ता है वित्तीय बोझ

कर्नाटक निवासी शशांक जे श्रीधर की तरफ से दायर जनहित याचिका में राजनीतिक दलों को चुनाव पूर्व अवधि के दौरान मुफ्त के वादे करने से रोकने के लिए तत्काल और प्रभावी कदम उठाने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की भी मांग की गई है। वकील विश्वादित्य शर्मा और बालाजी श्रीनिवासन के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि मुफ्त का अनियमित वादा सरकारी खजाने पर बेहिसाब वित्तीय बोझ डालता है।

याचिका में यह भी की गई है मांग

याचिका में यह घोषणा करने की मांग की गई है कि विधानसभा या आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किए गए मुफ्त उपहारों का वादा, विशेष रूप से नकदी के रूप में चुनाव के बाद अगर उनकी पार्टी सरकार बनाती है तो उसे सरकारी खजाने से वित्त पोषित किया जाएगा। 

याचिका में कहा गया है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत रिश्वत की पेशकश के जरिए वोट देने के लिए प्रेरित करने का भ्रष्ट आचरण बनता है। इसमें कहा गया है कि राजनीतिक दल अक्सर इस तरह की मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करते हैं, बिना यह बताए कि इन वादों को कैसे वित्त पोषित किया जाएगा।

मतदाताओं को लेकर कही गई ये बात

याचिका में यह भी कहा गया है कि पारदर्शिता की कमी के कारण या तो ऐसे वादों को पूरा करने में सरकारें विफल साबित होती हैं। इससे मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी होती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मुफ्त का चलन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत को कमजोर करता है। जहां मतदाता उम्मीदवारों की नीतियों या शासन रिकॉर्ड से नहीं, बल्कि तत्काल व्यक्तिगत लाभ के आकर्षण से प्रभावित होते हैं।

इनपुट- एएनआई

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