नई दिल्ली: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जज राजबीर सहरावत द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए आज एक बेंच का गठन कर सुनवाई करेगी। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और चार सीनियर जजों हाईकोर्ट के न्यायाधीश के 17 जुलाई के आदेश के संबंध में भविष्य की कार्रवाई तय करने के लिए एक बेंच गठित करेंगे। जस्टिस सहरावत ने अपने आदेश में टिप्पणी की थी: “सर्वोच्च न्यायालय को वास्तविकता से अधिक ‘सर्वोच्च’ मानने और उच्च न्यायालय को संवैधानिक रूप से उससे कम ‘उच्च’ मानने की प्रवृत्ति है।”
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच जस्टिस सहरावत के आदेश पर विचार करेगी, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के स्थगन के कारण अपने द्वारा शुरू की गई अवमानना कार्यवाही अनिच्छा से स्थगित कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के अधीन करने का है: जस्टिस सहरावत
जस्टिस सहरावत ने कहा था, "लेकिन यह (सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण किसी मामले को स्थगित करना) किसी विशेष मामले में निहित विशेष तथ्यों और परिस्थितियों के मद्देनजर या कुछ वैधानिक प्रावधानों की संलिप्तता के कारण हाईकोर्ट के लिए ऐसा करना हमेशा संभव नहीं हो सकता है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी, जिससे बचना बेहतर होगा।"
जस्टिस सहरावत ने यह कहा था कि हाई कोर्ट की सिंगल जज वाली बेंच द्वारा शुरू की गई अवमानना कार्यवाही के लिए हाईकोर्ट की बेंच में ही अपील की जानी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका तभी इसमें तभी होगी जब अवमानना करने वाला, जिसकी सजा खंडपीठ द्वारा बरकरार रखी गई हो, सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करे। यह एक बुनियादी तथ्य है कि सुप्रीम कोर्ट के पास हाईकोर्ट सहित किसी भी किसी भी विषय पर व्यापक अधिकार क्षेत्र है, चाहे वह मामला किसी भी न्यायालय में लंबित हो या नहीं।
जस्टिस सहरावत ने कहा, ''सुप्रीम कोर्ट के पास कुछ परिस्थितियों में अवमानना मामले के कुछ तरह के आदेशों के विरुद्ध हाईकोर्ट के समक्ष अवमानना कार्यवाही के लिए किसी 'पक्ष' द्वारा विशेष अपील की अनुमति देने की शक्ति हो सकती है, हालांकि, वर्तमान मामले में न तो ऐसी कोई परिस्थितियाँ हैं, और न ही प्रतिवादियों द्वारा अवमानना मामले के ऐसे किसी आदेश के विरुद्ध ऐसी कोई विशेष अपील दायर की गई है।" इसलिए, दी गई परिस्थितियों में, सुप्रीम कोर्ट का आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 215 और न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों पर रोक लगाने की प्रकृति का प्रतीत होता है। जस्टिस सहरावत ने आगे कहा, "हालांकि, यह बेहद संदिग्ध है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के पास भारत के संविधान के अनुच्छेद 215 और न्यायालय की अवमानना अधिनियम के संचालन पर रोक लगाने की कोई शक्ति है। संभवतः सुप्रीम कोर्ट की ओर से अधिक सावधानी बरतना अधिक उचित होता।
जस्टिस सहरावत ने हाईकोर्ट के रोस्टर को नियंत्रित करने और वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए दिशानिर्देश जारी करने के प्रयास के लिए सुप्रीम कोर्ट को दोषी ठहराया और कहा कि यह निर्देश हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के अधीन करने के लिए है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके द्वारा शुरू की गई अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाकर जो नुकसान पहुंचाया है, उसका अंदाजा नहीं लगाया। न्यायिक अधिकारियों के पद न भरने से संबंधित अवमानना कार्यवाही शुरू करने का बचाव करते हुए हाईकोर्ट के जस्टिस ने पूछा, “पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में कार्यरत न्यायिक अधिकारियों की इस दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है। हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट?”