ईशा फाउंडेशन के संस्थापक और प्रमुख सद्गुरु जग्गी वासुदेव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने एक व्यक्ति की, ईशा फाउंडेशन के परिसर में उसकी दो बेटियों को बंधक बनाकर रखे जाने का आरोप लगाते हुए दायर की गई याचिका पर कार्यवाही शुक्रवार को बंद कर दी। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि मद्रास हाईकोर्ट का ऐसी याचिका पर जांच का आदेश देना सही नहीं था। आश्रम में पुलिस का छापा भी गलत था। कोर्ट ने कहा कि दोनों लड़कियां बालिग हैं। जब वे आश्रम में गई तो उनकी उम्र 27 और 24 साल थी। वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस फैसले का असर सिर्फ इसी केस तक सीमित रहेगा।
सद्गुरु ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती
बता दें कि फाउंडेशन के खिलाफ रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज ने मद्रास हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। कामराज ने हाईकोर्ट में दायर हैबियस कॉर्पस पिटीशन में आरोप लगाया था कि उनकी बेटियों लता और गीता को ईशा फाउंडेशन के आश्रम में बंधक बनाकर रखा गया है। इसके बाद हाईकोर्ट ने आश्रम के खिलाफ जांच का आदेश दिया था। मद्रास हाईकोर्ट ने 30 सितंबर को कहा था कि पुलिस ईशा फाउंडेशन से जुड़े सभी क्रिमिनल केसों की डिटेल पेश करे। अगले दिन 1 अक्टूबर को करीब 150 पुलिसकर्मी आश्रम में जांच करने पहुंचे थे। सद्गुरु ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 अक्टूबर को मद्रास हाईकोर्ट के फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस जांच के आदेश पर रोक लगाई थी।
CJI ने कामराज की दोनों बेटियों से की थी बात
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाएंगे। मामले पर टिप्पणी करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप ऐसे संस्थान में पुलिसकर्मियों की फौज नहीं भेज सकते। हालांकि चीफ जस्टिस ने कहा कि वो चैंबर में ऑनलाइन मौजूद दोनों महिलाओं से बात करेंगे और उसके बाद आदेश पढ़ेंगे।
सीजेआई ने एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के रिटायर्ड प्रोफेसर एस कामराज की दोनों बेटियों से बात करने के बाद यह आदेश पारित किया था। कामराज की बेटियों ने फोन पर बातचीत के दौरान सीजेआई को बताया था कि वो अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और अपनी मर्जी से आश्रम से बाहर आ जा सकती हैं।
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