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संदेशखालि मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, लोकसभा की विशेषाधिकार समिति की कार्यवाही पर लगाई रोक

पिछले गुरुवार को उत्तर 24 परगना जिले के संदेशखली में महिलाओं के खिलाफ कथित यौन उत्पीड़न और हिंसा को लेकर प्रदर्शन कर रहे पुलिस और भाजपा समर्थकों के बीच झड़प के बीच फंसने के बाद मजूमदार बीमार पड़ गए। मजूमदार को अस्पताल में भी भर्ती कराना पड़ा था।

Edited By: Sudhanshu Gaur @SudhanshuGaur24
Published on: February 19, 2024 14:17 IST
WESupreme Court, Chief Justice, DY Chandrachud, Mamata Banerjee, Sandeshkhali, TMC- India TV Hindi
Image Source : FILE सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल के संदेशखालि मामले में पश्चिम बंगाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार के कई शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ लोकसभा विशेषाधिकार समिति की जांच पर रोक लगा दी है। बता दें कि सुकांत मजूमदार ने अपनी शिकायत में कहा था कि संदेशखाली में विरोध प्रदर्शन के दौरान उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया था कि उन्हें जान से मारने की भी कोशिश की गई।

कोर्ट ने दिया है अंतरिम आदेश

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने मुख्य सचिव भगवती प्रसाद गोपालिका, पुलिस महानिदेशक राजीव कुमार और तीन अन्य अधिकारियों द्वारा दायर रिट याचिका पर नोटिस जारी करते हुए अंतरिम आदेश दिया है। बता दें कि याचिका में लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी गई थी और इसके बाद यह दलील दी कि यह समिति राजनीतिक गतिविधियों को विस्तारित नहीं करता।

पुलिस अत्याचार की शिकायत झूठी- वकील

याचिका भगवती प्रसाद गोपालिका, शरद कुमार द्विवेदी (जिला मजिस्ट्रेट, उत्तर 24 परगना जिला), राजीव कुमार, डॉ. हुसैन मेहेदी रहमान (पुलिस अधीक्षक, बशीरहाट, उत्तर 24 परगना जिला) और पार्थ घोष (अतिरिक्त एसपी) बशीरहाट, उत्तर 24 परगना जिला) द्वारा दायर की गई थी। अधिकारियों का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि मजूमदार द्वारा पुलिस अत्याचार की शिकायत झूठी थी और वीडियो में भाजपा समर्थकों को पुलिस अधिकारियों पर हमला करते हुए दिखाया गया है। उनका तर्क था कि अधिकारी मौके पर मौजूद ही नहीं थे।

'अधिकारियों को आरोपी के रूप में नहीं बुलाया गया था' 

वहीं, जवाब में लोकसभा सचिवालय का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता देवाशीष भरूखा ने स्पष्ट किया कि अधिकारियों को आरोपी के रूप में नहीं बुलाया गया था और तथ्यों का पता लगाने के लिए नोटिस जारी किए गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर वापसी योग्य नोटिस जारी करते हुए राज्य के अधिकारियों के खिलाफ लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी नोटिस के आधार पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।

 

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