Friday, November 22, 2024
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SC का बड़ा फैसला: भ्रूण को भी जीने का मौलिक अधिकार है, जानिए कोर्ट ने क्यों कहा ऐसा

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है, कोर्ट ने कहा है कि भ्रूण को भी जीने का मौलिक अधिकार है इसीलिए 27 सप्ताह के गर्भ को खत्म नहीं किया जा सकता है।

Edited By: Kajal Kumari @lallkajal
Updated on: May 15, 2024 16:24 IST
supreme court big decision- India TV Hindi
Image Source : FILE सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 20 वर्षीय अविवाहित महिला की 27 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और कहा कि गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी जीवित रहने का मौलिक अधिकार है। न्यायमूर्ति बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया, जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के 3 मई के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसके गर्भ को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी और न्यायमूर्ति संदीप मेहता भी शामिल थे, ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, "हम क़ानून के विपरीत कोई आदेश पारित नहीं कर सकते।" पीठ ने पूछा, "गर्भ में पल रहे बच्चे को भी जीने का मौलिक अधिकार है। आप इस बारे में क्या कहते हैं?" महिला के वकील ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) कानून केवल मां के बारे में बात करता है। उन्होंने कहा, ''यह मां के लिए बना है।''

 कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलील नहीं मानी

पीठ ने कहा कि गर्भावस्था की अवधि अब सात महीने से अधिक हो गयी है तो फिर बच्चे के जीवित रहने के अधिकार के बारे में क्या? आप इसे कैसे समझाएंगे?" इसपर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि भ्रूण गर्भ में है और जब तक बच्चा पैदा नहीं हो जाता, यह मां का अधिकार है।

वकील ने कहा, "याचिकाकर्ता इस स्तर पर गंभीर दर्दनाक स्थिति में है कि वह इससे बाहर भी नहीं आ सकती। वह एनईईटी परीक्षा के लिए क्लास ले रही है। वह अत्यधिक दर्दनाक स्थिति में है। वह इस स्तर पर समाज का सामना नहीं कर सकती।" वकील ने तर्क दिया कि उसकी मानसिक और शारीरिक भलाई पर विचार किया जाना चाहिए।

इसपर पीठ ने कहा, '' हमें माफ करें।''

हाई कोर्ट ने कही थी ये बात...

3 मई के अपने आदेश में, हाई कोर्ट ने कहा था कि 25 अप्रैल को, अदालत ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को भ्रूण और याचिकाकर्ता की स्थिति का पता लगाने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था, ''रिपोर्ट (मेडिकल बोर्ड की) को देखने से पता चलता है कि भ्रूण में कोई जन्मजात असामान्यता नहीं है और न ही मां को गर्भावस्था जारी रखने में कोई खतरा है, जिसके लिए भ्रूण को समाप्त करना अनिवार्य होगा।''

इसमें कहा गया था, "चूंकि भ्रूण व्यवहार्य और सामान्य है और याचिकाकर्ता को गर्भावस्था जारी रखने में कोई खतरा नहीं है, इसलिए भ्रूणहत्या न तो नैतिक होगी और न ही कानूनी रूप से स्वीकार्य होगी।"

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा था कि 16 अप्रैल को उसे पेट में असुविधा महसूस हुई और उसने अल्ट्रासाउंड स्कैन कराया और इसमें पता चला कि वह 27 सप्ताह की गर्भवती थी, जो कानूनी रूप से स्वीकार्य सीमा 24 सप्ताह से अधिक थी।

क्या कहता है नियम

एमटीपी अधिनियम के तहत, 24 सप्ताह से अधिक की अवधि की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति तब दी जा सकती है जब मेडिकल बोर्ड द्वारा भ्रूण में पर्याप्त असामान्यता का निदान किया गया हो या गर्भवती महिला के जीवन को बचाने के उद्देश्य से अच्छे विश्वास के साथ एक राय बनाई गई हो।

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