Sunday, December 22, 2024
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Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: जलियावाला बाग कांड ने सुभाषचंद्र बोस को कर दिया था विचलित, जानिए कैसे वे स्वाधीानता संग्राम में कूद पड़े

देश भारतमाता के वीर सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है। उनके जन्मदिन को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पराक्रम दिवस के रूप में मना रही है। अब गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत उनके जन्मदिन से प्रारंभ होगी। जानिए नेताजी कैसे राजनीति में आए, क्यों आईसीएस की परीक्षा से त्यागपत्र दे डाला और भी बहुत कुछ।

Written by: Deepak Vyas @deepakvyas9826
Updated : January 23, 2022 8:29 IST
सुभाषचंद्र बोस
Image Source : PHOTO TWITTER सुभाषचंद्र बोस

Highlights

  • 23 जनवरी 1897 को जन्मे सुभाष चंद्र बोस अपने माता-पिता के 14 बच्चों में 9वीं संतान थे
  • नेताजी ने इंग्लैंड में 1920 में ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठित आईसीएस यानी इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर डाली
  • अंग्रेजों का व्यवहार भारतीयों के प्रति दोयम दर्जे का होता था, जो खलता था

देश भारतमाता के वीर सपूत नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है। उनके जन्मदिन को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पराक्रम दिवस के रूप में मना रही है। अब गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत उनके जन्मदिन से प्रारंभ होगी। जानिए नेताजी कैसे राजनीति में आए, क्यों आईसीएस की परीक्षा से त्यागपत्र दे डाला और भी बहुत कुछ।

कौन थे नेताजी सुभाषचंद्र बोस

23 जनवरी 1897 को ओडिशा, बंगाल डिविजन के कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस अपने माता-पिता के 14 बच्चों में 9वीं संतान थे। उनके पिता जानकीनाथ बोस उस समय के प्रसिद्ध वकील थे। अपने पिता से प्रभावित होकर उन्होंने उच्च शिक्षा लेने की ठानी। यही कारण है कि नेताजी ने इंग्लैंड में 1920 में ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठित आईसीएस यानी इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर डाली। लेकिन उनके मन में बचपन से ही अंग्रेजों से भारत को आजादी दिलाने की भावना घर किए हुए थी। क्योंकि अंग्रेजों का व्यवहार भारतीयों के प्रति दोयम दर्जे का होता था।नेताजी के कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने खासा विरोध किया, जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें काफी विचलित कर दिया था।

आईसीएस की कठिन परीक्षा पास की, लेकिन दे डाला था इस्तीफा
मात्र 24 साल की आयु में आईसीएस परीक्षा पास करना आसान नहीं था, लेकिन सुभाषचंद्र बोस ने कड़े परिश्रम से यह पद हासिल किया। लेकिन अंग्रेजों की गुलामी से आजादी पाने का जुनून ही कुछ ऐसा था कि उन्होंने 22 अप्रैल, 1921 को मात्र 24 साल की आयु में आईसीएस की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता की जंग में कूद गए।

कब शुरू किया राजनीति का सफर
सुभाषचंद्र बोस इंग्लैंड से भारत लौटकर चितरंजन दास के साथ जुड़ गए। युवा सुभाष चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे। चूंकि वे आईसीएस जैसे प्रतिष्ठित पद पर चुने गए थे, इसलिए उनका विजन काफी स्पष्ट था। इसलिए राजनीति में थोड़े समय में ही वे तेजी से आगे बढ़ते रहे।  1920 और 1930 के दशक के उत्तरार्ध में नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के युवा लीडर थे। 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन का उन्होंने विरोध किया था। देशबन्दु चितरंजन दास के साथ सुभाष ने इस शाही स्वागत के विरोध में पुरजोर आवाज़ उठाई थी।

सुभाषचंद्र बोस ने अंग्रेजों से खाई लाठियां
 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झंडे दिखाए। तब  कोलकाता में सुभाष ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। इसी साल यानी 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी। वहीं 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चला डालीं और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया। नेताजी ने जीवनकाल में  11 बार कारावास की सजा काटी।

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