उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत की आज जयंती है। दरअसल 10 सितंबर 1887 को आज ही के दिन गोविंद बल्लभ पंत का जन्म कोअल्मोड़ा जिले के खूंट गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत उन्होंने बरेली से की थी लेकिन उनका इस शहर से कोई खास लगाव नहीं था। बरेली में आना एक तरीके से उनकी राजनैतिक जररूत है। क्योंकि आजादी के बाद जब देश का विभाजन हुआ तो देश के पहले विधानसभा चुनाव 1951 में कांग्रेस ने उन्हें बरेली शहर सीट से चुनाव लड़ने भेज दिया था। बता दें कि इस सीट पर उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने गोविंद बल्लभ पंत को यूपी का पहला मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर दी।
मीटिंग में हुई चाय-नाश्ते की व्यवस्था
गोविंद बल्लभ पंत जवाहर लाल नेहरू के करीबियों में से एक माने जाते हैं। ऐसे में उनके जीवनकाल में कई ऐसी घटनाएं हैं जो बेहद दिलचस्प है। एक दिलचस्प घटना आज हम आपको बताने वाले हैं। दरअसल यह घटना उस समय की है, जब पंडित गोविंद बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। ईमानदार राजनेताओं में उनकी गिनती होती थी। वह न ही खास सरकारी सुविधाएं लेते थे और न ही अपने निजी काम के लिए सरकारी पैसे का इस्तेमाल करते थे। दरअसल बात तब की है जब गोविंद बल्लभ पंत एक सरकारी बैठक में थे। यहां चाय-नाश्ते की व्यवस्था की गई। जब उसका बिल पास होने के लिए आया हिसाब में छह आन और बारह आने लिखे हुए थे।
बिल पास करने से गोविंद बल्लभ पंत ने किया इनकार
इसके बाद इस बिलकर को गोविंद बल्लभ पंत ने पास करने से इनकार कर दिया। उनसे जब बिल न पास करने का कारण पूछा गया तो गोविंद बल्लभ पंत ने कहा कि सरकारी बैठकों में सरकारी खर्चे से केवल चाय मंगवाने का नियम है। ऐसे में नाश्ते का बिल बनवाने वाले शख्स को स्वयं ही चुकाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि हां, चाय का बिल अवश्य पास हो सकता है। इस दौरान जब अधिकारियों ने कहा कि चाय के साथ कभी-कभी नाश्ता मंगवाने में कोई समस्या नहीं है और इस बिल को पास करने में कोई दिक्कत नहीं होगी। बता दें कि उस दिन की बैठक में चाय के साथ गोविंद बल्लभ पंत ने ही नाश्ता मंगवाया था। इसके बाद जब बिल चुकान की नौबत आई तो कुछ सोचकर पंत जी ने अपनी जेब से रुपये निकाले और अधिकारियों से कहा, "चाय का का बिल पास हो सकता है, लेकिन नाश्ते का नहीं।"
पंत बोले- देश की जनता के हैं ये पैसे
उन्होंने कहा कि उस बैठक में नाश्ते मंगवाए गए थे, जिसका बिल मैं भरूंगा। नाश्ते के खर्च को सरकारी खर्चे से पूरा करने की अनुमति मैं नहीं दे सकता। सरकारी खजाने पर हमेशा देश की जनता का अधिकार रहेगा, ना कि हम मंत्रियों और सरकार का। उन्होंने कहा कि हम जनता के पैसों को आखिर अपने ऊपर और अपने कामों पर कैसे खर्च कर सकते हैं। इसके बाद वहां मौजूद सभी अधिकारियों ने गोविंद बल्लभ पंत को आश्वासन दिया कि आगे से किसी भी सरकारी नियम की अवहेलना नहीं की जाएगी। जब गोविंद बल्लभ पंत ने अधिकारियों के मुंह से यह बात सुनी तो उन्हें तसल्ली हो गई और वो काम में जुट गए।