नयी दिल्ली: पिछले कुछ दिनों में ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं जिसमें न्याय पाने के लिए कर्मचारियों ने बड़े कॉरपोरेट घरानों को भी अदालतों के दरवाजे पर आने को मजबूर कर दिया। पिछले साल आईटी कंपनी इंफोसिस को केंद्रीय श्रम आयुक्त और बाद में कर्नाटक श्रम विभाग ने अपने रोजगार समझौतों में गैर-प्रतिस्पर्धा खंड (non-compete clause) को लेकर तलब किया था। वहीं चेन्नई की एक अदालत ने टा कंसल्टेंसी सर्विसेज को 2015 में बर्खास्त किए गए एक कर्मचारी को बहाल करने और उसे सात साल के लिए पूरे वेतन और लाभ का भुगतान करने का आदेश दिया। ऐसे कई अन्य उदाहरण हैं जो इस बात को उजागर करते हैं कि कैसे कुछ कानूनों के बारे में जागरूकता ने कॉर्पोरेट प्रोफेश्नल्स को न केवल न्याय दिलाने में मदद की बल्कि अन्य कंपनियों के लिए एक नजीर के रूप में काम किया कि वे अपने कर्मचारियों को डराने-धमकाने से बचें।
हालांकि, 1947 के औद्योगिक विवाद अधिनियम में "कर्मचारी" का उल्लेख किया गया है। कर्माचारी की परिभाषा यह तय की गई है कि जो किसी उद्योग में कार्यरत प्रशिक्षु सहित कोई भी व्यक्ति "मैनुअल, अकुशल, कुशल, तकनीकी, परिचालन, लिपिकीय या सुपरवाइजरी का काम" करता है। यहां यह ध्यान रखना अहम है कि कानून मैनेजेरियल या प्रशासनिक क्षमता वाले लोगों को इस परिभाषा से बाहर करता है। 'कर्मचारी' श्रेणी के लोगों के लिए, धारा 25 महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कर्मचारियों को कुछ शर्तों के तहत छंटनी से बचाती है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक यदि किसी प्रतिष्ठान ने पिछले 12 महीनों में प्रति कार्य दिवस औसतन 100 या ज्यादा श्रमिकों को नियोजित किया है, तो नियोक्ता को किसी भी कर्मचारी को निकालने से पहले सरकारी प्राधिकरण की इजाजत लेनी होगी। इसके अतिरिक्त, कंपनी को छंटनी वाले कर्मचारियों को नोटिस और मुआवजा देना चाहिए।
छंटनी के लिए भी एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है। कर्मचारी को नियोक्ता से नोटिस के बजाय या तो अग्रिम सूचना या भुगतान प्राप्त करना चाहिए। नियोक्ता को सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिए 15 दिनों के औसत वेतन की दर से कर्मचारी को मुआवजा देना आवश्यक है। इसके अलावा, छंटनी किए गए कर्मचारियों को समान योग्यता और अनुभव के आधार पर फिर से रोजगार के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 'कर्मचारी' श्रेणी से बाहर के लोगों की नौकरियों की सुरक्षा के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है।
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कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से बचाता है और यौन उत्पीड़न की शिकायतों के निवारण का प्रावधान करता है।इस कानून के मुताबिक शारीरिक संपर्क और आगे बढ़ने और सेक्सुअल फेवर की मांग करने के अलावा, यौन उत्पीड़न में यौन संबंधी टिप्पणियां करना, अश्लील साहित्य दिखाना और यौन प्रकृति का कोई भी अन्य अवांछित शारीरिक, मौखिक या गैर-मौखिक आचरण शामिल है। इस कानून के तहत, नियोक्ता को एक आंतरिक समिति बनाने के लिए बाध्य किया जाता है, जहां कार्यस्थल पर किसी भी व्यक्ति द्वारा यौन उत्पीड़न महसूस करने वाली कोई भी महिला ऐसे व्यक्ति के खिलाफ शिकायत कर सकती है।
ग्रेच्युटी का भुगतान अधिनियम, 1972- कम से कम पांच साल की निरंतर सेवा प्रदान करने के बाद, अधिवर्षिता (superannuation), सेवानिवृत्ति, इस्तीफे, या मृत्यु या अक्षमता के कारण रोजगार की समाप्ति पर एक कर्मचारी को निर्धारित राशि के भुगतान का प्रावधान करता है। नियोक्ता अधिनियम के तहत अगर भुगतान नहीं करते हैं तो कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।