नई दिल्ली: तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने कहा है कि वह ‘या तो 2024 में या फिर पांच या छह साल बाद’ राजनीति से रिटायरमेंट को लेकर निर्णय लेंगे। इंडिया टीवी पर आज सुबह 10 बजे व रात 10 बजे प्रसारित होने वाले रजत शर्मा के शो 'आप की अदालत' में सवालों के जवाब में थरूर ने कहा: ‘मैं इस तरह के राजनेता नहीं हूं जो अंत तक राजनीति करता रहूंगा। जब आपको पता चले कि आप लोगों को जिंदगी में जितना फर्क लाना चाहते हैं उसमें कामयाब नहीं हो रहे हैं, तो मैं इससे अलग हटकर क्रिकेट देखना चाहूंगा, किताबें पढ़ना चाहूंगा या अपने पोते-पोतियों के साथ खेलना चाहूंगा। वह वक्त कब आएगा, यह मैं तय करूंगा। यह मैं तय करूंगा कि ये 2024 में करना है या आज से 5 या 6 साल बाद। इस बारे में मैंने सोच रखा है।’
यह पूछे जाने पर कि क्या वह केरल में कांग्रेस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने के कुछ नेताओं के प्रस्ताव को स्वीकार करेंगे, शशि थरूर ने जवाब दिया: ‘देखिए, कुछ लोग मुझे इस बारे बोल रहे हैं, और मैं सारे विकल्प देखूंगा। तिरुवनंतपुरम में लोगों ने मुझमें विश्वास जताया है, और मैं उनको धोखा नहीं दूंगा। अगर मुझे उम्मीदवार बनना भी होगा तो उनकी सेवा के लिए ही बनूंगा। दूसरे प्रॉस्पेक्ट के बारे में बात करूं तो अगर मुझे अपने राज्य में पार्टी का नेतृत्व करने का मौका मिलता है और मैं कुछ बदलाव ला पाता हूं, तो शायद यह मेरी राजनीतिक यात्रा का अच्छा समापन होगा। लेकिन यह सब तय करने के लिए मुझे और वक्त चाहिए, और जाहिर तौर पर मुझे अपनी पार्टी की राय सुननी होगी। मुझे दूसरे लोगों की राय भी सुननी होगी, और तभी मैं कोई फैसला ले पाऊंगा।’
भारत के घरेलू मुद्दों के बारे में अमेरिका में राहुल गांधी के हालिया बयानों पर शशि थरूर ने कहा कि व्यक्तिगत रूप से वह कभी भी विदेशी धरती पर भारत के घरेलू मुद्दों के बारे में नहीं बोलना चाहेंगे, लेकिन साथ ही, उन्होंने यह कहकर राहुल गांधी का बचाव करने की कोशिश की कि राहुल ने कभी भी घरेलू मुद्दों को हल करने के लिए विदेशी मदद नहीं मांगी। थरूर ने कहा, ‘‘नहीं, उन्होंने (राहुल ने) कभी ऐसा नहीं कहा। यह आरोप गलत है। राहुल गांधी जी ने कहा था कि हमारी डेमोक्रेसी में बहुत सारी चुनौतियां है। उन्होंने यह भी कहा कि इसको सही करने की जिम्मेदारी भी हमारी है, किसी और की नहीं। आपको समझना होगा कि भारत का लोकतांत्रिक होना पूरी दुनिया के लिए अच्छा है। लेकिन उन्होंने यह नहीं कहा कि आप आकर कुछ कीजिए।’
कांग्रेस सांसद ने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही सबसे पहले विदेश में भारत के घरेलू मुद्दों पर बोलना शुरू किया था। थरूर ने कहा, ‘मैं तो सालों से कह रहा हूं कि भारत की विदेश नीति कोई कांग्रेस या बीजेपी की विदेश नीति नहीं है। हमारी विदेश नीति भारत के इंटेरेस्ट पर बनी है। जब मैं विदेश मामलों की पार्लियामेंट्री एक्सपर्ट कमिटी का अध्यक्ष था, तो मैंने इसी स्पिरिट में कहा था। देखिए, इस विषय पर जो भी हमारे राजनीतिक मतभेद होते हैं, ये तो हमारे देश कि सीमा तक रुक जाते हैं। हमारे मतभेद बाहर नहीं पहुंचने चाहिए। लेकिन यह भी सही है कि इस नीति को बीजेपी और मोदी जी ने पहले तोड़ा। मोदी साहब ने विदेश में जाकर कहा था कि हमारे देश में कुछ भी अच्छा नहीं है। जो लोग 60 साल से सरकार चला रहे थे उन्होंने भारत को इतनी बुरी तरह से चलाया कि कोई गर्व से खुद को भारतवासी नहीं कह सकता था। मोदी साहब ने विदेश में इस किस्म के भाषण देने शुरू किए। हमको आश्चर्य हुआ। हमारे किसी भी प्रधानमंत्री ने विदेश में भारतीय राजनीति पर नहीं बोला था। मोदी जी ने यह काम सबसे पहले किया।’
थरूर ने यह भी कहा कि किसी भी भारतीय नेता को विदेशों में हमारे प्रधानमंत्री की आलोचना नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘मैं एक और चीज कहूंगा कि मैंने कभी भी किसी पर व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाए, न मोदी साहब पर और न ही किसी और पर। लेकिन हमारे लोकतंत्र में यह भी है कि किसी पद को हमें इज्जत देनी चाहिए, क्योंकि जनता ने चुनकर किसी को प्रधानमंत्री बनाया होता है। जब तक कोई देश के प्रधानमंत्री पद पर है, तब तक उसे सम्मान देना ही चाहिए। यहां शायद राजनीतिक दुश्मनी हो सकती है लेकिन जब मैं विदेश जाता हूं तो वह हमारे प्रधानमंत्री होते हैं। वहां मैं उनके खिलाफ नहीं बोलता हूं।’
सुनंदा पुष्कर की मौत
एक लंबे अरसे के बाद शशि थरूर ने 2014 में एक होटल में अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की रहस्यमय मौत के बाद सामने आई कानूनी समस्याओं पर बात की। थरूर को 2021 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने सहित सभी आरोपों से बरी कर दिया था।
थरूर ने कहा, ‘मैं अगर किसी से नाराज हूं, तो भी मैं कुछ बोलता नही। मैं कभी राजनेताओं पर व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं बोलता, लेकिन फिर भी 2-3 लोग ऐसे हैं जिन्हे मैं कभी भी माफ नहीं कर सकूंगा। वे जानते थे कि यह झूठ है और वे झूठ बोलते रहे। उन्हें माफ करना संभव नहीं है।’
कांग्रेस सांसद ने सुनंदा पुष्कर के साथ अपने संबंधों के बारे में बात की। उन्होंने कहा: ‘यह एक प्यार का रिश्ता था। प्राकृतिक तौर पर देखें तो एक कश्मीरी पंडित और एक केरलवासी का क्या मेल हो सकता है? हमने प्यार में पड़ने के बाद शादी की लेकिन कुछ लोगों ने उनके देहांत के बाद इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने की कोशिश की। आपको पता है कि इस मामले में मुझे कई साल तक कोर्ट जाना पड़ा, और अंत में जज ने मामले को बिल्कुल खारिज करते हुए कहा कि ‘यह क्या बकवास है’, न कोई सबूत है कि आत्महत्या हुई है, न ही मर्डर का कोई सबूत है। जज ने मुझे यह कहते हुए बरी किया कि इस मामले में तो केस ही नहीं बनता। केस को खत्म कर देना चाहिए।’
शशि थरूर ने कहा: ‘सोचिए कैसा लगता होगा। जो लोग मुझे जानते हैं उन्हें पता है कि मैं ऐसे किसी पर हमला नहीं कर सकता। मैंने तो कभी अपने बच्चों पर भी हाथ नहीं उठाया। उनके दो भाई, और इकलौता बेटा, वे सारे मेरे साथ हैं और कहते हैं कि हम जानते हैं कि ये नहीं हो सकता है। लेकिन बाहर के लोग, जो हमें जानते भी नहीं थे उन्हें एक राजनीतिक मौका दिख गया। पहले के वक्त में हमारी राजनीति में ऐसे किसी की पर्सनल लाइफ पर बोलना या टिप्पणी करना अच्छा नहीं माना जाता था। कोई भी किसी दूसरे नेता के व्यक्तिगत जीवन पर नहीं बोलता था। बहुत सारे लोग हैं जो वाजपेयी साहब की प्राइवेट लाइफ के बारे में जानते थे। वे उस बारे में आपस में तो बात करते थे, लेकिन कभी मीडिया का इस्तेमाल नहीं किया। लेकिन मेरा ख्याल है कि आजकल हमारा कल्चर बुरी तरह से बदल गया है।’
सुनंदा पुष्कर की मौत से पहले उनके साथ कथित मतभेदों पर थरूर ने कहा, ‘आप उनके ट्वीट्स पढ़ेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि ऐसा नहीं था। उनके मन में थोड़ी-सी तकलीफ हुई थी, वह बीमार थीं। एक दिन वह बहुत प्यार भरे ट्वीट लिखती थीं और अगले दिन कुछ और लिखती थीं। वह बिल्कुल भी बुरी लड़की नहीं थीं, बीमार लड़की थीं। उनके लिए थोड़ी सी सहानुभूति होनी चाहिए। जब संसद में ‘मेंटल हेल्थ बिल’ आया था तो मैंने कहा था कि जब किसी की टांग टूटी हो तो वह नजर आता है और आप उसे सिम्पैथी दे सकते हैं लेकिन किसी का मन टूटा हो तो वह लोगों को दिखाई नहीं देता। यह बहुत दुख की बात है।’
आप उनके ट्वीट्स पढ़ेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि ऐसा नहीं था। उनके मन में थोड़ी-सी तकलीफ हुई थी, वह बीमार थीं। एक दिन वह बहुत प्यार भरे ट्वीट लिखती थीं और अगले दिन कुछ और लिखती थीं। वह बिल्कुल भी बुरी लड़की नहीं थीं, बीमार लड़की थीं। उनके लिए थोड़ी सी सहानुभूति होनी चाहिए। जब संसद में ‘मेंटल हेल्थ बिल’ आया था तो मैंने कहा था कि जब किसी की टांग टूटी हो तो वह नजर आता है और आप उसे सिम्पैथी दे सकते हैं लेकिन किसी का मन टूटा हो तो वह लोगों को दिखाई नहीं देता। यह बहुत दुख की बात है।