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Swami Swaroopanand Saraswati: जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज हुए ब्रह्मलीन, 99 साल की उम्र में त्यागी देह

Swami Swaroopanand Saraswati: मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ब्रह्मलीन हो गए हैं। उन्होंने लगभग 99 वर्ष की आयु में देह त्यागी है।

Edited By: Swayam Prakash @SwayamNiranjan
Published : Sep 11, 2022 17:09 IST, Updated : Sep 12, 2022 6:42 IST

Highlights

  • शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन
  • मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में ली अंतिम सांस
  • 99 साल की उम्र में शंकराचार्य का निधन

Swami Swaroopanand Saraswati: मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ब्रह्मलीन हो गए हैं। उन्होंने लगभग 99 वर्ष की आयु में देह त्यागी है। झोतेश्वर परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद का निधन हुआ है। कल झोतेश्वर परमहंसी आश्रम में अंतिम संस्कार हो सकता है। स्वामी स्वरुपानंद द्वारकापीठ और शारदापीठ के शंकराचार्य थे।  

क्रांतिकारी साधु के रुप में हुए थे प्रसिद्ध

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था। महज 9 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़ धर्म की यात्रा शुरू कर दी थी। इस दौरान वो उत्तर प्रदेश के काशी भी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1942 के इस दौर में वो महज 19 साल की उम्र में क्रांतिकारी साधु के रुप में प्रसिद्ध हुए थे। क्योंकि उस समय देश में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई चल रही थी।

कांग्रेस से रिश्ते, साईं बाबा की पूजा के खिलाफ
बताया जाता है कि 1300 साल पहले हिंदुओं को संगठित और धर्म का अनुयाई और धर्म उत्थान के लिए आदि गुरु भगवान शंकराचार्य ने पूरे देश में 4 धार्मिक मठ बनाये थे। इन चार में से एक मठ के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती थे जिनके पास द्वारका मठ और ज्योतिर मठ दोनों थे। 2018 में जगतगुरु शंकराचार्य का 95वां जन्मदिन वृंदावन में मनाया गया था। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्मवर्ष 1924 बताया जा रहा है। शंकराचार्य जगतगुरु स्वरूपानंद को कांग्रेस के तमाम नेता मानते थे जिसके चलते उन्हें कांग्रेस का भी शंकराचार्य कहा जाता था। स्वरूपानंद सरस्वती साईं बाबा की पूजा के खिलाफ भी थे और हिंदुओं से लगातार अनुरोध करते थे कि साईं बाबा की पूजा ना की जाए, क्योंकि वह हिंदू धर्म से संबंध नहीं रखते हैं।

 

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