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भारतीय राजदंड: नए संसद के बनते ही अस्तित्व में कैसे आया सेंगोल, 1947 में खर्च हुए थे 15 हजार रुपये

नए संसद भवन की इमारत (Central Vista) का उद्घाटन पीएम नरेंद्र मोदी 28 मई को करने वाले हैं। इस बीच भारतीय राजदंड के रूप में सेंगोल चर्चा में आ गया है। आपको जरूर जानना चाहिए कि आखिर यह क्या है।

Written By: Avinash Rai
Updated on: May 25, 2023 14:26 IST
Sengol History what is sengol 15 thousand rupees were spent in 1947 to make it new parliament buildi- India TV Hindi
Image Source : PTI नए संसद के बनते ही अस्तित्व में कैसे आया सेंगोल

Sengol History: 28 मई 2023 को देश के नए संसद भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं। इस संसद भवन के तैयार होने के साथ ही अब एक शब्द तेजी से सुर्खियों में आ गया है। अब से लोकसभा स्पीकर के आसन के पास सेंगोल होगा। यह सेंगोल शब्द तेजी से सुर्खियों में आया है। आज से पहले शायद किसी को नहीं पता था कि यह सेंगोल क्या है और अचानक यह क्यों कई सालों बाद खबरों में आता है। आपको बता दें कि सेंगोल का मतलब है राजदंड। अक्सर आपने देखा होगा कि पुराने जमाने में भारतीय राजाओं के पास राजदंड होता था जिसका आदेश सभी को मानना होता था। 

इलाबाद संग्रहालय में मिला सेंगोल

सेंगोल के बारे में प्रधानमंत्री कार्यलय को एक खत के द्वारा पता चला। दरअसल 2 साल पहले एक खत में सेंगोल के बारे में बताया गया था। यह खत चर्चित डांसर पद्मा सुब्रमण्यम ने लिका था। द हिंदू में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक पद्मान सुब्रमण्यम ने पीएमओं को लिखी अपनी चिट्ठी में तमिल मैगजीन 'तुगलक' एक आर्टिकल का हवाला दिया था। जिसमें भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को सेंगोल सौंपने की बात कगी गई थी। 

सोनार तक पहुंची मंत्रालय की टीम

पीएमओ को जब भारत की इस धरोहर के बारे में पता चला तो इसकी खोज में संस्कृति मंत्रालय जुट गया।  संस्कृति मंत्रालय ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) की मदद ली। कला केंद्र के एक्सपर्ट्स ने अर्काइव्स को छान मारा तो उन्हें पता चला कि यह सेंगोल इलाहाबाद के म्यूजियम में रखा हुआ है। सेंगोल के अस्तित्व को कंफर्म करने के लिए मंत्रालय की टीम वुम्मिडी बंगारू चेट्ठी परिवार से भी मिली जिन्होंने कंफर्म किया कि सेंगोल तैयार किया गया था। 

15000 में बना था सेंगोल

इस जांच में संस्कृति मंत्रालय को यह भी पता चला कि साल 1947 में भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा नेहरू को सेंगोल सौंपा गया था। इस सेंगोल को मद्रास के प्रसिद्ध ज्वैलर्स वुम्मिडी बंगारू चेट्टी एंड सन्स द्वारा तैयार किया गया था। बता दें कि साल 1947 में इसे तैयार करने में कुल 15 हजार रुपये खर्च करने पड़े थे। 

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