नई दिल्ली: केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरन रिजिजू ने जजों की नियुक्ति के बारे में संवेदनशील, गुप्त रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में डालने को लेकर सुप्रीम कोर्ट कॉलिजीयम के आचरण पर सवाल उठाए हैं। 'आप की अदालत' में जब रजत शर्मा ने पूछा कि पारदर्शिता क्यों नहीं होनी चाहिए, इसपर रिजिजू ने जवाब दिया: ‘पारदर्शिता का पैमाना अलग-अलग होता है। देश हित में कुछ चीजें होती हैं जिन्हें अगर नहीं बताना है, तो नहीं बताना चाहिए। और लोगों के जो हित में हो, उसे छुपाना नहीं चाहिए।’
रजत शर्मा: ‘सीक्रेट रिपोर्ट को सार्वजनिक करके कोलिजीयम शायद यह बताने की कोशिश कर रहा है कि सरकार वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली हाई कोर्ट का जज इसलिए नहीं बना रही है क्योंकि वह सेम सेक्स रिलेशनशिप में हैं, और उनका पार्टनर एक स्विस नागरिक है?’
किरन रिजिजू: ‘ये सब बातें सुप्रीम कोर्ट की कोलिजीयम पब्लिक डोमेन में लेकर आई है, और मैं अपनी ओर से इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहूंगा। मुझे जब कुछ कहना होगा तो में बतौर कानून मंत्री कहूंगा। हम अपने आदरणीय प्रधानमंत्री की सोच और मार्गदर्शन के मुताबिक काम करते हैं, लेकिन में ये सब यहां नहीं कह पाऊंगा।’
कानून मंत्री ने कहा, ‘जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक संवेदनशील मुद्दा है, जिसकी हम पब्लिक प्लेटफॉर्म पर चर्चा नहीं कर सकते। मैं प्रकिया पर तो चर्चा नहीं करुंगा, लेकिन सरकार जो भी फैसला करती है वह सोच समझ कर और आपनी नीति के तहत करती है। इसलिए ऐसी चीजों को न हमारी तरफ से, और न जुडिशरी की तरफ से पब्लिक डोमेन में डालना चाहिए।’
जूडिशरी पर हमले के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर रिजिजू ने कहा, ‘मोदी जी के पिछले साढ़े आठ सालों के शासन में एक उदाहरण बताइए, जब हमने न्यायपालिका के अधिकारों को कम करने की कोशिश की या उसे नीचा दिखाने की कोशिश की? मैंने जूडिशरी के बारे में जो कुछ भी कहा है, वह सिर्फ एक प्रतिक्रिया है। जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच से कहा गया कि सरकार फाइलों पर बैठी है, तो लोकतंत्र में मेरे लिए जवाब देना जरूरी हो जाता है। हम फाइल लेकर ऐसे ही नहीं बैठे हैं, बल्कि प्रक्रिया के तहत जो काम करना चाहिए, वह कर रहे हैं। कोर्ट को भी सोचना चाहिए कि कोई ऐसी बात न कहे जिससे लोगों में गलत संदेश जाए।
रजत शर्मा: देश के इतिहास में पहले ऐसा कोई कानून मंत्री नहीं हुआ जिसने जूडिशरी पर इस तरह से हमला किया हो?
किरन रिजिजू: ‘मैंने कभी भी हमला नहीं किया । अपनी बात अगर मैं सही तरीके से कहता हूं, तो उसको हमला नहीं मानना चाहिए। जूडिशरी को हम सब मान्यता देते हैं और भारत का लोकतंत्र अगर मजबूती से चल रहा है तो उसका एक बहुत बड़ा कारण यह भी है कि भारत की न्याय प्रणाली मजबूत है। इसीलिए हम कहते है कि जूडिशरी के कामकाज में हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे और न्यायपालिका भी कार्यपालिका और विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप न करे। हमारे बीच में एक लक्ष्मण रेखा है। यह हमें अपने संविधान से प्राप्त है। इस लक्ष्मण रेखा को कोई पार न करे, इसी में देश की भलाई है।’
जब रजत शर्मा ने रिजिजू की पिछली टिप्पणी की ओर इशारा किया कि चूंकि जजों का चुनाव नहीं होता, तो उनकी जवाबदेही होनी चाहिए, कानून मंत्री ने जवाब दिया: ‘मेरे पास हजारों लोग आते रहते हैं, मिलते रहते हैं, पत्र लिखते रहते हैं कि जजों की जवाबदेही होनी चाहिए। कुछ लोगों का कहना है कि लोकतंत्र में जजों की जवाबदेही होनी चाहिए क्योंकि लोकतंत्र में कोई राजा नहीं होता। मैं बताना चाहता हूं कि लोकतंत्र में जनता मालिक होती है, और संविधान हमारी पवित्र किताब है। हम संविधान के अनुसार शासन करते हैं, देश को चलाते हैं। इसीलिए मैंने कहा कि जजों का चुनाव तो नहीं होता, उनकी नियुक्ति होती है, और उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका काम अच्छा हो क्योंकि जनता देख रही है। मैंने इस संदर्भ में यह टिप्पणी की थी।’
रजत शर्मा: ‘पहले अधिकतर कानून मंत्री प्रैक्टिसिंग लॉयर थे तो वे सुप्रीम कोर्ट के कामकाज को जानते थे। अब वकील कहते हैं कि नए कानून मंत्री को कोई लीगल एक्सपीरियंस नहीं है?’
किरन रिजिजू: हां, यह बात कुछ हद तक सही है। अब तक जो भी कानून मंत्री बने हैं, उन्हें कानून के बारे में अच्छी जानकारी और अनुभव रहा है, लेकिन कुछ लोगों को एक ऐसे मंत्री को स्वीकार करने में तकलीफ होती है जिसे कानून के बारे में बहुत ज्यादा नहीं पता। लेकिन सब ऐसा नहीं कहते हैं, 99 फीसदी जज मेरे पक्ष में सोचते हैं। कुछ वकील हैं जो दूसरी विचारधारा और राजनीतिक दल से जुड़े हैं। इन बड़े वकीलों को ज्यादा तकलीफ है कि मैं कानून मंत्री बन गया। संसद में 2-3 सीनियर सांसद और कांग्रेस के भूतपूर्व मंत्री हैं जो कहते हैं कि कानून मंत्री नया है और उसको कुछ नहीं पता। ठीक है, मैं नया हूं तो आपको मुझसे नई बातें सुनने को मिलेंगी।
जजों की नियुक्ति के मुद्दे पर रिजिजू ने कहा: ‘1993 तक सरकार ही संविधान के मुताबिक जजों की नियुक्ति करती थी। बाद में परिभाषा बदल दी गई। 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने जजों की नियुक्ति के लिए कॉलिजीयम बनाया। पहले इसमें 3 सदस्य थे, बाद में 1998 में इसका विस्तार किया गया। इसलिए, अदालत के आदेश से व्यवस्था को बदल दिया गया।’
रजत शर्मा: ‘ताजा आरोप ये हैं कि आप जूडिशरी को कंट्रोल करना चाहते हैं?’
रिजिजू ने कहा, ‘हम कंट्रोल कर ही नहीं सकते हैं, और इस बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि मोदी जी ने साढ़े आठ साल में जूडिशरी की सभी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए काफी काम किया है। पहले हजार से दो हजार करोड़ रुपये भी मुश्किल से मिलते थे, और अब अगले साढे चार साल में अदालत की सुविधाओं पर 9 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। कमिटेड जूडिशरी की बात इस देश में पहली बार इंदिरा गांधी के समय में हुई थी। उस समय तो जजों की सीनियॉरिटी को भी नजरअंदाज करके जूनियर जज को सीनियर जज बनाया गया था। इमरजेंसी लागू की गई थी। जूडिशरी को कंट्रोल किया गया था। और अब वही लोग कह रहे हैं कि हम जूडिशरी को कंट्रोल में करना चाहते हैं। मैंने कभी नहीं कहा कि जजों ने संविधान को हाईजैक कर लिया है। ये बात एक पूर्व जज ने कही थी, और मैंने सिर्फ इतना कहा था कि इनकी बात सुनने लायक है। मैंने उनकी बात को शेयर किया था।’
जब रजत शर्मा ने याद दिलाया कि उन्होंने एक बार कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को जमानत याचिकाओं पर सुनवाई में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, किरन रिजिजू ने जवाब दिया: ‘नहीं, मैंने यह नहीं कहा था। मैंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट हमारे देश का सर्वोच्च न्यायालय है। उसके सामने बड़े संवैधानिक मुद्दे हैं, वह उन पर ध्यान दे तो ज्यादा अच्छा है। बहुत जरूरी मुद्दों, ह्यूमन राइट्स, लिबर्टी राइट्स या किसी को फांसी देने के मामले से जुड़े मुद्दों पर जमानत याचिका की सुनवाई की जा सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट अगर सेक्शन 420 के मामलों की जमानत याचिका पर भी सुनवाई करेगा तो इससे उसका वक्त खराब होता है। मैंने कभी नहीं कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जमानत याचिका की सुनवाई नहीं करनी चाहिए।’
रजत शर्मा: बड़े वकील कहते हैं कि इन्होंने जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर का फैसला नही पढ़ा है, जिसमें कहा गया था कि ‘जमानत नियम होनी चाहिए, जेल अपवाद।’
किरन रिजिजू: ‘नियम नहीं । यह माना जाता है कि इस सिद्धांत से देखा जाना चाहिए कि जमानत एक अधिकार है, वर्ना जेल जाना पड़ेगा। यह एक लीगल विजडम की बात है, कोई नियम नहीं है।’
कानून मंत्री ने कहा कि भारत के चीफ जस्टिस ने 4 भारतीय भाषाओं, (हिंदी, गुजराती, उड़िया और तमिल) में शीर्ष अदालत के फैसलों का अनुवाद करने के लिए जस्टिस अभय ओका के तहत एक समिति गठित की है। उन्होंने कहा, ‘हम कानूनी इस्तेमाल में आने वाले सामान्य शब्दों के लिए भारतीय भाषाओं से वोकेबुलरी डेटा बैंक दे रहे हैं, और अनुवाद की व्यवस्था भी कर रहे हैं।’
रिजिजू ने कहा, ‘कृपया इसे अन्यथा न लें। तथ्य यह है कि जो वकील अदालतों में अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, उनकी फीस अच्छी-खासी होती है। इनमें से कुछ की तो 20 से 40 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है। कम अंग्रेजी बोलने वालों को कम फीस मिलती है। इसलिए मैं इस बात पर जोर दे रहा हूं कि वकील हाई कोर्ट में हिंदी, तमिल, तेलुगु, पंजाबी जैसी भारतीय भाषाओं में बहस क्यों नहीं कर सकते... यदि क्षेत्रीय भाषाओं में सुनवाई होगी तो सभी वकीलों को काम मिलेगा।’
लंबित मामलों की बड़ी संख्या पर, कानून मंत्री ने माना कि निचली अदालतों से शीर्ष अदालतों तक लगभग 4.9 करोड़ मामले लंबित हैं। उन्होंने कहा, ‘हम अन्य तरीकों के अलावा टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे कि पारिवारिक मामलों में ग्रामीण स्तर पर मध्यस्थता या सुलह के जरिए विवादों का निपटारा किया जाए। प्रधानमंत्री और एक सक्रिय न्यायपालिका से हमें जो समर्थन मिल रहा है, उसे देखते हुए हम निश्चित रूप से लंबित मामलों की संख्या कम करने में कामयाब होंगे। लेकिन बात जरूर समझ लीजिए कि अगर एक जज दिन में 100 मामले निपटाता है तो 200 नए केस आ जाते हैं।’
कानून मंत्री ने कहा कि जज ओवरटाइम काम करते हैं और जब वे छुट्टी पर जाते हैं तो उन्हें आराम करने के लिए समय चाहिए होता है। उन्होंने कहा, ‘भारत के जजों जितनी कड़ी मेहनत दुनिया में कोई भी जज नहीं करता है। भारत में एक जज औसतन 100 मामलों का निपटारा करता है, जबकि अमेरिका में एक जज केवल एक केस का निपटारा करता है। आमतौर पर एक भारतीय जज रोजाना 50 से 60 मामलों को देखता है। हमारे जज दबाव में काम करते हैं और उन्हें आराम करने के लिए छुट्टियों की जरूरत होती है। अगर आप 24 घंटे काम करते हैं, तो कॉलेप्स भी कर सकते हैं। इसलिए हमारे जजों के लिए ब्रेक तो बनता है।’
कानून मंत्री ने गुजरात दंगों पर BBC की डॉक्यूमेंट्री और वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास चीन के खतरे से जुड़े मुद्दों पर भी बात की।
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को दिखाए जाने पर लगे प्रतिबंध पर रिजिजू ने कहा: ‘सुप्रीम कोर्ट ने 20 साल तक गुजरात दंगों से जुड़े मामलों की बारीकियां देखीं और आखिरकार अपना फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है, और ऐसा लगता है कि यह एक साजिश का हिस्सा है और बदनाम करने की चाल है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री लेकर आई है और हमारे देश के कम्युनिस्ट, लेफ्टिस्ट, कांग्रेसी और माओवादी बीबीसी की रिपोर्ट को सही ठहरा रहे हैं। इसका मतलब है कि उन्हें हमारे सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा नहीं है। कानून मंत्री होने के नाते मुझे कहना पड़ा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारे देश में सुप्रीम है। बीबीसी या बाकी जो दिखाते है, वह हमारे लिए कुछ नहीं है।’
एलएसी के पास चीन के खतरे पर अरुणाचल प्रदेश के रहने वाले रिजिजू ने कहा, ‘मैं बार-बार कहना चाहता हूं कि मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से हमारी पूरी सीमा सुरक्षित है और इसकी सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जा रहे हैं।’
लेह की पुलिस अधीक्षक पीडी नित्या के हालिया बयान पर, कि 'सुरक्षा बलों ने लेह, लद्दाख में 65 में से 26 पट्रोलिंग पॉइंट्स तक पहुंच खो दी है', रिजिजू ने जवाब दिया: ‘हजारों किलोमीटर लंबी सीमा पर पट्रोलिंग पॉइंट्स का सीमांकन नहीं किया गया है। कुछ इलाके ऐसे हैं जो समुद्र तल से 15 से 18,000 फीट ऊपर हैं और वहां का तापमान माइनस 30 से माइनस 40 डिग्री सेल्सियस है। कई ऐसे इलाके हैं जहां सर्दियों में सेनाएं नहीं पहुंच सकतीं। शायद उन्होंने इन्हीं इलाकों का जिक्र किया है।’