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उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में घोटालेबाजों ने कर दिया खेल, विजिलेंस जांच के बाद घेरे में अधिकारी

आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध नियुक्तियों के साथ ही टेंडर गड़बड़ी का मामला सामने आया है। जिसके बाद विजिलेंस ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है और अब शासन की मंजूरी का इंतजार है।

Edited By: Shashi Rai @km_shashi
Published : Mar 27, 2023 22:30 IST, Updated : Mar 27, 2023 22:30 IST
सांकेतिक तस्वीर
Image Source : फाइल फोटो सांकेतिक तस्वीर

उत्तराखंड में घोटाले होना अब आम हो चला है। विधानसभा भर्ती घोटाला, यूकेएसएसएससी परीक्षा भर्ती घोटाल,पटवारी- लेखपाल भर्ती घोटाला, वीपीडीओ भर्ती घोटाला हो या फिर सिपाही भर्ती मामला हो ये सब मामले अभी सुलझे भी नहीं थे। कि प्रदेश में एक और घोटाले का मामला सामने आया है। ये मामला है उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय का।

पुराने मामले भी खुलेंगे

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियुक्तियों और खरीद में गड़बड़ी का मामला सुर्खियों में बना रहा। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में विजिलेंस की जांच के बाद अब विश्वविद्यालय के अधिकारियों पर कानूनी शिकंजा कस सकता है। इस मामले में विजिलेंस ने अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है और मामले में शासन की मंजूरी का इंतजार किया जा रहा है। वहीं विजिलेंस जांच पूरी होने के बाद पुराने मामले की भी परत दर परत खुलनी तय है।

शासन की मंजूरी का इंतजार 

दरअसल, आयुर्वेद विश्वविद्यालय में नियम विरुद्ध नियुक्तियों के साथ ही टेंडर गड़बड़ी का मामला सामने आया है। जिसके बाद विजिलेंस ने अपनी रिपोर्ट शासन को सौंप दी है और अब शासन की मंजूरी का इंतजार है।

 250 से 300 करोड़ रुपये का घोटाला

विजिलेंस जांच में आयुर्वेद विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार की पुष्टि हुई है। विजिलेंस जांच में यहां सामान खरीद, निर्माण कार्यों और भर्ती करने में करीब 250 से 300 करोड़ रुपये का घोटाला सामने आया है। विजिलेंस ने जांच रिपोर्ट शासन को सौंप दी है। अब जल्द ही मामले में जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जाएगा। बताया जा रहा है कि सतर्कता समिति ने मौखिक अनुमति दे दी है, लेकिन लिखित आदेशों का इंतजार किया जा रहा है।

विजिलेंस जांच निर्देश

उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में वर्ष 2017 से 2020 तक गलत तरीके से हुई नियुक्तियों, सामान खरीद में गड़बड़ी और वित्तीय अनियमितता की विजिलेंस जांच करवाने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने निर्देश दिए थे।

चहेतों को टेंडर दिए

आरोप लगाए गए थे कि यहां पर अपनों को फायदा पहुंचाने के लिए मनमाने ढंग से विभिन्न कामों के टेंडर भी चहेतों को दिए गए। इसके बाद कार्मिक एवं सतर्कता सचिव शैलेश बगोली ने मई 2022 को आदेश जारी किए थे। विजिलेंस निदेशक अमित सिन्हा के निर्देश पर जांच इंस्पेक्टर किरन असवाल को सौंपी गई।

आयुष सचिव ने क्या कहा? 

उधर आयुष सचिव डॉ. पंकज कुमार पांडेय का कहना है कि विजिलेंस की जांच रिपोर्ट पर कार्मिक विभाग की ओर से मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दी जाएगी। जांच रिपोर्ट में यदि कोई अधिकारी व कर्मचारी दोषी है तो उसके खिलाफ विभाग कार्रवाई करने के लिए कार्मिक विभाग की तरफ सिफारिश की जाएगी। उन्होंने कहा कि जांच के आधार पर दोषियों पर सख्त कार्रवाई होगी।

ये हैं आरोप

ये हैं आरोप:- उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में योग अनुदेशकों के पदों पर जारी रोस्टर को बदलने, माइक्रोबायोलॉजिस्ट के पदों पर भर्ती में नियमों का अनुपालन न करने, बायोमेडिकल संकाय, संस्कृत में असिस्टेंट प्रोफेसर एवं पंचकर्म सहायक के पदों पर विज्ञप्ति प्रकाशित करने और फिर रद्द करने का आरोप है। साथ ही विवि में पद न होते हुए भी संस्कृत शिक्षकों को प्रमोशन और एसीपी का भुगतान किया गया।

जल्द दर्ज होगा मुकदमा

विजिलेंस निदेशक, अमित सिन्हा ने बताया कि, बिना शासन की अनुमति बार-बार विवि की ओर से विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाले गए। रोक लगाने, विभिन्न पदों पर भर्ती के लिए विवि की ओर से समितियों के गठन की विस्तृत सूचना शासन को न देने के साथ ही पीआरडी के माध्यम से 60 से अधिक युवाओं को भी भर्ती कर लिया गया। आयुर्वेद विवि में विजिलेंस जांच पूरी कर शासन को रिपोर्ट भेजी जा चुकी है। शासन की लिखित अनुमति का इंतजार किया जा रहा है। जल्द ही इस मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया जाएगा।

करोड़ों रुपये की हेराफेरी 

इतना ही नहीं आयुर्वेद विश्विद्यालय के घोटालेबाज अधिकारियों ने करोड़ों रुपये की हेराफेरी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। विवि के विभिन्न कामों के लिए बनाए गए कॉर्पस फंड को भी नहीं छोड़ा। इसमें से भी शासन की बिना अनुमति के करोड़ों रुपये निकालकर परिसर में भवन बना दिए गए।

यही नहीं विजिलेंस जांच में सामने आया है कि छात्रों को प्रवेश देने में भी करोड़ों की हेराफेरी की गई। इस सब घोटाले से आई रकम की आपस में बंदरबांट कर ली गईं। दरअसल, हर विश्वविद्यालय और कॉलेज में एक कॉर्पस फंड बनाया जाता है। इस फंड में छात्रों से ली गई फीस और एग्जाम फीस को जमा किया जाता है। इसके बाद इसकी एफडी कर दी जाती है।

घोटालेबाजों ने खेल कर दिया 

नियमानुसार इस एफडी से मिलने वाले ब्याज का एक प्रतिशत हिस्सा ही विश्वविद्यालय बिना किसी अनुमति के विभिन्न कामों में ले सकता है। इससे ज्यादा इस्तेमाल करने के लिए शासन से मंजूरी जरूरी होती है, लेकिन घोटालेबाजों ने इसमें भी खेल कर दिया। इस फंड से पैसे निकालकर बिल्डिंग पर बिल्डिंग खड़ी कर दी। विजिलेंस सूत्रों के अनुसार इस फंड को आधे से ज्यादा खाली कर दिया गया। इस फंड से भी करीब 50 करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आई है।

प्रति छात्र लाखों रुपये लिए गए

मेडिकल कॉलेजों में नीट परीक्षा में सफल हुए छात्रों को प्रवेश दिया जाता है। इसके लिए नीट की काउंसिलिंग की जाती है, लेकिन विश्वविद्यालय में कई ऐसे छात्रों को प्रवेश दिया, जिनकी काउंसिलिंग ही नहीं हुई। बताया जा रहा है कि इसके लिए प्रति छात्र लाखों रुपये लिए गए। इससे भी करोड़ों रुपये घोटालेबाजों ने जमा कर लिए। हालांकि, इन छात्रों से कितनी रकम ली गई इसका आकलन नहीं हो सका है।

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