31 जुलाई 1940 को भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह को ब्रिटिश हुकूमत द्वारा फांसी दी गई थी। उनके जीवन की कहानी ऐसी है, जिसको सुनकर आज भी देश के नौजवानों के शरीर में देशभक्ति की चिंगारी दौड़ पड़ती है। उन्होंने बहुचर्चित जलियांवाला बाग हत्याकांड का तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत से ऐसा बदला लिया था, जिसको आज भी अंग्रेजों की पीढ़ियां याद नहीं करना चाहेंगी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उधम सिंह पर डाला असर
उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 में पंजाब के हिसार जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम तेहाल सिंह और माता का नाम नारायण कौर उर्फ नरेन कौर था। माता-पिता और भाई मुक्ता सिंह के मृत्यु के बाद इन्होंने अनाथालय में अपना बचपन गुजारा और वहीं से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उधम सिंह के अंदर बचपन से ही देशभक्ति के गुण दिखते थे। यही कारण रहा कि उन दिनों वह भगत सिंह के क्रांतिकारी कार्यों से प्रभावित होकर उनके साथ जुड़ गए। बहुचर्चित 13 अप्रैल 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उधम सिंह पर काफी असर डाला।
दरअसल, बैसाखी के दिन रौलट एक्ट के विरोध में सभा की जा रही थी। उस समय जनरल डायर अपनी फौज लेकर पहुंचता है और सैकड़ों की तादाद में इकट्ठे हुए निहत्थे भारतीय लोगों पर गोली चलाने का आदेश देता है। इसमें सैकड़ों लोगों की मौत होती है। इस घटना के बाद भारत में बिट्रिश हुकूमत के खिलाफ लहर तेज हो गई। हाउस ऑफ कॉमन में जनरल डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाया गया, जबकि हाउस ऑफ लॉर्ड्स में प्रशंसा पत्र जारी किया गया जिसकी उस समय काफी निंदा हुई। निंदा प्रस्ताव पारित होने के बाद गोली चलाने का ऑर्डर देने वाले जनरल डायर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
लंदन में जनरल डायर की कर दी हत्या
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना ने उधम सिंह को अंदर तक से हिलाकर रख दिया था। घटनाक्रम के करीब 20 साल बाद उधम सिंह लंदन गए और कैक्सटन हॉल में जनरल डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद उन्होंने भागने के बजाय अपनी गिरफ्तारी दे दी। बिट्रिश सरकार द्वारा उधम सिंह पर मुकदमा चलाया गया और 4 जून 1940 को फांसी की सजा सुनाई गई। 31 जुलाई 1940 को वह देश के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए। (IANS इनपुट्स के साथ)