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Sadhguru Birthday: बचपन..जंगल..सांप और ध्यान, रहस्यों से भरा है जगदीश वासुदेव यानी सद्गुरू का जीवन

सद्गुरू यानी जगदीश वासुदेव दुनियाभर में अपने योग कार्यक्रमों के लिए विख्यात हैं। वह ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं और मानव चेतना जगाने के अभियान में लगे हुए हैं।

Written By: Rituraj Tripathi @riturajfbd
Published on: September 03, 2023 7:23 IST
Sadhguru- India TV Hindi
Image Source : FILE सद्गुरू

Sadhguru Birthday: भारत के कोयंबटूर में स्थित ईशा फाउंडेशन का नाम अक्सर सुर्खियों में रहता है। इसके संस्थापक सद्गुरू यानी जगदीश वासुदेव उर्फ जग्गी वासुदेव हैं। आज उनका जन्मदिन है। उनका फाउंडेशन मानव सेवा को समर्पित है और ध्यान-योग के द्वारा लोगों की आंतरिक चेतना को विकसित करने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है। हम यहां आपको बताएंगे कि कैसे एक जग्गी नाम का साधारण बालक सद्गुरू के रूप में विख्यात हुआ और आज उनके फॉलोअर्स करोड़ों की संख्या में हैं। 

कौन हैं जगदीश वासुदेव?

जगदीश वासुदेव यानी जग्गी का जन्म एक तेलगू परिवार में 3 सितंबर 1957 को मैसूर (मैसूर राज्य, जो अब कर्नाटक है) में हुआ।  उनके पिता का नाम बीवी वासुदेव और माता का नाम सुशीला वासुदेव था। उनके पिता मैसूरु रेलवे अस्पताल में नेत्र रोग विशेषज्ञ थे और उनकी मां एक हाउसवाइफ थीं। जग्गी अपने माता-पिता के पांच बच्चों में सबसे छोटे थे। जग्गी ने अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई की है और उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक बिजनेस से की थी। 

साल 1984 में जगदीश की शादी विजिकुमारी से हुई और साल 1990 में उन्होंने एक बच्ची को जन्म दिया, जिसका नाम राधे है। विजिकुमारी का 23 जनवरी 1997 को निधन हो गया। जगदीश की बेटी राधे ने चेन्नई के कलाक्षेत्र फाउंडेशन में भरतनाट्यम की ट्रेनिंग ली है और उन्होंने 2014 में भारतीय शास्त्रीय गायक संदीप नारायण से शादी की।  

बचपन में जंगलों में हो जाते थे गायब 

जग्गी जब छोटे थे तो अक्सर जंगलों में कुछ दिनों के लिए चले जाते थे। उन्हें प्रकृति से काफी लगाव था और जब वह जंगल से घर लौटते तो उनकी झोली में कई सांप होते थे। उन्हें सांप पकड़ने में महारत हासिल थी। जग्गी जंगलों में गहरे ध्यान में उतर जाया करते थे। 11 साल की उम्र में वह योग में निपुण होने लगे थे और योग शिक्षक राघवेन्द्र राव उन्हें इसकी शिक्षा दे रहे थे। राघवेन्द्र राव को ही मल्‍लाडिहल्‍लि स्वामी के नाम से जाना जाता है। 

आध्यात्म का रास्ता कब अपनाया?

वासुदेव का शुरुआती जीवन आम था लेकिन जब वह 25 साल के हुए तो उन्हें पहला आध्यात्मिक अनुभव महसूस हुआ। इस अनुभव ने उन्हें आध्यात्म की तरफ प्रेरित किया और उन्होंने अपना बिजनेस छोड़कर आध्यात्मिक अनुभवों की जानकारी हासिल करने के लिए यात्राएं कीं। इस दौरान उन्होंने लोगों को योग सिखाने का फैसला कर लिया। 

साल 1992 में उन्होंने ईशा फाउंडेशन की स्थापना की। साल 1994 में उन्होंने तमिलनाडु के कोयंबटूर में वेल्लियांगिरी पहाड़ों के पास जमीन खरीदी और ईशा योग केंद्र की शुरुआत की। अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण को लोगों के साथ साझा करने के दौरान वह धीरे-धीरे सद्गुरू के रूप में विख्यात हो गए।  साल 2008 में उन्हें इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार मिला और साल 2017 में उन्हें आध्यात्म के लिए पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया।

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