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Roopkund Lake: जानिए चमोली की रूपकुंड झील का रहस्य, जहां आज भी निकलते है नरकंकाल

ये झील हिमालय की तीन चोटियों, जिन्हें त्रिशूल जैसी दिखने की वजह से त्रिशूल के नाम से जाना जाता है, के बीच है। रूपकुंड झील को कंकालों वाली झील भी कहा जाता है, क्योंकि इसके आस पास कई कंकाल बिखरे हुए हैं।

Edited By: Khushbu Rawal @khushburawal2
Updated on: December 16, 2022 7:23 IST
Roopkund Lake:- India TV Hindi
Image Source : IANS Roopkund Lake:

Highlights

  • पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड की सरकार इसे रहस्यमयी झील बताती है
  • मौसम के हिसाब से रूपकुंड झील का आकार घटता-बढ़ता रहता है
  • अभी तक यहां करीब 600-800 लोगों के कंकाल पाए जा चुके हैं

Roopkund Lake: भारत के हिमालयी इलाके में बफीर्ली चोटियों के बीच स्थित रूपकुंड झील रहस्यमयी कहानियों के लिए जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां एक अरसे से इंसानी हड्डियां बिखरी हुई हैं। रूपकुंड झील समुद्र तल से करीब 5000 मीटर की ऊंचाई पर है। ये झील हिमालय की तीन चोटियों, जिन्हें त्रिशूल जैसी दिखने की वजह से त्रिशूल के नाम से जाना जाता है, के बीच है। त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में गिना जाता है, जो उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में आता है। रूपकुंड झील को कंकालों वाली झील भी कहा जाता है, क्योंकि इसके आस पास कई कंकाल बिखरे हुए हैं।

क्या है इन कंकालों की कहानी?

ऐसे तो इसके पीछे की कहानियां कई हैं। एक कहानी एक राजा और रानी की कहानी, जो सदियों पुरानी है। इस झील के पास ही नंदा देवी का मंदिर भी है। नंदा देवी पहाड़ों की देवी है। ऐसा माना जाता है कि उनके दर्शन के लिए एक राजा और रानी ने पहाड़ चढ़ने का फैसला किया, लेकिन वो अकेले नहीं गए। अपने साथ नौकर-चाकर ले कर गए। रास्ते भर धमा-चौकड़ी मचाई। ये देख देवी गुस्सा हो गईं। उनका क्रोध बिजली बनकर उन सभी पर गिरा और वे वहीं मौत के मुंह में समा गए। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि कंकाल उन लोगों के हैं, जो किसी महामारी के शिकार हो गए थे। कुछ लोग कहते थे ये आर्मी वाले लोग हैं, जो बर्फ के तूफान में फंस गए। 1942 में पहली बार एक ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड को ये कंकाल दिखे थे। उस समय ये माना गया था कि ये जापानी सैनिकों के कंकाल हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध में वहां के रास्ते जा रहे थे और वहीं फंस कर रह गए।

सालों से चल रहा है कंकालों पर अध्ययन
सालों से वैज्ञानिक इन कंकालों पर रिसर्च कर रहे हैं। वहीं, इस झील को देखने हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड की सरकार इसे रहस्यमयी झील बताती है। ये झील साल के ज्यादातर समय जमी रहती है और मौसम के हिसाब से इस झील का आकार घटता-बढ़ता रहता है। जब झील पर जमी बर्फ पिघलने लगती है, तब यहां पर बिखरे इंसानी कंकाल दिखने लगते हैं।

कई बार तो इन हड्डियों के साथ पूरे इंसानी अंग भी होते हैं जैसे कि शरीर को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया हो। अभी तक यहां करीब 600-800 लोगों के कंकाल पाए जा चुके हैं।

कैसे बनी रूपकुंड झील कंकालों वाली झील?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई एक स्टडी के अनुसार, इन कंकालों में सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि ग्रीस, और साउथ ईस्ट एशिया के लोगों के कंकाल भी शामिल हैं। नेचर कम्यूनिकेशंस पोर्टल पर छपि नई रिसर्च में पता चला है कि आखिर इन कंकालों का इतिहास क्या है। इस शोध में भारत के शोधकर्ता भी शामिल थे, उनके अनुसार, - इस झील की इससे पहले कभी ऐसी जांच नहीं की गई थी। इसकी वजह ये है कि इस इलाके में लैंडस्लाइस्ड बहुत होते हैं, और दूसरा कि कई सैलानी कंकाल के हिस्से उठाकर ले जा चुके हैं।

कुल 71 कंकालों के टेस्ट किए गए, जिनमें से कुछ की कार्बन डेटिंग हुई, तो कुछ का डीएनए टेस्ट। कार्बन डेटिंग टेस्ट से पता चलता है कि कोई भी अवशेष कितना पुराना है। इस टेस्ट में पता चला कि ये सब कंकाल एक समय के नहीं हैं। ये सभी अलग-अलग समय के हैं। साथ ही अलग-अलग नस्लों के भी हैं। इनमें महिलाओं और पुरुषों दोनों के कंकाल पाए गए। अधिकतर जो कंकाल मिले हैं, उन पर की गई रिसर्च से पता चला कि जिन व्यक्तियों के ये कंकाल थे, वे अधिकतर स्वस्थ थे।

जांच में ये भी पाया गया कि इन कंकालों में आपस में कोई रिश्ता नहीं था, क्योंकि पहले कंकालों के इस समूह को एक परिवार माना गया था। रिसर्च में ये बात साफ हुई कि ये लोग एक परिवार के नहीं थे, क्योंकि इनके डीएनए के बीच कोई भी समानता नहीं मिली। जांच में इन कंकालों में कोई बैक्टीरिया या बीमारी पैदा करने वाला कोई वायरस नहीं मिला। इसका मतलब ये हुआ कि ये किसी बीमारी की चपेट में आकर नहीं मरे थे। इनमें से ज्यादातर कंकाल भारत और उसके आस-पास के देशों के हैं। इन्हें साउथ ईस्ट एशिया का माना गया है। कुछ इनमें से ग्रीस के इलाके की तरफ के पाए गए। एक कंकाल चीन की तरफ के इलाके का भी बताया जा रहा है।

इसके अलावा ये सभी कंकाल एक साथ या एक समय पर वहां नहीं पहुंचे थे। इनमें भारत और आस-पास के इलाकों वाले कंकाल, वहां 7वीं से 10वीं शताब्दी के बीच पहुंचे थे। वहीं, ग्रीस और आस-पास के इलाके वाले कंकाल, वहां 17वीं से 20वीं शताब्दी के बीच वहां पहुंचे। चीन का कंकाल भी बाद के ही समय में वहां पहुंचा था। इससे ये साफ है कि वहां मिले कंकाल अलग-अलग हादसों का शिकार हुए थे। वो हादसे क्या थे, इसके बारे में साफ जानकारी नहीं है। कुछ कंकालों की हड्डियों में फ्रैक्चर पाए गए हैं, जो गिरने-पड़ने से हो सकते हैं। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि शायद ये लोग किसी तूफान में फंसे थे, लेकिन ये सभी बातें साबित नहीं हुई हैं।

(इनपुट- IANS)

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