नई दिल्ली: 22 जनवरी 2024 को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह है। इस दिन अयोध्या में पीएम मोदी से लेकर कई बड़ी हस्तियों की जमावाड़ा लगेगा। ये उपलब्धि भले आज मिल रही हो, पर इसकी नींव बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी व उनके साथ पीएम मोदी आदि कई बड़े नामों ने की थी। याद होगा आपको आडवाणी ने रथयात्रा निकाल पूरे देश में राम मंदिर को लेकर देशवासियों को एकत्रित किया था। आज इंडिया टीवी की इस खबर में जानें उस रथ के निर्माण की कहानी। 12 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा का ऐलान किया। ये रथ यात्रा 25 सितंबर से शुरू होने वाली थी। इस ऐलान के बाद प्रमोद महाजन अपने साथी मशहूर आर्ट डायरेक्टर शांति देव के साथ मुंबई के चेंबूर इलाके में नलावडे परिवार के वर्कशॉप पहुंचे। यहां वे प्रकाश नलावडे से मिलते हैं।
मशहूर आर्ट डायरेक्टर ने तैयार की थी डिजाइन
प्रकाश ने बातचीत में बताया कि, प्रमोद महाजन ने उनसे कहा कि आडवाणी जी के रथयात्रा के लिए जिस रथ का इस्तेमाल होगा उसका निर्माण आपको करना है। प्रकाश ने कहा कि प्रमोद महाजन की यह बात सुनकर मैं चौंक गया, एक पल के लिए मुझे विश्वास नहीं हुआ कि रामकाज का यह बड़ा कार्य उनके हिस्से आया है। किसी तरह मैने अपने आप को संभाला और हामी भर दी लेकिन मैंने उन्हें बताया कि पहले कभी किसी रथ का निर्माण मैंने नहीं किया है। इसपर प्रमोद महाजन ने कहा कि आप चिंता मत करिए। शांति देव रथ का डिजाइन बना कर देंगे और आपको उस हिसाब से रथ का निर्माण करना है। प्रकाश ने आगे कहा कि रथ कैसा होगा, रथ में किन चीजों की जरूरत होगी, रथ का स्ट्रक्चर क्या होगा इसका खाका प्रमोद महाजन ने पहले ही तैयार कर रखा था।
मिनी ट्रक को रथ में किया गया तब्दील
प्रकाश ने आगे बताया कि, हमारी बातचीत के 2 घंटे बाद ही टोयोटा कंपनी की मिनी ट्रक हमारे वर्कशॉप में आ गई। रथ निर्माण के लिए 10 दिनों का डेडलाइन हमें दिया गया। 10 दिनों की यानी किसी भी हाल में हमें 22 सितंबर तक इस रथ को तैयार कर गुजरात के लिए रवाना करना था क्योंकि 25 सितंबर से रथ यात्रा निकलने वाली थी। पर असली इम्तिहान तो अभी बाकी था।
रथ निर्माण में आईं ये चुनैतियां
प्रकाश के मुताबिक, रथ निर्माण का काम आसान नहीं था। रथ को कई हजार किलोमीटर तक यात्रा करना थी। इस यात्रा के दौरान रथ को कई उबड़ खाबड़ रास्तों,गांवों, पहाड़ी इलाकों से गुजरना था इसीलिए तय किया गया की रथ में लकड़ी का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा सिर्फ लोहे के पत्ते इस्तेमाल किए जाएंगे ताकि रथ मजबूत बने। प्रकाश ने आगे कहा कि समय कम था इसलिए हमने रोजाना 16 से 17 घंटे तक रथ निर्माण का काम किया। रथ निर्माण में जिस भी चीज की जरूरत होती थी उसे घंटे भर के भीतर बीजेपी के नेता मुहैया करा देते थे। प्रकाश नलावडे, उनके छोटे भाई और 6 लोगों की टीम दिन-रात रथ बनाने में जुटी रही।
रथ पर घोड़े के बजाय शेर का निशान क्यों?
प्रकाश बताते है कि, उस दौर में महाभारत धारावाहिक का बहुत क्रेज था। रथ की कल्पना भर से लोगों के मन में घोड़ों का ख्याल आ जाता था। क्योंकि, महाभारत सीरियल में दिखाए जाने वाले सभी रथ में आगे घोड़े होते थे। रथ निर्माण के दौरान एक दिन आर्ट डायरेक्टर शांति देव ने कहा की रथ के दोंनो तरफ सिंह की आकृति लगाई जाएगी। मैने चौंकते हुए शांति देव से पूछा रथ में तो घोड़े होते है फिर ये सिंह क्यों? इस पर उन्होंने कहा कि हम हिंदू शेर हैं और शेर अपने भगवान राम के पास जा रहा है, रामलला की भूमि के लिए जा रहे हैं। शांति देव बड़े आर्ट डायरेक्टर थे, उन्होने लोहे के पत्ते पर शेर का चित्र बनाया और इस डिजाइन को काटने के लिए मुझे (प्रकाश को) दे दिया। लोहे के पत्ते पर बने चित्र को कट करने का काम बेहद बारीकी से करना होता था क्योंकि अगर जरा-सी भी गलती हुई तो पूरा डिजाइन बिगड़ जाएगा और फिर नए सिरे से पत्रे पर शेर की पेंटिंग निकाली होगी। कई घंटों तक लगातार काम करने के बाद खूबसूरत शेर का आकृति बन पाया। रथ के दोनों तरफ शेर और रथ के सामने कमल का फूल। प्रकाश के मुताबिक करीब 1 लाख रुपये में रथ बनकर तैयार हुआ था।
वर्कशॉप बना आस्था का केंद्र
रथ निर्माण के दौरान चेंबूर का वर्कशॉप किसी पूजा स्थल से काम नहीं था। दूर-दूर से लोग इस रथ को देखने के लिए आते थे। संघ के स्वयंसेवक घंटों तक वहां रुककर रथ निर्माण कार्य को देखा करते थे, नलावड़े परिवार का हौसला बढ़ाया करते थे। आम लोग ही नहीं बल्कि हर रोज बीजेपी के बड़े नेता भी इस वर्कशॉप में आते थे और रथ निर्माण के कार्य की प्रगति का जायजा लेते थे। प्रमोद महाजन, मुरली मनोहर जोशी सहित कई बड़े बीजेपी नेता रात के समय वर्कशॉप में आकर काम का जायजा लेते थे। कड़ी मेहनत के दम पर 10 दिनों के भीतर टोयोटा के मिनी ट्रक को एक सुंदर रथ में तब्दील करने में नलावडे परिवार को कामयाबी मिली। जब यह रथ इस वर्कशॉप से निकला तब इस रथ को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। लोग इस रथ को चूम रहे थे, इसके पैर पड़ रहे थे, हर तरफ जय श्री राम का जयघोष हो रहा था।
रथ से टपक रहा था पानी, लेकिन आडवाणी ने जारी रखी यात्रा
गुजरात में रथ यात्रा के दौरान इस रथ को नुकसान पहुंचा। प्रकाश ने कहा कि गुजरात में रथरात्रा के दौरान एक दिन मूसलाधार बारिश हुई, तूफान जैसे हालात बन गए। इस आंधी तूफान की वजह से रथ को नुकसान पहुंचा और रथ में पानी लीकेज होने लगा। पानी लीकेज ठीक उस जगह पर हो रहा था जहां लालकृष्ण आडवाणी के विश्राम करने के लिए जगह बनाई गई थी। रथ से पानी टपक रहा था लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने बिना किसी शिकायत अपनी यात्रा जारी रखी। जब यात्रा महाराष्ट्र में पहुंचने वाली थी तब प्रकाश को रथ को रिपेयर करने के लिए बुलाया गया। प्रकाश के मुताबिक, गुजरात की सीमा खत्म कर रथ महाराष्ट्र की सीमा में रात करीब 2:30 बजे दाखिल हुआ। उस रात एक गेस्ट हाउस में लाल कृष्ण आडवाणी रुके। सुबह करीब 6:30 बजे प्रकाश अपने छोटे भाई के साथ उस जगह पहुंचते हैं। प्रमोद महाजन रथ में हुए डैमेज की जानकारी प्रकाश को दी।
पीएम मोदी को दी गई थी रथ यात्रा की जिम्मेदारी
प्रकाश ने आगे कहा कि जब वह रथ के पास पहुंचे हैं तब एक दाढ़ी वाला व्यक्ति दो लोगों के साथ मिलकर रथ में जो सामान था उसे बाहर निकाल रहा था। मैंने रथ के पास खड़े एक व्यक्ति से इस दाढ़ी वाले व्यक्ति के बारे में पूछा तब उस व्यक्ति ने बताया कि रथ से सामान उतारने वाले व्यक्ति का नाम नरेंद्र भाई मोदी है जिन पर गुजरात में रथ यात्रा की जिम्मेदारी दी गई थी। प्रकाश के मुताबिक, रथयात्रा का इंचार्ज होने के बावजूद भी किसी साधारण कार्यकर्ता की तरह नरेंद्र मोदी खुद सारा सामान रथ से निकालकर बगल में रख रहे थे। हम उनकी सादगी के कायल हो गए। आज जब 30 साल बाद प्रधानमंत्री के यश को हम देखते हैं तब एहसास होता है कि रामकाज को लेकर प्रधानमंत्री की आस्था और उनकी सादगी का ही नतीजा है कि वह आज विश्व के सबसे बड़े नेता बन गए है।
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