Highlights
- बैंक निजीकरण के मुद्दे को लेकर राकेश टिकैत ने मोदी सरकार पर साधा निशाना
- 6 दिसंबर को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का बिल संसद में पेश हो सकता है
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की निजीकरण योजना के खिलाफ बैंक यूनियन्स करेंगी हड़ताल
नई दिल्ली। किसान नेता राकेश टिकैत ने अब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरने की योजना बनानी शुरू कर दी है। राकेश टिकैत ने एक ट्वीट के जरिए इसके संकेत दिए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण को लेकर राकेश टिकैत ने अब अपना अगला मुद्दा चुन लिया है।
राकेश टिकैत ने शनिवार को देर रात अपने एक ट्वीट में लिखा- हमने आंदोलन की शुरुआत में आगाह किया था कि अगला नंबर बैंकों का होगा। नतीजा देखिए, 6 दिसंबर को संसद में सरकारी बैंकों के निजीकरण का बिल पेश होने जा रहा है। निजीकरण के खिलाफ देशभर में साझा आंदोलन की जरूरत है।' राकेश टिकैत ने अपने ट्वीट के साथ हैशटैग StopPrivatization का इस्तेमाल किया है।
बता दें कि, 6 दिसंबर को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का बिल संसद में पेश हो सकता है। संसद के शीतकालीन सत्र में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक (Banking Laws (Amendment) Bill 2021) लाने की तैयारी सरकार ने पहले से ही कर रखी है। अब देखना दिलचस्प होगा कि राकेश टिकैत के बयान के बाद से संसद में बिल आता है या नहीं।
यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियन्स करेगा हड़ताल
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कन्फेडरेशन (एआईबीओसी) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की निजीकरण योजना के खिलाफ संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दिल्ली में विरोध-प्रदर्शन की घोषणा की है। बैंकों के निजीकरण के खिलाफ लंबे समय से विरोध कर रहे यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियन्स ने भी 16 व 17 दिसंबर को हड़ताल की तैयारी कर ली है। यूनाइटेड फोरम आफ बैंक यूनियन्स ने हड़ताल का आह्वान किया है। बैंक कर्मचारियों एवं अधिकारियों की सभी नौ यूनियन का समूह है। सभी बैंकों के अधिकारी व कर्मचारी इस संगठन में शामिल हैं।
एआईबीओसी के महासचिव सौम्य दत्ता ने बीते दिनों विरोध-प्रदर्शन की घोषणा करते हुए कहा था कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में बैंकों के निजीकरण का विधेयक पेश कर सकती है। दत्ता ने कहा कि सरकार के इस कदम के पीछे कोई आर्थिक आधार नहीं है, यह पूर्ण रूप से ‘पूंजीपतियों’ को बैंक सौंपने के लिए लिया गया एक राजनीतिक फैसला है। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण से अर्थव्यवस्था के प्राथमिकता वाले क्षेत्र प्रभावित होंगे और स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) को ऋण के प्रवाह पर असर पड़ेगा।