बिहार में फिर बदलाव की बयार है। कारण फिर से नीतीश कुमार हैं। नीतीश कुमार फिर पाला बदल सकते हैं। लालू को छोड़ मोदी से मिल सकते हैं। पिछले छत्तीस घंटों में इसके कई संकेत मिले। पटना से लेकर दिल्ली तक कई घटनाएं हुई। सब के केन्द्र में नीतीश कुमार हैं। शुक्रवार को पटना में आयोजित गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में नीतीश भी मोजूद थे, और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी मौजूद थे, लेकिन मुख्यमंत्री के पास रखी कुर्सी पर तेजस्वी नहीं बैठे। वह कुछ दूरी पर अपनी पार्टी के नेता और स्पीकर अवध नारायण चौधरी के साथ बैठे। पूरे कार्यक्रम में मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। इधर, दिल्ली में खबर आई कि नीतीश बीजेपी के साथ मिल कर सरकार बनाने वाले हैं। नीतीश और राजद के बीच पिछले कई हफ्तों से खटास चल रही थी। नीतीश ने बुधवार को परिवारवाद की आलोचना की, कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए नरेन्द्र मोदी की तारीफ की। गुरुवार को लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने ट्विटर पर बिना नाम लिए नीतीश पर हमला किया, उनकी नीयत पर सवाल उठाए। लालू की बेटी ने ट्विटर पर लिखा - "समाजवादी पुरोधा होने का दावा वही करता है, जिसकी विचारधारा हवाओं की तरह बदलती है। ..खीज जताए क्या होगा, जब हुआ न कोई अपना योग्य, विधि का विधान कौन टाले, जब खुद की नीयत में ही हो खोट"। जब ये ट्वीट वायरल हुए, हंगामा हुआ तो लालू की बेटी ने ट्वीट को डिलीट कर दिया। जेडीयू के नेता के सी त्यागी ने कहा कि बच्चों को बड़ों के मामले में बोलना नहीं चाहिए। नीतीश ने एक दिन पहले कर्पूरी ठाकुर की जन्मशती के कार्यक्रम में परिवारवाद पर हमला करते हुए कहा था कि कर्पूरी जी ने कभी अपने जीते जी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ाया और उन्होंने खुद परिवारवाद को कभी बढ़ावा नहीं दिया, लेकिन आज के नेता परिवार को, बेटे-बेटी को आगे बढाते हैं।
इसी बीच नीतीश कुमार ने राहुल गांधी की न्याय यात्रा के दौरान होने वाली रैली में शामिल होने से इंकार कर दिया। कहा जा रहा है कि वह 4 फरवरी को नरेंद्र मोदी की बेतिया में होने वाली रैली में जा सकते हैं। बुधवार देर रात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और जे पी नड्डा की तीन घंटे तक बैठक हुई जिसमें बिहार को लेकर रणनीति तय हुई। नीतीश कुमार के लिए दरवाजा खोला जाए या नहीं, इस पर विचार हुआ। पटना में नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के बड़े नेताओं की अचानक मीटिंग बुला ली। राबड़ी देवी के घर पर भी पिछले दो दिनों से आरजेडी के नेताओं की मीटिंग चल रही है। बीजेपी अध्यक्ष जे पी नड्ढा ने केरल का दौरा रद्द कर दिया। गुरुवार रात को दिल्ली में अमित शाह के घर पर बिहार बीजेपी के बड़े नेताओं की बैठक हुई। एक बात बिलकुल स्पष्ट है। नीतीश कुमार को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वो बीजेपी के साथ जाएं या लालू के साथ रहें। नीतीश को सिर्फ ये देखना है कि उनकी कुर्सी किस तरह बची रहे। लालू कुर्सी छोड़ने के लिए दबाव बना रहे हैं, वह तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और अगर बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखने का वादा करती है, तो नीतीश बीजेपी के साथ चले जाएंगे।
चूंकि नीतीश ये जानते हैं कि इस वक्त बीजेपी और लालू दोनों को उनकी जरूरत है, वो जिसके साथ जाएंगे उसे फायदा होगा, इसीलिए नीतीश चाहेंगे कि बीजेपी ठोस वादा करे। उसके बाद बात आगे बढ़े। बीजेपी नीतीश को मुख्यमंत्री बनाए रखेगी इसमें फिलहाल कोई दिक्कत नहीं हैं लेकिन सवाल ये है कि फिर रुकावट कहां है? रुकावट विधानसभा के गणित में हैं। विधानसभा में कुल 243 सदस्य हैं, बहुमत के लिए 122 की जरूरत है। बीजेपी के पास 78 विधायक हैं। नीतीश की पार्टी के विधायकों की संख्या 45 है और जीतनराम मांझी की पार्टी के चार विधायक हैं। तीनों पार्टियों के कुल विधायकों की संख्या 127 होती है, यानि बहुमत से 5 ज्यादा लेकिन लालू यादव दांव लगा सकते हैं, नीतीश की पार्टी को तोड़ सकते हैं। लालू की पार्टी के 79, कांग्रेस के 19 , वाम दलों के 16 और दो अन्य विधायकों की संख्या को मिला दें तो आंकड़ा 116 होता है, यानि बहुमत से सिर्फ 6 कम। नीतीश को इस बात का डर है कि लालू उनकी पार्टी के कुछ विधायक तोड़ सकते हैं, कुछ विधायकों का इस्तीफा करवा सकते हैं। स्पीकर लालू के करीबी हैं। इसका फायदा उन्हें मिल सकता है। इससे सारा गणित गड़बड़ा सकता है। इसीलिए एक विकल्प यह भी है कि विधानसभा को भंग कर दिया जाए। ऐसी स्थिति में बिहार में भी लोकसभा के साथ ही विधानसभा चुनाव करवाए जाएं। लेकिन उसके लिए वक्त बहुत कम है। बीजेपी इसके लिए तैयार नहीं दिखती। और अब बात इतनी बढ़ चुकी है, इतनी फैल चुकी है कि जो करना है, जल्दी करना होगा, इसलिए मुझे लगता है कि बिहार में जो होना है, वो अगले कुछ घंटों में भी हो सकता है क्योंकि नीतीश के पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं और अमित शाह के पास भी विकल्प कम हैं। (रजत शर्मा)
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