महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन की आग अब बढ़ती जा रही है। बीड़, धाराशिव, संभाजीनगर, पुणे, मुंबई के बाद अब नागपुर, नासिक में भी प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। दूसरी तरफ सरकार की कोशिश जारी हैं। बुधवार को सर्वदलीय बैठक हुई, सभी पार्टियां इस मुद्दे पर एक राय हैं कि पूरे मराठा समुदाय को आरक्षण मिलना चाहिए। सरकार भी इसके लिए तैयार है लेकिन मुश्किल ये है कि ये काम तुरंत नहीं हो सकता। इसको करने में वक्त लगेगा और आमरण अनशन पर बैठे मनोज जरांगे और उनके साथी वक्त देने को तैयार नहीं हैं। मनोज जरांगे ने एलान कर दिया है कि अगर सरकार ने आरक्षण के मुद्दे पर कोई पक्का फैसला नहीं किया तो वो पानी पीना भी छोड़ देंगे। सरकार ने उनसे जिद छोड़ने की अपील की है। मनोज जरांगे का कहना है कि अगर सरकार मराठा समुदाय को तुरंत पिछड़ी जाति में शामिल करके आरक्षण नहीं दे सकती तो सभी मराठों को फिलहाल कुनबी जाति का सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश दे, जिससे पिछड़ी जाति के कोटे से उन्हें आरक्षण मिलना शुरू हो जाए। सरकार इसके लिए तैयार है। सभी जिला अधिकारियों को इसके निर्देश दिए गए हैं कि वो पुराना रिकॉर्ड निकालें, पुराने दस्तावेज जमा करें, जिससे मराठों का कुनबी प्रमाणपत्र जारी किया जा सके। ये रास्ता मुश्किल है। पिछड़े वर्ग के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि वो मराठों को आरक्षण देने के पक्ष में तो हैं, लेकिन ये काम दूसरी जातियों का हक मारकर नहीं होना चाहिए। मुसीबत ये है कि सरकार आरक्षण की सीमा को पचास प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा नहीं सकती। अगर ऐसा करती है तो आंदोलन तो खत्म हो जाएगा लेकिन आरक्षण का मसला एक बार फिर कोर्ट में अटकेगा। इसीलिए मुख्यमंत्री एकनाथ शिन्दे ने कहा कि सरकार ऐसा रास्ता निकालना चाहती है जिससे मराठों को पक्का आरक्षण मिले, मामला कोर्ट कचहरी के चक्कर में न फंसे, ये बात आंदोलनकारियों को समझनी चाहिए। शिन्दे ने कहा कि सरकार आंदोलन के खिलाफ नहीं हैं लेकिन आंदोलन की आड़ में हिसा को बर्दाश्त नहीं करेगी, ये बात आंदोलनकारियों को ध्यान में रखनी चाहिए।
अब सवाल ये है कि रास्ता क्या निकलेगा? आंदोलन खत्म कैसे होगा? मराठों को आरक्षण मिलेगा या नहीं? मिलेगा तो कब मिलेगा? कितना वक्त लगेगा और क्यों लगेगा? आरक्षण देने में कानूनी अड़चनें क्या हैं? सर्वदलीय बैठक में शरद पवार ने सलाह दी कि सरकार जल्दी से जल्दी उन सभी कमियों को पूरा करे, उन जरूरी शर्तों को पूरा करे जिनके कारण पिछली बार सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी थी। बैठक में सभी पार्टियों ने हिंसा पर चिंता जताई और आंदोलनकारियों से संयम बनाए रखने की अपील की। सभी नेताओं ने मनोज जरांगे पाटिल से अनशन खत्म करने की मांग की, लेकिन शाम को जरांगे ने इस अपील को ठुकरा दिया। मनोज जरांगे ने सरकार को वक्त देने से इंकार कर दिया। कहा कि पिछली बार सरकार ने 30 दिन मांगे थे, 40 दिन दिए, अब एकनाथ शिंदे आएं और बताएं कि उन्होंने 40 दिन में क्या किया? मनोज जरांगे ने कहा कि अब मराठा आरक्षण लागू होने से पहले वो अपना अनशन नहीं तोड़ेंगे, सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए और आरक्षण का कानून पास करे। विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग पर सर्वदलीय बैठक में महाराष्ट्र के एडवोकेट जनरल वीरेंद्र सराफ ने कहा कि अगर विशेष सत्र बुलाया भी जाता है तो इससे कोई रास्ता नहीं निकलेगा क्योंकि इस मामले में राज्य सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। अब सवाल ये है कि अगर राज्य सरकार तुरंत कुछ नहीं कर सकती, विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने से कुछ नहीं होगा, तो फिर रास्ता क्या है? यहां आकर बात अटकती है, और सियासत यहीं से शुरू होती है। अब इस मामले में केन्द्र सरकार को लपेटा जा रहा है। कहा जा रहा है कि केन्द्र सरकार चाहे तो मराठों को तुरंत आरक्षण मिल सकता है। मोदी सरकार कानून बनाकर आरक्षण की अधिकतम सीमा पचास प्रतिशत से ज्यादा कर दे। विपक्ष के नेता सरकार के साथ होने का दावा भी कर रहे हैं और सरकार पर हमले भी कर रहे हैं। दूसरी तरफ सरकार के सामने मुश्किल ये है कि वह मराठा आरक्षण के खिलाफ बोल नहीं सकती और इस मुद्दे को लेकर जो हिंसा हो रही है, उसे भी रोकना जरूरी हैं।
हालांकि ये सही है कि महाराष्ट्र में पिछले तीन दिन में काफी हिंसा हुई लेकिन सरकार के सख्त रूख के बाद हिंसा और आगजनी की खबरें आनी बंद हो गई। हालांकि प्रदर्शन हो रहे हैं, आंदोलन चल रहा है और बुधवार को कई नए इलाकों में प्रदर्शन हुए। सारे नेता ये कहकर बात शुरू करते हैं कि ये मुद्दा राजनीति का विषय नहीं है लेकिन उसके बाद सभी राजनीति ही करते हैं। हालांकि ये बात तो साफ है कि शिंदे सरकार ने मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन करने वालों से 30 दिन मांगे थे, उन्होंने 40 दिन दिए लेकिन शिंदे साहब इस मामले में तैयारी नहीं कर पाए। इसी तरह सर्वदलीय बैठक बुलाने में भी उन्होंने देर की। अगर ये काम पहले करते तो हिंसा से बचा जा सकता था। लेकिन ये भी सही है कि इस बार मराठा आरक्षण के आंदोलन को हवा देने का काम शरद पवार और उनकी पार्टी के नेताओं ने किया। उनकी मंशा इस मामले में केंद्र सरकार को फंसाने की है। इसीलिए उनके लोग बार बार कह रहे हैं कि अगर मराठाओं को कोई आरक्षण दे सकता है तो केंद्र सरकार दे सकती है। वो एक तीर से दो शिकार करना चाहते हैं। शरद पवार और उनकी तरह के बाकी नेता जो मराठा आरक्षण के आंदोलन को हवा दे रहे हैं, उनकी नजर मराठों के 15 % वोटबैंक पर है लेकिन पिछले दो दिन में उन्हें एहसास हुआ है कि अगर उन्होंने सिर्फ मराठों पर इतना जोर दिया तो पिछड़े वर्ग में रिएक्शन हो जाएगा। ऐसी जातियों की संख्या 50% से ज्यादा है। तो सियासत का तकाज़ा तो ये है कि 15% के चक्कर में 50 परसेंट को नाराज नहीं किया जा सकता। अब तो पिछड़े वर्ग के नेताओं ने अपना हक मांगने की बात शुरू कर दी है। इसीलिए ये मामला और उलझ गया है। लगता है कि एकनाथ शिंदे के पास इस मामले को सुलझाने की न समझ है और न अनुभव। वो किसी तरह पूरे मामले को टालने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है। इसे टाला नहीं जा सकता। (रजत शर्मा)
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