एक बार फिर विरोधी दलों ने सरकार पर स्नूपिंग यानी जासूसी का इल्जाम लगाया है। मंगलवार को दिन भर इस मुद्दे को लेकर सियासत हुई। दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक, मुंबई से लेकर लखनऊ तक, अहमदाबाद से लेकर कोलकाता तक, विरोधी दलों के नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस हुईं। सब ने कहा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार विरोधी दलों के नेताओं के फोन टैप करवा रही है। फोन हैक करवा रही है और इन सारे इल्जामात के पीछे एप्पल कंपनी की तरफ से भेजा गया एक ई-मेल था, जिसमें एप्पल का फोन इस्तेमाल करने वाले नेताओं से कहा गया कि “ रिमोटली उनके फोन को हैक करने की कोशिश की गई। ‘स्टेट स्पॉन्सर्ड हैकर्स’ ने उनके फोन को निशाना बनाने की कोशिश की है। हैकर्स आपके फोन के जरिए आपके कैमरा, माइक्रोफोन और दूसरी संवेदनशील जानकारी तक पहुंच सकते हैं।” हालांकि इसी मैसेज में एप्पल ने भी कहा है कि ये एलर्ट गलत भी हो सकता है, लेकिन सावधान रहने की जरूरत है। ये मैसेज कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खर्गे, शशि थरूर, सुप्रिया श्रीनेत, पवन खेड़ा के अलावा AIMIM चीफ असद्दुदीन ओवैसी, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, AAP सांसद राघव चड्ढा, तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, शअवसेना (उद्धव) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी और CPI-M नेता सीताराम येचुरी समेत तमाम नेताओं को आया। जैसे ही ये नोटिफिकेशन मिला, इन सारे नेताओं ने उसे सोशल मीडिया पर शेयर करके सरकार पर हमले शुरू कर दिए।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को नोटिफिकेशन मिला या नहीं, ये तो उन्होंने नहीं बताया, लेकिन सबसे पहले इस मुद्दे पर उन्होंने सरकार पर हमला किया। राहुल ने कहा कि सरकार डर गई है, तानाशाह विपक्ष की एकता से परेशान हो गया है, इसलिए अब सरकारी ताकत विरोधी दलों की जासूसी में लगाई जा रही है। राहुल ने कहा कि वो डरने वाले नहीं हैं। ओवैसी ने शायरी के जरिए मोदी सरकार पर हमला किया, लिखा, खूब पर्दा है कि लगे चिलमन से बैठे हैं, साफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं। अखिलेश यादव ने लोकतन्त्र को खतरे में बताया, महुआ मोइत्रा ने इसे सरकार का डर बताया। तमाम रिएक्शन्स आए। सरकार की तरफ से IT मंत्री अश्विनी वैष्णव ने विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया, इस मामले की जांच CERT-IN से कराने के आदेश दे दिए। एप्पल ने कहा कि उसकी तरफ़ से जो एलर्ट भेजा गया है, वो किसी खास देश की सरकार को लेकर नहीं है, 150 देशों में एप्पल के यूज़र्स को ये मैसेज, अलग-अलग समय पर भेजा गया है। ये भी हो सकता है कि ये Algorithm की ग़लती हो या फिर फॉल्स एलर्ट हो।
एप्पल ने कहा कि कुछ लोगों की पहचान या फिर उनके काम की वजह से वो हैकर्स के निशाने पर रहते हैं, जब भी एप्पल को फ़ोन पर ऐसी संदिग्ध गतिविधियां दिखती हैं, तो वो अपने यूज़र को एलर्ट भेजता है, लेकिन एप्पल ये पक्के तौर पर दावा नहीं कर रहा है कि जासूसी के पीछे किसी सरकार का ही हाथ है। बड़ी बात ये है कि कुछ महीने पहले जब दुनिया के दूसरे हिस्सों में यूजर्स को एप्पल की तरफ से इसी तरह का एलर्ट मिला था, उस वक्त भी एप्पल से इसके बारे में सवाल पूछे गए थे। उस वक्त 22 अगस्त को बिल्कुल यही बात एप्पल ने अपनी वेबसाइट पर जारी एक बयान में कही थी। मंगलवार को भी एप्पल ने वही कहा। विपक्ष के नेताओं ने कहा, सवाल ये है कि एप्पल का एनक्रिप्शन सबसे मज़बूत होता है, फिर कैसे हैकिंग हो रही है? आम आदमी पार्टी के नेता सौरभ भारद्वाज ने सवाल उठाया कि आख़िर इस तरह का मैसेज किसी बीजेपी सांसद या नेता को क्यों नहीं आया। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि हार के डर से परेशान बीजेपी अब विपक्ष की रणनीति जानने के लिए जासूसी पर उतर आई है, ये लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है।
राहुल गांधी हर बात को अडानी से जोड़ते हैं। मंगलवार को भी उन्होंने यही किया। कहा, अडानी के राज़ खुलने के कारण सरकार विपक्ष के नेताओं की जासूसी करवा रही है, सरकार अडानी के मुद्दे से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है, सरकार लोगों को डराना चाहती है, लेकिन वो डरेंगे नहीं। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा, राहुल गांधी को पहले तो एप्पल से सवाल करना चाहिए कि ये क्या मैसेज है और एप्पल के जवाब से तसल्ली न हो तो FIR करा दें। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि राहुल गांधी ने तो पेगासस मामले में भी जासूसी का आरोप लगाया था लेकिन उन्होंने जांच में सहयोग करने से मना कर दिया था। अखिलेश यादव ने कहा, ये सब देश में लोकतन्त्र का खत्म करने की साजिश है, जब से बीजेपी की सरकार आई है, वो जासूसी ही करवा रही है। अखिलेश यादव ने कहा कि विरोधी दलों की जासूसी करवाने से बीजेपी को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि कितने लोगों की जासूसी करवाएगी, पूरा देश ही बीजेपी के खिलाफ है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि जो लोग एप्पल के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं, वो शिकायत करें, सरकार जांच कराएगी, हो सकता है कि ये मैसेज हैकर्स की तरफ़ से विपक्षी नेताओं को मज़ाक़ के तौर पर भेजा गया हो।
इस मामले में नोट करने वाली पहली बात तो ये है कि जिन नेताओं के नाम हैकिंग का अलर्ट आया, वो सारे विरोधी दलों के नेता हैं और सरकार के खिलाफ खुल कर बोलते हैं, इसलिए ये शक होना लाज़मी है कि कहीं सरकार की कोई एजेंसी तो उनका फोन हैक नहीं करवा रही। दूसरी बात, लोकतंत्र में विरोधी दलों के नेताओं के फोन को टैप करना या हैक करना किसी भी तरह से सहीं नहीं माना जा सकता, लेकिन सरकार जांच करवा रही है। ये अच्छी बात है। इस मामले की तह तक जाना चाहिए। पता लगना चाहिए कि क्या वाकई में हैकिंग की कोशिश हुई या नहीं। मुझे लगता है कि एप्पल का जो मैसेज आया इस पर जिस तरह की प्रतिक्रियाएं मिली, उसके दो पहलू हैं। एक सीक्रेसी यानी प्राइवेसी का मामला और दूसरा राजनीतिक। जहां तक प्राइवेसी और सीक्रेसी का सवाल है तो ये सही है कि अगर किसी के पास भी ऐसा मैसेज आएगा, तो उसे लगेगा कि उसके फोन को हैक करने की कोशिश की गई, और अगर ये मैसेज रिसीव करने वाला विरोधी दल का नेता है तो वो यही कहेगा कि सरकार करा रही थी। लेकिन हकीकत तो यही है कि ये तो एप्पल को भी नहीं पता कि हैकर्स कौन हैं? कब हैकिंग हुई? और एप्पल ये भी कह रहा है कि इस तरह के अलर्ट यूजर्स को सावधान करने के लिए भेजे जाते हैं। जरूरी नहीं है कि जिसको अलर्ट मिले उसका फोन हैक करने की कोशिश हुई ही हो। लेकिन इस एक अलर्ट का ये असर तो हुआ है कि विरोधी दलों को नरेन्द्र मोदी पर हमला करने का एक मौका मिल गया और इस अलर्ट के चक्कर में इंडिया एलायन्स के वो सारे नेता जो अब तक एक दूसरे को आंख दिख रहे थे, वो फिर एकजुट हो गए, एक सुर में बोलने लगे। (रजत शर्मा)
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