देश भर में भगवान राम के नाम पर सियासत हुई। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को मांसाहारी बताने वाले NCP के नेता जितेन्द्र अव्हाड हाथ जोड़कर माफी मांगते नजर आए। हालांकि उन्होंने बार बार ये कहा कि उनका भाषण गजब का था, सिर्फ एक लाइन ने गड़बड़ कर दी, हालांकि उनका दावा है कि वह लाइन भी गलत नहीं थी लेकिन फिर भी उनकी बात से अगर लोगों की आस्था को चोट पहुंची हो, तो वह खेद व्यक्त करते हैं। जितेन्द्र अव्हाड़ ने भगवान राम को मांसाहारी बताया था, कहा था कि 14 साल के वनवास के दौरान क्या राम साग भाजी खाते रहे? जंगल में मेथी का साग कहां मिलता है? राम मांस खाते थे, राम हमारे आदर्श हैं, इसलिए हम भी मांसहारी हैं। महाराष्ट्र में हंगामा हुआ, जितेन्द्र अव्हाड के पुतले जलाए गए, थानों में शिकायतें दर्ज कराई गईं, नासिक में साधु संतों ने अव्हाड़ की गिरफ़्तारी की मांग की। मुंबई में बीजेपी की महिला कार्यकर्ताओं ने जितेंद्र अव्हाड़ के पोस्टर्स पर जूते चप्पल बरसाए। जब बात बढ़ गई, हर तरफ से आलोचना होने लगी, जब सहयोगी पार्टियों के नेता भी अव्हाड के खिलाफ बोलने लगे तो NCP के नेता एकनाथ खड़से ने जितेंद्र अव्हाड़ को गलती सुधारने की सलाह दी। शरद पवार अपने परिवार के साथ शिरड़ी में सांई बाबा के दरबार में थे। शरद पवार ने अव्हाड़ को संदेश भिजवाया कि वह अपनी गलती सुधारें। पवार के आदेश का असर हुआ और अव्हाड़ ने अपने बयान के लिए माफी मांगी।
जितेन्द्र अव्हाड़ ने वाल्मीकि रामायण के श्लोकों का हवाला दिया, खुद को राम भक्त बताया, कहा कि उन्होंने जो कुछ कहा, रिसर्च के आधार पर कहा। लेकिन फिर भी अगर किसी की भावनाओं को चोट पहुंची हो तो वो खेद जताते हैं, क्योंकि शरद पवार ने कहा है कि सच अगर कड़वा हो तो वो सच नहीं बोलना चाहिए। जितेंद्र अव्हाड़ को तो ये भी नहीं पता है कि रामायण में कितने कांड हैं। वो सात कांडों के नाम भी लिख कर लाए थे। जिस श्लोक का हवाला दे रहे थे, वह संस्कृत में है। उसे जितेन्द्र अव्हाड़ कितना समझे होंगे, वो वही जानते होंगे। लेकिन मैं आपको बता दूं कि जितेन्द्र अव्हाड़ वाल्मीकि रामायण में अयोध्या कांड के 52 वें सर्ग के 102 वें श्लोक का हवाला दे रहे थे। उस श्लोक में एक शब्द है, मेध्यं। इस शब्द का अर्थ महाशय ने मांस लगाया लेकिन मैं जितेन्द्र अव्हाड़ को बताना चाहता हूं कि इस शब्द का अर्थ कन्द मूल और फलों का गूदा भी होता है। इसी अर्थ में ये शब्द दूसरे कई श्लोकों में प्रयोग हुआ है। इसके अलावा अव्हाड़ को वाल्मीकि रामायण में सुंदर कांड का वो हिस्सा भी पढ़ना चाहिए, जिसमें माता सीता के साथ हनुमान जी का संवाद है। 36 वें सर्ग का 41 वां श्लोक है, जिसमें माता सीता, हनुमान जी से प्रभु राम का हाल पूछती हैं तो हनुमान जी जवाब देते हैं। बताते हैं कि प्रभु राम दिन में सिर्फ एक बार खाते हैं, वन में मिले शास्त्रोक्त कंद मूल फल का ही सेवन करते हैं। इस तरह के कई वृतांत वाल्मीकि रामायण में हैं लेकिन अव्हाड़ ने तेंतीस हजार श्लोकों में से एक श्लोक का एक शब्द उठाकर मर्यादा पुरूषोत्तम को मांसाहारी बता दिया, इसीलिए उनकी आलोचना हो रही है।
साधु संत भी उनकी बातों से आहत हैं। रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने भी कहा कि हर शास्त्र में यही लिखा है कि वनवास के दौरान भगवान राम ने कंद-मूल खाकर गुज़ारा किया था, कहीं भी मांसाहार का ज़िक्र नहीं मिलता। जितेन्द्र अव्हाड़ ने गलती की, उन्हें गलती का एहसास है लेकिन फिर भी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने खेद जताया लेकिन ये भी कहा कि उन्होंने जो कहा वो सही था, इसलिए उनके खेद का कोई मतलब नहीं है। शरद पवार और उद्धव ठाकरे समझ रहे हैं कि जितेन्द्र अव्हाड़ की जहरीली जुबान पूरे गठबंधन का नुकसान करेगी। इसीलिए NCP, कांग्रेस और शिवसेना का कोई नेता उनके समर्थन में खड़ा नहीं हुआ। जितेन्द्र अव्हाड़ भी जानते हैं कि हिन्दू उदार हैं, सनातन में गलती करने वाले को माफ करना सबसे हिम्मत का काम बताया गया है। कहा गया है, क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। राम चरित मानस में तुलसी दास ने लिखा है, “जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन जैसी” इसलिए जितेन्द्र अव्हाड़ की भावना में जो राक्षसी गुण हैं, उन्होंने भगवान राम की कल्पना भी वैसी ही की। हमारे यहां तो जितेन्द्र अव्हाड़ को माफ कर दिया जाएगा लेकिन अव्हाड़ से लोग पूछ सकते हैं कि हिन्दू देवी देवताओं के अलावा किसी मज़हब के प्रतीकों के बारे में ऐसा बोलने की उनकी हिम्मत है और अगर दूसरे मज़हब के बारे में उन्होंने ऐसी बातें कही होतीं, तो क्या सिर्फ ऐसी माफी मांगकर वो बच जाते? लेकिन मुश्किल ये है कि आजकल राम मंदिर में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बारे में विरोधी दलों के नेता इसी तरह की उल्टी सीधी बातें कर रहे हैं।
गुरुवार को तेजस्वी यादव ने कह दिया कि मंदिर बनाने से क्या होगा, मंदिर की जगह अस्पताल बनाना बेहतर होता। तेजस्वी यादव ने कहा, मोदी कहते हैं कि राम के लिए महल बनवाया, लेकिन श्रीराम तो भगवान है, अगर उन्हें महल की ज़रूरत होती, तो ख़ुद बना लेते, करोड़ों रूपए मंदिर बनाने में खर्च हो रहा है, इतने पैसे में कितने अस्पताल और स्कूल बन जाते। तेजस्वी ने लोगों से कहा कि बीमार पड़ोगे तो मंदिर जाओगे या अस्पताल? इसलिए इस चक्कर में मत पड़ो। इस पर गिरिराज सिंह ने कहा कि तेजस्वी हिन्दुओं की आस्था पर चोट कर रहे हैं, लालू और नीतीश का राजनीतिक DNA सनातन विरोधी है, क्या तेजस्वी कहेंगे कि पटना के हज हाउस को तोड़कर अस्पताल बनवा देंगे? कांग्रेस के नेता अब इस मुद्दे पर थोड़ा संभलकर बोल रहे हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि राम मंदिर इसलिए बना क्योंकि राजीव गांधी ने मंदिर का ताला खुलवाया, राजीव गांधी ने शिलान्यास कराया लेकिन बीजेपी ने इस धार्मिक कार्यक्रम को अपना राजनीतिक एजेंडा बना लिया है।
RJD, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बयानों से ये तो साफ है कि विरोधी दलों के गठबंधन में शामिल पार्टियां अयोध्या के मुद्दे पर कन्फ्यूज़्ड हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि बीजेपी के आक्रामक रुख़ को कैसे काउंटर करें। इसी कन्फ्यूजन में गलतियां हो रही हैं, बेतुके बयान आ रहे हैं। इससे मामला और उलझ रहा है। ममता की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने तो कह दिया है कि दीदी प्राण प्रतिष्ठा समारोह के कार्यक्रम में हिस्सा नहीं लेंगी। सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने अभी तक फैसला नहीं किया है कि जाएं या न जाएं। नीतीश और लालू ने अभी तक निमंत्रण स्वीकार नहीं किया है। उद्धव को अभी तक निमंत्रण कार्ड नहीं मिला है। अखिलेश यादव अयोध्या जाएंगे या नहीं इसको लेकर कन्फ्यूज्ड हैं। इसलिए अब ये लग रहा है कि मोदी-विरोधी मोर्चे के नेता प्राण प्रतिष्ठा के समारोह में नहीं जाएंगे। प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद एक साथ अयोध्या जाने का कार्यक्रम बनाएंगे। इसके दो फायदे होंगे। एक तो राम विरोधी कहलाने से बच पाएंगे और बीजेपी पर मंदिर के नाम पर सियासत करने का इल्जाम लगा पाएंगे। दूसरा, चूंकि गठबंधन में शामिल सभी पार्टियों के नेताओं को निमंत्रण नहीं मिला है, इसलिए अगर कुछ लोग चले गए तो गठबंधन में दरार पड़ सकती है, इसलिए हो सकता है एकजुटता दिखाने के लिए 22 जनवरी को विरोधी दल का कोई नेता न जाए और उसके बाद सभी नेता एक साथ रामलला के दर्शन करने पहुंचें। (रजत शर्मा)
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