नेशनल हेराल्ड से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पिछले दो दिनों से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछताछ कर रहा है। सोमवार को ईडी ने राहुल गांधी से साढ़े 8 घंटे तक पूछताछ की। बीच में ब्रेक के दौरान राहुल गांधी दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में भर्ती अपनी बीमार मां सोनिया गांधी से मिलने गए। ईडी ने इस मामले में सोनिया गांधी को भी तलब किया है। हालांकि उन्होंने ईडी से समय मांगा है क्योंकि वे कोरोना से संक्रमित होने की वजह से इन दिनों अपना इलाज करा रही हैं। ईडी ने अब सोनिया गांधी को 23 जून को पूछताछ के लिए बुलाया है।
आलाकमान के निर्देश पर कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, अन्य सीनियर लीडर्स और कार्यकर्ता सोमवार से ही दिल्ली में जमा होने लगे। दिल्ली पुलिस ने इन नेताओं को ईडी दफ्तर तक मार्च निकालने से रोक दिया। सोमवार और मंगलवार दोनों दिन धारा 144 के उल्लंघन के आरोप में पुलिस ने कांग्रेस के कई नेताओं को हिरासत में ले लिया
कांग्रेस ने इस विरोध प्रदर्शन को सत्याग्रह का नाम दिया। पार्टी नेताओं का कहना है कि केंद्र द्वारा कांग्रेस के खिलाफ जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर यह सत्याग्रह किया जा रहा है। वहीं बीजेपी का कहना है कि यह वित्तीय गड़बड़ियों का मामला है और कांग्रेस की ओर से अनावश्यक ड्रामेबाजी की जा रही है।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, 'यह फर्जी गांधीवादियों का फर्जी सत्याग्रह है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों फिलहाल जमानत पर हैं लेकिन कांग्रेस बड़ा ड्रामा कर रही है।' वहीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, ये विरोध गांधी परिवार की गलत कमाई को बचाने का एक नाटक है। उधर, कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ईडी की पूछताछ को राजनीतिक बदले की कार्रवाई बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि भारत में अब 'तानाशाही का राज है।'
सूत्रों के मुताबिक ईडी के दो सहायक निदेशकों ने राहुल गांधी से उनकी कंपनी यंग इंडिया लिमिटेड द्वारा नेशनल हेराल्ड में किए गए निवेश के संबंध में पूछताछ की। यंग इंडिया में उनकी हिस्सेदारी और अन्य शेयर होल्डर्स, देश और विदेशों में उनके व्यक्तिगत बैंक खातों, चल-अचल संपत्ति और अन्य मुद्दों को लेकर पूछताछ की गई। आपको बता दें कि नेशनल हेराल्ड की होल्डिंग कंपनी असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) है। पंडित जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने 1937 में इसकी शुरुआत की थी। चूंकि एजेएल घाटे में चल ही थी इसलिए इसके न्यूज पेपर्स का प्रकाशन बंद कर दिया गया था। एजेएल ने कांग्रेस से 90 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था।
वर्ष 2010 में राहुल गांधी ने यंग इंडिया कंपनी बनाई। इस कंपनी में राहुल और उनकी मां सोनिया गांधी की 76 फीसदी हिस्सेदारी है। 24 फीसदी हिस्सेदारी तत्कालीन कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोतीलाल बोरा और कांग्रेस नेता ऑस्कर फर्नांडिस (इन दोनों नेताओं की मौत हो चुकी है) के पास थी। यंग इंडियन ने 50 लाख का भुगतान कर एजेएल के शेयर खरीद लिए। यंग इंडियन एक गैर-लाभकारी (नॉट फॉर प्रॉफिट) कंपनी है और इसके मालिक कोई वेतन या भत्ता नहीं लेते हैं। अब आरोप यह लगा कि एजेएल के पास कई हजार करोड़ की संपत्ति थी जिसे यंग इंडियन ने कौड़ियों के दाम पर हासिल कर लिया। वर्ष 2012 में इस मामले को लेकर डॉ. सुब्रम्ण्यम स्वामी ने एक केस दर्ज कराया और उसी केस की जांच केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही है।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि राहुल और सोनिया गांधी कई करोड़ के घोटाले में शामिल थे और उन्होंने हवाला ऑपरेटर्स की मदद से कांग्रेस पार्टी द्वारा जमा किए गए चंदे का दुरुपयोग किया। स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि ऐसा करके सोनिया और राहुल ने एजेएल की कई हजार करोड़ की संपत्ति पर कब्जा कर लिया।
वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, इस सौदे से न तो सोनिया गांधी को और न ही राहुल गांधी को एक पैसे का भी फायदा हुआ। उन्होंने कहा, एजेएल के पास नेशनल हेराल्ड न्यूज पेपर का मालिकाना हक था और वह अपने कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थ था, ऐसे वक्त में सोनिया और राहुल गांधी की स्वामित्व वाली यंग इंडियन उसे बचाने के लिए आगे आई।
सुरजेवाला ने कहा-केंद्रीय एजेंसियां पिछले सात-आठ साल से इस मामले की जांच कर रही थीं तब तो उन्हें किसी तरह की विसंगति या कुछ अवैध नहीं मिला। उन्होंने कहा कि लोन को शेयरों में बदलकर भुगतान किया गया और इक्विटी शेयर से जमा पैसों से वहां काम करनेवाले लोगों का वेतन भुगतान किया गया था। उन्होंने दावा किया कि सभी लेनदेन पूरी तरह पारदर्शी थे।
हालांकि, ईडी ने केवल सोनिया और राहुल गांधी को तलब किया था लेकिन कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान और छत्तीसढ़ के मुख्यमंत्रियों , कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश और केरल के सीनियर नेताओं और सांसदों को राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया था।
कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि मोदी सरकार कांग्रेस के सीनियर नेताओं को समन जारी कर उन्हें परेशान करने की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि न तो वे और न ही उनकी पार्टी नरेंद्र मोदी और जांच एजेंसियों से डरती है।
बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस और राहुल गांधी डरे हुए हैं और इसलिए पार्टी ने अपने सभी सीनियर नेताओं को दिल्ली भेज दिया और उन्हें सड़कों पर उतरने को कहा। सीधा सा सवाल है कि अगर सोनिया और राहुल गांधी ने कोई आर्थिक गड़बड़ी नहीं की है तो फिर इस तरह की ड्रामेबाजी और राजनीतिक ताकत का प्रदर्शन क्यों? पार्टी के कार्यकर्ता गिरफ्तारी के लिए बाहर क्यों आ रहे हैं ? क्या ये मानना सही होगा कि यह प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति का हिस्सा हो सकता है ? (रजत शर्मा)
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