देश के मतदाताओं ने अपना जनादेश सुना दिया है। नयी लोकसभा में 292 सीटों के साथ एनडीए को बहुमत मिला है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी हफ्ते अपने तीसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति भवन में शपथ लेने वाले हैं। मोदी ने मंगलवार को कहा कि देश की जनता ने तीसरी बार उन्हें आशीर्वाद दिया है, जनता का ये फैसला लोकतंत्र को मजबूत करेगा, यह विकसित भारत के लक्ष्य की तरफ बढ़ने का जनादेश है। बीजेपी को इस बार पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, उसे 240 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई है। अब सवाल है कि जनता ने जो जनादेश दिया, उसका मतलब क्या है? लोगों ने ऐसा जनादेश दिया है जो भारतीय राजनीति के इतिहास में लंबे समय तक याद रखा जाएगा। बीजेपी और NDA को ऐसी जीत दी है, जो हार की फीलिंग देती है। कांग्रेस के अलायंस को ऐसी हार दी है, जो उन्हें जीत की फीलिंग दे रही है। अगर राजनीति के इतिहास से देखा जाए, तो 1962 के बाद ये पहला मौका है, जब ऐसी सरकार जिसने पांच-पांच साल के दो कार्यकाल पूरे कर लिए हों, तीसरी बार फिर सरकार बनाएगी। दूसरी बात, बीजेपी की सीटें जरूर कम हुई हैं लेकिन वोट शेयर लगभग उतना ही है जितना 2014 और 2019 में था। कांग्रेस दो-दो बार चुनाव हारने के बावजूद, सारी मोदी विरोधी पार्टियों से अलायंस करके मैदान में उतरने के बावजूद, मुश्किल से 100 सीटों के आसपास पहुंच पाई। लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हुई हैं लेकिन NDA के पास इतनी सीटें हैं कि आराम से सरकार बना सके। लेकिन इस शोरगुल में दो तीन बातें नज़रअंदाज़ नहीं की जा सकती। गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल, दिल्ली, छत्तीसगढ़ ऐसे राज्य हैं जहां बीजेपी ने लगभग सारी की सारी सीटों पर जीत हासिल की है। एक और दिलचस्प तथ्य ये है कि बीजेपी ओडिशा में अपने दम पर सरकार बनाएगी। सोमवार को ही अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी को जीत हासिल हुई थी और आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम पार्टी के साथ मिलकर NDA सत्ता में आई है, लेकिन इस सारे चुनाव का सबसे अच्छा नतीजा रहा कि अब कोई EVM पर सवाल नहीं उठाएगा, अब कोई चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाएगा, अब कोई ये नहीं कहेगा कि जिला कलक्टर यानी रिटर्निंग अफसर पर दबाव डालकर चुनाव के नतीजे बदलवा दिए। और जिस तरह से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हुए हैं, इसका संदेश पूरी दुनिया में जाएगा। पूरा विश्व देख रहा है कि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, यहां के लोग बड़े शांतिपूर्ण तरीके से अपनी सरकार बनाते हैं। हां, ये ज़रूर है कि हमारे यहां इस बार सारे के सारे एग्जिट पोल फेल हुए, गलत साबित हुए। इसीलिए अब सोचना पड़ेगा कि लाखों रुपये खर्च करके जो एग्जिट पोल कराए जाते हैं, वो कराने भी चाहिए या नहीं। बीजेपी को भी इस बात पर आत्ममंथन करना चाहिए कि इतना परिश्रम, इतना काम और इतनी कल्याणकारी योजनाओं लागू करने के बाद भी उनकी सीटें कम क्यों हुईं। अब राज्यवार कुछ विश्लेषण।
उत्तर प्रदेश
इस चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका उत्तर प्रदेश में लगा। यूपी के नतीजे अप्रत्याशित हैं। बीजेपी 62 से 33 सीटों पर आ गई और समाजवादी पार्टी पांच से 37 पर पहुंच गई। कांग्रेस को भी छह सीटें मिलीं। बहुजन समाज पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका। राहुल गांधी और शरद पवार ने कहा कि यूपी के लोगों ने कमाल कर दिया। वाकई में यूपी के नतीजे कांग्रेस के लिए बड़ी जीत है। अमेठी में स्मृति ईरानी 1 लाख 67 हजार से ज्यादा वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हारी। कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा ने स्मृति ईरानी को हराया। अमेठी के अलावा रायबरेली सीट से राहुल गांधी 3 लाख 89 हजार से ज्यादा वोटों से जीते। यूपी के ज्यादातर इलाकों में जो बीजेपी के गढ़ माने जाते थे, वहां बीजेपी की हार हुई, पूर्वांचल, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य यूपी में बीजेपी को झटका लगा। अखिलेश यादव की रणनीति इस बार काम कर गई। बीजेपी के नेताओं को अब तक समझ नहीं आ रहा है कि गलती कहां हुई। इतना बड़ा सदमा कैसे लगा। हालत ये है कि फैजाबाद की सीट, जिसमें अयोध्या आता है, वहां भी बीजेपी हार गई। फैजाबाद में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश प्रसाद ने बीजेपी के सांसद लल्लू सिंह को 54 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। लखीमपुर खीरी में अजय मिश्रा टेनी, सुल्तानपुर में मेनका गांधी, फतेहपुर से मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति हार गए। अखिलेश यादव के परिवार के पांच सदस्य जो चुनाव लड़ रहे थे, जीत गए। बदायूं से शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव, फिरोजाबाद से रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव, आजमगढ़ से धर्मेन्द्र यादव, मैनपुरी से डिंपल यादव और कन्नौज से खुद अखिलेश यादव चुनाव जीते हैं। नतीजों को गौर से देखें तो पश्चिमी यूपी, पूर्वांचल, बुंदेलखंड और अवध समेत सभी इलाकों में बीजेपी को नुकसान हुआ है। बीजेपी के इस नुकसान के पीछे बहुजन समाज पार्टी की खराब परफॉर्मेंस भी एक फैक्टर दिखता है। पिछली बार 10 सीटें जीतने वाली मायावती की पार्टी इस बार यूपी में खाता भी नहीं खोल पाई। शुरुआती तौर पर ऐसा लग रहा है कि मायावती का दलित वोट इंडिया अलायंस की तरफ स्विच कर गया जिसका नुकसान बीजेपी को हुआ। वेस्टर्न यूपी में राष्ट्रीय लोकदल और पूर्वांचल में राजभर, निषाद पार्टी, अपना दल की परफॉर्मेंस भी बेहद खराब रहा। दूसरी तरफ इंडिया अलायंस की दोनों पार्टियों समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को इसका फायदा हुआ। समाजवादी पार्टी की तरफ OBC वोटर गोलबंद होता दिखा तो दलित वोट भी इस बार उन्हें मिला। महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर, संविधान और आरक्षण वाला मुद्दा अखिलेश पिछड़ों दलितों के मन तक पहुंचाने में कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश के नतीजे बीजेपी के लिए बहुत बड़ा धक्का है। पिछली बार यूपी में बीजेपी ने 62 सीटें जीती थीं, 50 परसेंट वोट शेयर बीजेपी के पास था, लेकिन यूपी की जनता के मन को इस बार बीजेपी पढ़ने में नाकाम रही। उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर गिरकर 42 परसेंट पर आ गया जबकि समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा फायदे में रही। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 18 परसेंट वोट मिले थे लेकिन इस बार इसमें जबरदस्त इजाफा हुआ। सपा का वोट शेयर बढ़कर 34 परसेंट के आसपास पहुंच गया। कांग्रेस को भी इस बार यूपी में फायदा हुआ। कांग्रेस की सीटें भी बढ़ीं और वोट परसेंट भी। 2019 में कांग्रेस को सिर्फ 6 फीसदी के करीब वोट मिले थे लेकिन इस चुनाव में ये बढ़कर 10 फीसदी के आसपास पहुंच गए। मायावती का बसपा का वोट शेयर 19 से गिरकर 10 परसेंट पर आ गया। लोगों के मन में ये सवाल है कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने मेहनत की, कानून व्यवस्था दुरूस्त की, आर्थिक हालत सुधारी, केन्द्र की योजनाओं का बेहतर तरीके से लागू कराया। इसके बाद भी यूपी में बीजेपी को झटका क्यों लगा? इसका जवाब आसान है। बीजेपी ने उम्मीदवारों के चयन में गड़बड़ी की, जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा। दूसरी वजह अखिलेश यादव ये संदेश देने में कामयाब रहे कि मायावती बीजेपी की मदद कर रही है, मोदी जीते तो आरक्षण को खत्म कर देंगे। इससे मुसलमानों के साथ साथ दलितों का बड़ा वोट शेयर भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवारों को मिला। अखिलेश यादव के गठबंधन ने बेहतर तालमेल के साथ काम किया। सभी जातियों का वोट उन्हें मिला, इसलिए वो जीते। हालांकि अखिलेश यादव यादव अब दावा कर रहे हैं कि लोग मंहगाई और बेरोजगारी से परेशान थे लेकिन सवाल ये है कि मंहगाई और बेरोजगारी तो बिहार में भी थी, लेकिन बिहार के नतीजे बिल्कुल उलट आए।
बिहार
बिहार में तेजस्वी यादव ने मेहनत भी कम नहीं की थी। बिहार में भी RJD, कांग्रेस और लेफ्ट का अलायन्स था। बिहार में एनडीए ने अच्छा प्रदर्शन किया, राज्य की 40 में से बीजेपी-JDU-HAM के एलायंस को 30 सीटें मिली। नीतीश कुमार की JDU को 12, बीजेपी को 12 सीटों पर जीत मिली। चिराग़ पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी पांच सीटों पर लड़ी और पांचों जीतीं। जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ने एक सीट पर जीत हासिल की। RJD को 4, कांग्रेस को तीन और CPI-ML को 2 सीटें मिलीं। पूर्णिया से निर्दलीय लड़ रहे पप्पू यादव ने जीत हासिल की। आरा से केंद्रीय मंत्री आर के सिंह, और पाटलिपुत्र से बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव चुनाव हार गए। रामकृपाल यादव को लालू यादव की बड़ी बेटी मीसा भारती ने हराया। बिहार में 12 सीट जीतकर नीतीश कुमार केंद्र की नई सरकार में किंग-मेकर बन गए हैं क्योंकि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं हासिल किया है। तेजस्वी यादव ने ढ़ाई सौ से ज्यादा रैलियां की। उनकी रैलियों में भीड़ भी दिखाई दी, जोश भी था लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। अब वो हार के लिए EVM को भी दोषी नहीं ठहरा सकते क्योंकि पड़ोस में यूपी है जहां अखिलेश ने अच्छी खासी सफलता हासिल की है। असल में बिहार के चुनाव के नतीजों का सबसे बड़ा संदेश ये है कि नीतीश कुमार नाम का टाइगर अभी जिंदा है, अभी भी बिहार के गरीब लोग नीतीश को अपना नेता मानते हैं। जो लोग कह रहे थे कि बीजेपी ने नीतीश के साथ गठबंधन करके गलती की, उन्हें जनता ने जवाब दे दिया। चूंकि बीजेपी को अपने दम पर जनादेश नहीं मिला है इसीलिए नीतीश कुमार अब NDA में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे।
राजस्थान, हरियाणा
राजस्थान के नतीजों ने भी बीजेपी को हैरान किया। पिछले साल बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की थी। राजस्थान में लोकसभा की कुल 25 सीटें हैं। पिछली बार यहां एनडीए ने क्लीन स्वीप किया था। बीजेपी को 24 सीटें मिली थीं। इस बार बीजेपी को 10 सीटों का नुकसान हुआ। राजस्थान में बीजेपी को सिर्फ 14 सीटें मिली। कांग्रेस को जालौर सीट पर बड़ा झटका लगा। अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को बीजेपी के लुंबाराम ने 2 लाख से ज्यादा वोट से हरा दिया। बीजेपी को जयपुर, उदयपुर और राजसमंद में जीत हासिल हुई। जयपुर में बीजेपी की मंजू शर्मा ने कांग्रेस नेता प्रताप सिंह खाचरियावास को 3 लाख 31 हजार से ज्यादा वोट से हराया। राजस्थान में बीजेपी को आपसी झगड़ों ने हराया। वसुंधरा राजे इस बार पूरी तरह सक्रिय नहीं रही। मुख्यमंत्री नए हैं। कई सीटों पर टिकट काटने से जाट वोटर्स नाराज हुए। कम से कम 4 सीटों में जातिगत समीकरणों का ध्यान नहीं रखा गया। इसी तरह हरियाणा में भी बीजेपी 10 में से केवल 5 सीटें ही जीत पाई। पिछले चुनाव में बीजेपी ने हरियाणा में सभी दस सीटें जीती थीं। कांग्रेस ने अंबाला, हिसार, सिरसा, सोनीपत और रोहतक सीट बीजेपी से छीनी।
पिछले चुनाव में कांग्रेस बंटी हुई थी, इस बार हिसाब उल्टा था। कांग्रेस मिलकर लड़ी और बीजेपी के नेता आपस में लड़ते रहे। कांग्रेस के लोग तो कह रहे हैं कि सरकार के खिलाफ anti-incumbency थी। लेकिन सवाल ये हैं कि अगर anti-incumbency इतना बड़ा मसला था तो गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड में ये मुद्दे काम क्यों नहीं आए?
महाराष्ट्र, बंगाल
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी ने महायुति को तगड़ा झटका दिया है। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी कुल 48 में से 29 सीटें जीती जबकि महायुति को सिर्फ 18 सीटें मिलीं। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा फायदे में कांग्रेस रही। कांग्रेस 17 सीटों पर लडी और उसमें से 13 सीटें जीतीं। शरद पवार की पार्टी ने 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और वो 8 सीटें जीती, उद्धव ठाकरे की शिवसेना 21 सीटों पर लडी और 9 पर जीती। महाराष्ट्र में दो बातें सामने आईं। एक, उद्धव ठाकरे के प्रति लोगों की सहानुभूति नजर आई। इसका बीजेपी को नुकसान हुआ।शिवसेना के टुकड़े करना लोगों को पसंद नहीं आया। जिस तरह से विधायकों को गुवाहाटी ले जाकर मेहमान बनाकर रखा गया, उससे अच्छा impression नहीं पड़ा। दूसरी बात बीजेपी के पास ज्यादा सीटें थीं। देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री के तौर पर अच्छा काम किया था। इसके बावजूद सरकार बनने के बाद जब मौका मिला, तो एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इससे बीजेपी के कार्यकर्ता और समर्थक दोनों का मनोबल गिरा। महाराष्ट्र में इससे बीजेपी को नुकसान हुआ। पश्चिम बंगाल में एक बार फिर ममता बनर्जी का सिक्का चला। तृणमूल कांग्रेस ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की। बीजेपी 18 से घट कर 12 सीटों पर आ गई। ममता बनर्जी ने कहा कि अगर मोदी सत्ता में न होते और सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करते, तो उनको जितनी सीटें मिलीं, उससे आधी ही मिलतीं। बंगाल के नतीजों ने सबको चौंकाया। सारे एक्सपर्ट्स फेल हो गए। कुछ दिन पहले मैंने प्रशांत किशोर से बातचीत की। प्रशांत किशोर ने बंगाल के विधानसभा चुनाव में ममता को जिताने के लिए बड़ी मेहनत की थी। उस समय उन्होंने बीजेपी की हार की भविष्यवाणी की थी जो सही साबित हुई। इस बार उन्हें लगता था कि बीजेपी बंगाल में अच्छी खासी जीत हासिल करेगी। बंगाल को लेकर प्रशांत किशोर बिलकुल गलत साबित हुए लेकिन ओडिशा के बारे में जो उन्होंने कहा वो सही साबित हुआ।
ओड़शा, आंध्र प्रदेश
ओड़शा में बीजेपी को ऐतिहासिक सफलता मिली। 25 साल से ओडिशा में एकछत्र राज कर रहे नवीन पटनायक की विदाई हो गई। लोकसभा और विधानसभा की ज्यादातर सीटें बीजेपी ने जीत ली। ओड़िशा में पहली बार बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी। 147 सीटों वाली ओडिशा असेंबली में बीजेपी को 78 सीट मिली, नवीन पटनायक की बीजू जनता दल को 51 ही सीटें मिलीं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओडिशा में 21 सीटों में से 19 पर जीत हासिल की, जबकि बीजेडी और कांग्रेस को सिर्फ एक-एक सीट मिली । ओडिशा में बीजेपी की जीत इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 25 साल से नवीन पटनायक सत्ता में थे। वो ओडिया नहीं बोल सकते थे, वह ज्यादा पब्लिक से नहीं मिलते थे और उनका पांच-पांच बार चुनाव जीतना एक चमत्कार था। किसी को नहीं लगता था कि जबतक नवीन बाबू राजनीति में हैं उनको हराया जा सकता है लेकिन बीजेपी ने ये कमाल करके दिखाया क्योंकि ओडिशा में बीजेपी के सारे एकजुट होकर लड़े। आंध्रप्रदेश में बीजेपी चंद्रबाबू नायूड की तेलुगू देशम पार्टी और पवन कल्याण की जनसेना पार्टी के साथ मिलकर लड़ी। इस अलायंस को 175 सदस्यों वाली विधानसभा में 163 सीटें मिली है। टीडीपी 134, जनसेना पार्टी 21 और बीजेपी 8 सीटों पर जीती। मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी 12 सीट पर सिमटकर रह गई। आंध्रप्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से टीडीपी को 16, बीजेपी को 3 और जनसेना पार्टी को 2 सीट मिली हैं। यानी 25 लोकसभा सीटों में से 21 सीटें इस अलांयस ने जीती हैं। 16 लोकसभा सीटों के साथ अब चंद्रबाबू नायूड की केंद्र सरकार में भी अहम भूमिका हो गई है। NDA में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा सांसद उन्हीं की पार्टी यानी टीडीपी के हैं। (रजत शर्मा)
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