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Rajat Sharma’s Blog : क्या अब ठाकरे मुक्त शिवसेना ?

शिवसेना के नेता और कार्यकर्ता यह देख रहे थे कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते उद्धव एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।

Written by: Rajat Sharma @RajatSharmaLive
Published on: June 23, 2022 17:08 IST
India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India TV Chairman and Editor-in-Chief Rajat Sharma.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की महा विकास आघाड़ी सरकार अब अंतिम सांसें गिन रही है। विधायक एक-एक कर उनका साथ छोड़ते जा रहे हैं और उधर बागी नेता एकनाथ शिंदे का खेमा और मजबूत होता जा रहा है। उद्धव ठाकरे सरकार को जल्द इस्तीफा देना पड़ सकता है,  क्योंकि ऐसा लग रहा है कि बागी विधायकों की शिवसेना में वापसी अब मुश्किल है। उनके वापस लौटने के संकेत नहीं के बराबर हैं। एकनाथ शिंदे का गुट गुवाहाटी के होटल में डेरा डाले हुए हैं जहां कुल 42 विधायक मौजूद हैं। इनमें निर्दलीय विधायकों की संख्या 8 है। 

एकनाथ शिंदे गुट की ओर से गुरुवार दोपहर सोशल मीडिया पर उद्धव ठाकरे के नाम एक खुली चिट्ठी जारी की गई। इस चिट्ठी पर तारीख 22 जून लिखा है। यह चिट्ठी शिवसेना के बागी विधायक संजय शिरसाट के नाम से जारी की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले ढाई साल से पार्टी विधायकों के लिए मुख्यमंत्री के सरकारी आवास 'वर्षा' के दरवाजे बंद कर दिए गए थे।

शिरसाट ने आरोप लगाया कि उद्धव ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को अयोध्या जाने की इजात दी लेकिन शिवसेना विधायकों को अयोध्या जाने से रोक दिया गया। शिरसाट ने अपनी चिट्ठी में आरोप लगाया, 'जब पार्टी के लिए हिंदुत्व और राम मंदिर का मुद्दा महत्वपूर्ण है तो फिर पार्टी नेतृत्व ने हमें अयोध्या जाने से क्यों रोका ? विधायकों को बुला लिया और फिर उन्हें कहा गया कि वे आदित्य ठाकरे के साथ अयोध्या नहीं जाएं।' 

शिवसेना के बागी विधायक ने अपनी चिट्ठी में यह भी आरोप लगाया कि 'मुख्यमंत्री कभी सचिवालय नहीं गए और वह मातोश्री में रहा करते थे। हमें उनके आसपास के लोगों को कॉल करना होता था। वे कभी हमारा फोन नहीं उठाते थे। हम सब इन बातों से तंग आ चुके थे और एकनाथ शिंदे से यह कदम उठाने का आग्रह किया।'

एकनाथ शिंदे के खेमे में बागी विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है। शिंदे का साथ दे रहे विधायकों और बीजेपी एवम् अन्य एनडीए समर्थक दलों को मिला दें तो विधायकों की कुल संख्या 164 हो जाती है जो बहुमत के आंकड़ों से 20 ज्यादा है। वहीं महाविकास अघाड़ी गठबंधन का संख्या बल घट चुका है क्योंकि शिवसेना के पास अब केवल 13 विधायक बचे हैं। इस तरह महाविकास अघाड़ी में विधायकों की कुल संख्या 124 के आंकड़े तक ही पहुंचती है जो कि बहुमत से काफी कम है। एकनाथ शिंदे ने कहा है कि वह शिवसेना को बंटने नहीं देंगे बल्कि उद्धव ठाकरे को पद छोड़ने और शिवसेना का नेतृत्व अपने खेमे को सौंपने के लिए मनाएंगे। शिंदे पहले ही कह चुके हैं कि वे बीजेपी के साथ गठबंधन करना पसंद करेंगे। 

इस बीच बुधवार रात उद्धव ठाकरे ने अपना आधिकारिक आवास 'वर्षा' खाली कर दिया और सामान के साथ अपने घर 'मातोश्री' में शिफ्ट हो गए। जिस वक्त उद्धव 'मातोश्री' जा रहे थे उस वक्त हजारों की तादाद में शिव सैनिक उमड़ पड़े और 9 किलोमीटर की यात्रा के दौरान उनके समर्थन में नारे लगाए। उद्धव ठाकरे ने अभी इस्तीफा नहीं दिया है लेकिन अपने आधिकारिक आवास को खाली कर अपने समर्थकों को एक संदेश देने की कोशिश की है। 

वहीं दूसरी ओर बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस और उसके सहयोगी पूरे घटनाक्रम पर बारीक नजर रखे हुए हैं और सही समय का इंतजार कर रहे हैं ताकि नई सरकार सत्ता संभाल सके। 

मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे बुधवार को अपने फेसबुक लाइव स्पीच में साफ तौर पर बचाव करते हुए नजर आए। वे डिफेंसिव थे। उन्होंने कई बार कहा कि वे इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं और (सीएम की) कुर्सी से चिपके रहना पसंद नहीं करेंगे। लेकिन उद्धव ने कहा कि जिन लोगों ने बगावत की है वे उनके पास आएं और उनके मुंह पर कहें कि वे चाहते हैं आप सीएम पद छोड़ दें। इससे साफ है कि उद्धव हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। 

अपने भाषण में उद्धव ने कहा कि वह एनसीपी या कांग्रेस नेताओं की तुलना में शिवसैनिकों को तरजीह देते थे। उन्होंने कहा, 'अगर किसी शिवसेना विधायक या नेता को ऐसा लगता है कि मैं मुख्यमंत्री बने रहने के लायक नहीं हूं, तो उन्हें मुंबई आकर मेरे सामने यह बताना चाहिए। मैं तुरंत इस्तीफा दे दूंगा।'

उद्धव ठाकरे को यह दिन इसलिए देखना पड़ा क्योंकि उन्होंने यह मान लिया था कि उनका कद बाला साहेब ठाकरे की तरह बड़ा है। लेकिन शिवसेना नेताओं को उनमें कभी बाला साहेब की छवि नजर नहीं आई। दशकों से ठाकरे परिवार के प्रति वफादार रहे एकनाथ शिंदे जैसे नेताओं को उन्होंने लगातार दरकिनार किया। वे यह मान चुके थे कि शिंदे कहीं नहीं जाएंगे और उनकी सही कीमत नहीं पहचान सके। 

उद्धव ने कभी-भी शिवसेना के सीनियर नेताओं को भी मिलने का समय नहीं दिया और न ही उनके अनुरोध पर कोई विचार किया। उन्होंने इस झूठी धारणा को बरकरार रखा कि शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं को उनके सिवा कहीं नहीं जाना है। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि शिवसेना के विधायक बगावत करेंगे। 

वहीं दूसरी तरफ शिवसेना के नेता और कार्यकर्ता यह देख रहे थे कि गठबंधन की मजबूरियों के चलते उद्धव एनसीपी और कांग्रेस के नेताओं को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। ऐसा लग रहा था कि जैसे उद्धव को शरद पवार और सोनिया गांधी से सर्टिफिकेट लेने में ज्यादा दिलचस्पी है। इसके बाद एकनाथ शिंदे जैसे पुराने और वफादार साथी ने यह फैसला लिया कि उद्धव का वक्त अब खत्म हो चुका है और उन्हें अपने समर्थकों के साथ विद्रोह करना चाहिए। 

एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी के विधायकों और समर्थकों से लगातार मिलते रहते थे। वे हिंदुत्व की विचारधारा के बारे में बोलते थे और तब शिवसेना के कार्यकर्ताओं को यह अहसास हुआ कि जब वे बीजेपी के साथ गठबंधन में थे तो उन्हें ज्यादा सम्मान मिलता था। 

उद्धव मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में उन्होंने किंग मेकर शरद पवार को अपना बॉस मान लिया। एकनाथ शिंदे जैसे सीनियर नेताओं को जब ये दिखाई दिया कि उनके लिए आगे के रास्ते बंद हैं। उद्धव अपने बाद अपने बेटे आदित्य को सीएम बनाएंगे। किसी और को चांस मिलना मुश्किल है। शिवसैनिकों को लगा कि ये भी बाला साहेब के स्टाइल के खिलाफ है। इसीलिए उन्होंने तय किया कि अगर वो शिवसेना पर ही कब्जा कर लें और उद्धव को बाहर करके बीजेपी के साथ सरकार बना लें तो उनके अच्छे दिन वापस आ जाएंगे।

महाराष्ट्र में पिछला विधानसभा चुनाव बीजेपी और शिवसेना ने साथ मिलकर लड़ा था। शिवसेना के 99 फीसदी विधायक यह चाहते थे कि बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बने लेकिन उद्धव और उनके बेटे आदित्य ठाकरे की उच्च व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण शिवसेना के 99 फीसदी विधायकों की भावनाओं को खारिज कर दिया गया। 

पिछले ढाई साल से चल रही महाविकास आघाड़ी सरकार के शासन के दौरान शिवसेना के ज्यादातर विधायकों और मंत्रियों ने देवेंद्र फडणवीस सरकार और एमवीए सरकार के अंतर को लगभग हर रोज महसूस किया। इन विधायकों को लगा कि इस शासन में उनकी कोई भूमिका ही नहीं है। उद्धव ठाकरे अपने विधायकों की भावनाओं को समझने में नाकाम रहे। वे शरद पवार और सोनिया गांधी को खुश रखने में व्यस्त रहे और यही उनके राजनीतिक पतन का कारण बना। (रजत शर्मा)

देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 23 जून, 2022 का पूरा एपिसोड

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