जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के निधन से भारत ने एक अच्छे दोस्त को खो दिया है। शिंजो आबे की शुक्रवार को जापान की प्राचीन राजधानी नारा में हत्या कर दी गई। रेलवे स्टेशन के पास चुनाव प्रचार के दौरान एक सिरफिरे ने उन्हें गोली मार दी। जब ये खबर आई तो पहले यह यकीन ही नहीं हुआ। क्योंकि अमूमन जापान से इस तरह की खबरें नहीं आती हैं। वहां इस तरह से राजनीतिक हत्याएं नहीं होती हैं। शिंजो आबे पर हमले की खबर से पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई।
शिंजो आबे पर हमला करनेवाला शख्स उनसे कुछ मीटर की दूरी पर पीछे की तरफ खड़ा था। उसके हाथ में हैंडमेड बूंदक थी जिसे दो पाइप और बोर्ड का इस्तेमाल कर बनाया गया था। हमलावर ने मौका मिलते ही निशाना साधकर शिंजो आबे पर फायरिंग कर दी। उसकी बंदूक से निकली दो गोलियां शिंजो आबे की गर्दन और छाती पर लगीं। खून अत्यधिक बह जाने के कारण हमले के करीब छह घंटे बाद अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। शिंजो का हत्यारा जापान के नेशनल डिफेंस फोर्स का पूर्व सैनिक है। मौके पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत उसपर काबू पा लिया। पुलिस ने उसके घर पर छापा मारा जहां से हैंडमेड पिस्टल और अन्य विस्फोटक भी बरामद किए गए।
शिंजो आबे की मौत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को भारत में राष्ट्रीय शोक दिवस का ऐलान किया। मोदी ने कहा, 'शिंजो आबे के निधन से दुनिया ने एक महान दूरदर्शी खो दिया है, और मैंने एक प्रिय मित्र खो दिया।‘ उन्होंने कहा, आबे भारत-जापान मित्रता के महान समर्थक थे।
'माई फ्रेंड, आबे सैन' शीर्षक वाले ब्लॉग में मोदी ने आबे को श्रद्धांजलि अर्पित की और लिखा-'हमलोगों के लिए उनके सबसे महान उपहारों और उनकी सबसे स्थायी विरासत में से एक, जिसके लिए दुनिया हमेशा उनकी ऋणी रहेगी, वह है बदलते समय के साथ चुनौतियों को पहचानने की उनकी दूरदर्शिता और इसका सामना करने के लिए उनका जबरदस्त नेतृत्व।
'वे भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ थे जबकि उनके देश के लिए यह काफी मुश्किल काम था। भारत में हाईस्पीड रेल के लिए हुए समझौते को बेहद उदार रखने में भी उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई।'
प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा- 'चाहे Quad हो या ASEAN के नेतृत्व वाला मंच, इंडो पेसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव हो या फिर एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर या Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, उनके योगदान से इन सभी संगठनों को लाभ पहुंचा है।'
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आबे की अनुपस्थिति दुनिया भर के राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करेगी, क्योंकि उन्होंने दुनिया में शक्ति संतुलन को फिर से परिभाषित करने के लिए कड़ी मेहनत की थी। आबे का निधन निश्चित रूप से भारत के लिए एक झटका होगा। पीएम मोदी के साथ आबे की मजबूत व्यक्तिगत बॉन्डिंग थी। उन्होंने इसका जिक्र भी किया था कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से वर्षों पहले ही वे कैसे दोस्त बन गए थे।
मोदी ने अपने ब्लॉग में लिखा, 'आबे सान के साथ हर मुलाकात मेरे लिए बहुत ज्ञानवर्धक, बहुत ही उत्साहित करने वाला होता था। वह हमेशा नए विचारों से भरे रहते थे। शासन, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, विदेश नीति और अन्य मुद्दों पर वे गहरी समझ रखते थे। उनकी बातों ने मुझे गुजरात के आर्थिक विकास को लेकर नई सोच के लिए प्रेरित किया। इतना ही नहीं, उनके सतत सहयोग से गुजरात और जापान के बीच वाइब्रेंट पार्टनरशिप के निर्माण को बड़ी ताकत मिली।
पिछले 90 वर्षों में जापान में इस तरह की कोई राजनीतिक हत्या नहीं हुई थी। इससे पहले 1932 में तख्तापलट की कोशिश के दौरान जापान के प्रधानमंत्री की हत्या कर दी गई थी।
शिंजो आबे ने जापान द्वारा दिए गए सॉफ्ट लोन के तहत भारत में बुलेट ट्रेन परियोजना शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने चार बार भारत का दौरा किया और दो बार भारतीय संसद को संबोधित किया। उन्होंने इंडो-पैसिफिक पहल की नींव रखी और उन्हें 2021 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया।
मोदी और शिंजो आबे में काफी समानताएं हैं। एक समानता यह भी है कि दोनों नेताओं को अपने देश के संस्कृति, विरासत और प्राचीन परंपराओं पर गर्व और विश्वास है। मोदी जब प्रधानमंत्री बनने के बाद जापान गए थे तो उन्होंने काशी को क्योटो की तरह बनाने की बात कही थी और शिंजो आबे ने इस काम में मदद का वादा किया था। शिंजो आबे दिसंबर 2015 में भारत के दौरे पर आए तो उन्होंने मोदी के साथ वाराणसी की घाटों का दौरा किया। उन्होंने दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती में भी हिस्सा लिया। वाराणसी में जापान के सहयोग से चल रही परियोजनाओं का जायजा लिया। वाराणसी में रूद्राक्ष कन्वैन्सन सेंटर जापान की मदद से ही बना है।
शिंजो आबे के 2015 के भारत दौरे ने भारत और जापान के रिश्तों की मज़बूती की नींव रखी। इसे अगले स्तर पर ले जाने और स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप बनाने का रास्ता खोला। 2016 में जब नरेंद्र मोदी जापान के दौरे पर गए तो दोनों देशों के बीच सिविल न्यूक्लियर डील हुई। हमें यह याद रखना चाहिए कि दुनिया में परमाणु हमले को भुगतने वाले इकलौते देश के तौर पर जापान सख़्ती से एटमी हथियारों का विरोध करता रहा है लेकिन शिंजो आबे ने पुरानी बातों को दरकिनार करते हुए भारत के साथ परमाणु समझौता किया। यह उनकी और मोदी की दोस्ती का ही नतीजा था। जापान ने भारत को एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता दी।
शिंजो आबे और मोदी की दोस्ती की गर्मजोशी वर्ष 2017 में उस वक़्त देखने को मिली जब शिंजो आबे चौथी बार भारत के दौरे पर आए। तब पीएम मोदी उन्हें गुजरात ले गए और दोनों नेताओं ने रोड शो किया। यह पहला मौका था जब कोई विदेशी नेता, भारत में रोड शो कर रहा था। दोनों नेता अहमदाबाद की मशहूर सिद्दी सैय्यद मस्जिद देखने गए। इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट पर कुछ वक़्त बिताया था।
शिंजो आबे को यकीन था कि इक्कीसवीं सदी में भारत दुनिया की बड़ी ताकत होगा। 2007 में भारत की संसद को संबोधित करते हुए आबे ने कहा था कि जापान और भारत की दोस्ती, दो महासागरों यानी हिंद और प्रशांत महासागरों का मेल है। शिंजो आबे के दिसंबर 2015 के भारत दौरे पर पीएम मोदी और आबे के बीच भारत में जापान की मदद से बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट आगे बढ़ाने पर सहमति बनी। जापान ने एक लाख करोड़ से ज्यादा के इस प्रोजेक्ट के लिए भारत को बेहद रियायती रेट पर लोन दिया। उम्मीद है कि भारत में पहली बुलेट ट्रेन 2026 तक शुरू हो जाएगी।
शिंजो आबे ने बहुत पहले ही चीन का ख़तरा भांप लिया था। उन्होंने 2006 में प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन के बढ़ते प्रभाव को बैलेंस करने के लिए चार देशों जापान, अमेरिका, भारत, और ऑस्ट्रेलिया को मिलाकर QUAD गठबंधन की वकालत की थी। हालांकि, उस समय मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने शिंजो आबे के इस आइडिया में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।
चीन के राष्ट्रवादियों ने सोशल मीडिया पर शिंजो आबे की हत्या का जश्न मनाया। वहां के स्टेट मीडिया कहा कि आबे की नीतियों के प्रति जापानी लोगों में बहुत नाराजगी थी। दरअसल, चीन प्रशांत क्षेत्र में अपना दबदबा बढ़ा रहा था। जापान के सेनकाकू द्वीप पर चीन भी दावा करता रहा है। चीन से बढ़ते ख़तरों के बाद भी, जापान का कोई भी नेता संविधान के दायरे से बाहर जाकर जापान की सेना को ताक़तवर बनाने को तैयार नहीं था। लेकिन शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री बनते ही संविधान को दरकिनार करके जापान की डिफेंस फोर्सेज़ को बैलिस्टिक मिसाइलों, लड़ाकू विमानों और जंगी जहाज़ से लैस करने का फैसला किया। चीन की बढ़ती ताकत को बैलेंस करने के लिए ही शिंजो आबे ने भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के बीच QUAD गठबंधन का आइडिया दिया। शिंजो आबे मानते थे कि चीन से पूरी दुनिया को ख़तरा है इसलिए, जापान को भी अपनी ताक़त बढ़ानी चाहिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि शिंजो आबे के निधन से भारत ने अपने एक शुभचिंतक को और नरेंद्र मोदी ने अपने दोस्त को खो दिया। दुनिया ने एक बेहतरीन नेता को खो दिया। शिंजो आबे की बड़ी राजनीतिक विरासत थी। उनके दादा भी जापान के प्रधानमंत्री थे। उनके पिता जापान के वित्त मंत्री रह चुके थे। शिंजो आबे जापान के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री थे। वो चार बार जापान के प्रधानमंत्री बने। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पैदा होने वाले वे जापान के पहले प्रधानमंत्री थे। भारत के साथ रिश्ते की बात करें तो गणतन्त्र दिवस की परेड में शामिल होने वाले वे जापान के पहले प्रधानमंत्री थे। भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित जापान के अकेले प्रधानमंत्री हैं। शिंजो आबे को भारत से प्यार था इसलिए उन्होंने देश के विकास की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी परियोजनाओं का जमकर समर्थन किया।
भारत में बुलेट ट्रेन, दिल्ली मेट्रो, करीब डेढ़ हज़ार किलोमीटर लंबे दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर प्रोजेक्ट, काशी विश्वनाथ प्रोजेक्ट, नॉर्थ ईस्ट के विकास की परियोजनाएं और स्मार्ट सिटीज बनाने के प्रोजेक्ट, ये सब जापान की मदद से चल रहे हैं। यह मदद शिंजो आबे और नरेन्द्र मोदी की पर्सनल कैमिस्ट्री का नतीजा है। शिंजो आबे ने जापान में राजनीतिक स्थिरता दी। वह जापान के ज्यादा लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे। सबसे ज्यादा बार भारत की यात्रा करने वाले जापान के एकमात्र प्रधानमंत्री भी हैं। करीब नौ साल के कार्यकाल में शिंजो आबे चार बार भारत आए। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने शिंजो आबे के निधन पर कहा कि दुनिया ने एक बेहतरीन इंसान और भारत ने शुभचिंतक और उन्होंने अपना एक अच्छा दोस्त खो दिया। (रजत शर्मा)
देखें: ‘आज की बात, रजत शर्मा के साथ’ 08 जुलाई, 2022 का पूरा एपिसोड